Lokmanthan

दलितों का भी राष्ट्र निर्माण में उल्लेख होना चाहिये

भोपाल, 14 नवम्बर। “समता वर्ग समाज की स्थापना के लिये आक्रमण के बजाय समाधानकारक चर्चा की जानी चाहिये। दलितों का भी राष्ट्र निर्माण में योगदान रहा है। उनका उल्लेख भी होना चाहिये । समाज के बौद्धिक वर्ग की जिम्मेदारी है कि वह सामंजस्य स्थापित करने के प्रयास करें। भारत की मिली-जुली संस्कृति रही है। पक्ष और विपक्ष हमेशा ही यहाँ विद्यमान रहा है।”

यह बात दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. कौशल पवार ने ‘दलित और वंचित आख्यान में बदलाव (दलित पहचान, दलित साहित्य, दलित मीडिया एवं व्यवसाय, भारतीय दलित आंदोलन एवं पश्चिम का नस्ल भेद) सत्र में व्यक्त किए।

डॉ. पवार ने कहा कि आदिवासी गीतों के आख्यान अभी तक पहचाने नहीं गए हैं, उन पर शोध होना चाहिये। देश में प्राचीन काल में दलित साक्षर थे। महर्षि वाल्मीकी इसके उदाहरण हैं। इसके बाद ऐसा क्या हुआ कि दलित निरक्षर हो गए। उन्हें श्रम आधारित व्यवस्था से जोड़ दिया गया। उन्होंने कहा कि तकनीक से जोड़े जाने के कारण आज उन पेशों में भी सवर्ण जाति के लोग आ रहे हैं, जो पहले दलितों के लिये ही थे।

पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. संजय पासवान ने कहा कि व्यक्ति की अस्मिता को जाति के बाद राष्ट्रीय पहचान से जोड़ा जाना चाहिये। आरक्षण बड़ा विवाद का विषय बन रहा है और समाज इस पर चर्चा में दो भाग में विभाजित हो जाता है। इस टकराव को समाप्त करने के लिये चिंतन किया जाना चाहिये।

डॉ. संजीव शर्मा ने कहा कि वर्तमान व्यवस्थाओं में जो विसंगति सामने आ रही है उसका कारण राज्य से बहुत अधिक अपेक्षा होना है। हमने राज्य आधारित प्रशासनिक व्यवस्था को स्वीकार कर सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के महत्व को नगण्य कर दिया है। हम राज्य से ही अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि हमारी सांस्कृतिक एवं बौद्धिक परम्परा में बहुत कुछ ऐसा है जो गौरव करने लायक है और श्रेष्ठ है, उसे स्वीकार करना चाहिये।

आईएएस अधिकारी  मुकेश मेश्राम ने कहा कि वर्तमान व्यवस्था में आंदोलनबाज़ी बहुत हो रही है लेकिन समाधान नहीं मिलता। प्रतिरोध और गतिरोध के बीच विभेद करते हुए समाधान निकालना चाहिये। उन्होंने कहा कि देश में श्रम को शर्म से जोड़ दिया गया है और श्रम करने वालों को निचले दर्जे का माना गया है। वहीं बौद्धिक काम करने वाले को ऊँचा दर्जा दिया गया है। विदेशों में ऐसी स्थिति नहीं है।

उन्होंने कहा कि काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक से आने वाले समय में सामाजिक और आर्थिक समरसता पैदा होगी और सरकारी नौकरी का जो आकर्षण है वो समाप्‍त हो जाएगा। उन्होंने कहा कि जातिवादी व्यवस्था से रंगभेद को जोड़े जाने की प्रवृत्ति खतरनाक है। इससे विदेशी संस्थाएँ चंदा देकर संस्थानों को प्रोत्साहित करेंगी और यह भारत की सामाजिक समरस्ता के लिये बहुत खतरनाक होगा।

सत्र की अध्यक्षता पण्डवानी गायिका सुश्री तीजन बाई ने की। उन्होंने कहा कि वह परिश्रम और साधना करते हुए यहाँ तक पहुँची हैं।