छत्तीसगढ़ में अंग्रेजों के खिलाफ 1824 में ही शुरू हो गई थी बगावत : रमन

रायपुर, 14 अगस्त (जस)। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने रविवार को आकाशवाणी से प्रसारित अपनी मासिक रेडियो वार्ता ’रमन के गोठ’ की बारहवीं कड़ी में प्रदेशवासियों को ’सुराजी तिहार’ (स्वतंत्रता दिवस) की बधाई और शुभकामनाएं दी। डॉ. सिंह ने देश की आजादी के लिए छत्तीसगढ़ में हुए स्वतंत्रता संग्राम की अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं का विस्तार से उल्लेख किया।

डॉ. रमन सिंह ने आजादी की लड़ाई में छत्तीसगढ़ के महान योद्धाओं द्वारा दी गई शहादत को याद करते हुए राज्य तथा देश के सभी अमर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा-फिरंगियों के अन्याय और अत्याचार के खिलाफ सन 1857 में पूरे देश में जोरदार आक्रोश फूटा, जिसे हम ’आजादी की पहली लड़ाई’ कहते हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की यह कहानी उसके 33 साल पहले 1824 में ही शुरू हो गई थी।

इस सिलसिले में उन्होंने सन 1824 में अबूझमाड़ के परलकोट क्षेत्र के वीर गैंदसिंह को याद करते हुए कहा कि वे परलकोट में वनवासियों को छापामार युद्ध सिखा रहे थे। अंग्रेजों को इसकी खबर लगी। उन्होंने कर्नल एगन्यू के नेतृत्व में फौज को भेजा। गैंदसिंह की फौज जमकर लड़ी, लेकिन वे गिरफ्तार कर लिए गए और 10 जनवरी 1825 को परलकोट महल के सामने उन्हें फांसी दे दी गई।

डॉ. रमन सिंह ने सोनाखान के वीरनारायण सिंह के महान संघर्षों का विशेष रूप से उल्लेख किया। उन्होंने सन 1858 में रायपुर स्थित अंग्रेजों की फौजी छावनी (तीसरी रेग्यूलर रेजिमेंट) के सिपाही ठाकुर हनुमान सिंह के नेतृत्व में हुई सशस्त्र बगावत का जिक्र करते हुए कहा कि इस क्रांति के नायक बने सत्रह भारतीय सिपाहियों को फिरंगियों ने पुलिस लाईन रायपुर में खुलेआम तोप से उड़ा दिया था। डॉ. रमन सिंह ने बस्तर के सन 1876 के मूरिया विद्रोह का जिक्र करते हुए सन 1910 में वीर गुण्डाधूर के नेतृत्व में बस्तर के ’भूमकाल’ विद्रोह पर भी प्रकाश डाला।

मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि रमन के गोठ के प्रसारण का एक वर्ष पूर्ण हो गया है। इस एक साल में श्रोताओं का हमें बहुत ज्यादा आशीर्वाद और सहयोग मिला है तथा सुझाव भी मिले हैं। प्रदेश की विकास यात्रा का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले एक दशक में उनकी सरकार के प्रयासों से छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल अंचलों में काफी विकास हुआ है।