Pandi Ravi Shankar

स्व. पं. रविशंकर ने कहा था “मुझे हमारे देश के सिस्टम से सख़्त कोफ़्त है”

about Ravi Shankar(स्व. पं. रविशंकर  Pandit Ravi Shankar जी के 99वें जन्म दिन के अवसर पर आज 7 अप्रैल को प्रस्तुत है बृजेन्द्र रेही से  1983  में हुई  बातचीत के कुछ अंश। कला-रसिकों को अनुभव होगा कि उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं।- संपादक)

आप शास्त्रीय संगीत के शिखर-पुरुष हैं। संगीत को जन-जन तक पहुंचाने में आपने अपना जीवन ही समर्पित कर दिया। अब आप कैसा महसूस करते हैं?

हमारे अनुभव में तो यह एक विचित्र समय है। एक तरह से देखा जाए तो इसे ट्रान्स पीरियड बोलते हैं। इंडियन म्यूजि़क का शौक आज जनता में पहले से बहुत बढ़ गया है और युवा पीढ़ी का ध्यान भी इस पर गया है।

इतना ज़रूर है कि इस ज़माने में ‘सुपर स्टारडम’ का प्राॅब्लम आ गया है। प्राॅब्लम इसलिए क्योंकि ज्यादातर लोग उन्हीं को देखने-सुनने जाते हैं जिनका बहुत नाम हो चुका है।

चाहे विलायत खां हों, चाहे कोई भी हो जिसका नाम ज्यादा है या जो पाॅपुलर है, अधिकतर लोग उसके नाम के लिए आएंगे।

 

दरअसल, ज्यादा प्रतिशत उन्हीं लोगों का है जो केवल दिखावे के तौर पर जाते हैं। वाकई जो लोग संगीत प्रेमी हैं वो समटाइम्स मिलते हैं। काफी लोग ऐसे भी हैं जो शायद अफोर्ड नहीं कर सकते, शायद इस खयाल में रहते हैं कि हमको इन्वाइट किया जाए।

टीवी फोटो ‘भारत रत्न’ पं. रविशंकर

‘‘मैं संगीत को काफी प्रमोट कर रहा हूं। मैं दोनों तरफ की दिक्कतों को जानता हूँ, लेकिन मुझे हमारे देश के सिस्टम से सख़्त कोफ़्त है।”

दुःख है कि जब हम लोग कोई प्रोग्राम करते हैं, चाहे वाराणसी में, दिल्ली में या कहीं भी, ये अधिकारीगण उम्मीद करते हैं कि उन्हें सिर्फ इन्वाइट ही न किया जाए बल्कि एकदम सामने और सबसे अच्छी जगह बिठाया जाए।

कुछ-कुछ तो समझ आता है कि इसकी जरूरत है क्योंकि यही लोग मदद भी करते हैं। उनके प्रोत्साहन से हमारा कार्यक्रम अच्छा ही होता है। छोटे शहरों में तो यह प्रवृत्ति बहुत ही ज्यादा है।

खासकर वाराणसी में तो कई सालों तक हमारा बुरा अनुभव रहा है। वहाँ जितने भी अधिकारी, मामूली क्लर्क, वाटर वर्क्स में काम करने वाले, पुलिस कान्सटेबल सभी लोग सिर्फ ब्लेम ही नहीं करते बल्कि थ्रेटन करते हैं कि हम देख लेंगे। पानी बंद कर देंगे, इलैक्ट्रिक बंद कर देंगे। ऐसे तत्व छोटे शहरों में ज्यादा हैं, बड़े शहरों में ऐसा नहीं होता।

उम्मीदेें इतनी बढ़ गई हैं कि बड़ा दुःख होता है। जो लोग बर्दाश्त कर सकते हैं, वे भी कुछ नहीं कर पाते। यह बड़ी अफसोस की बात है।

शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में नवोदित कलाकारों की क्या स्थिति है?

यह एक बड़ा गंभीर मामला है। मैं कुछ भी कहूं लोग गलत समझ सकते हैं। मेरे ख्याल से भारतीय आर्ट— संगीत कहिए, क्लासिकल म्यूजि़क कहिए, जो कुछ भी आप उसको कहें, इसमें एक भेद है।

भेद यह है कि आप अगर यही कहें कि नये कलाकारों को सामने लाना चाहिए तो इसका मतलब क्या है?

नये कलाकारों का मतलब कि यंग एज। अच्छा बजाते हैं, अच्छा गाते हैं, ठीक है। सुर में गाते हैं, वो भी ठीक है। लेकिन हमारे ज़माने से यह चला आ रहा है कि गाने बजाने की मैच्योरिटी आने में, गहराई आने में 20-25 साल तो कम से कम लग ही जाते हैं।

अब 20-25 साल लगाने का मतलब अगर कोई  पाँच साल से शुरू करे तो वो बात अलग है, अच्छे गुरू मिल जाएं, उस्ताद मिल जाएं। -.6 साल से शुरू किया तो कम से कम 25 साल में एक पूर्ण कलाकार बनने के काफी चांस हैं। अगर उसमें थोड़ा टैलेन्ट हो, मेहनत हो, साधना हो, तभी बनेगा।

नए कलाकारों में प्रतिभा बहुत है और सुर में भी हैं, लेकिन मुश्किल यह है कि हमारे संगीत को सीखने में थोड़ा टाइम लगता है। ऐसे कलाकारों को एक दफा सुनकर बहुत से लोग कहते हैं वाह-वाह क्या बात है, दूसरे दफे सुनेंगे तो कहेंगे अच्छा है, तीसरे दफे शायद उतना इन्ट्रैस्ट न लें।

लेकिन पुरान लोगों को सुनिए। मल्लिकार्जुन मंसूर को जब भी आप सुनेंगे तो यही कहेंगे अच्छा गाते हैं। बिस्मिल्लाह खाँ कितने बूढ़े हो गए, फिर भी कितनी अच्छी शहनाई बजाते हैं।

अली अकबर खाँ, सब जितने कलाकार हैं, सालों से फील्ड में हैं। 40 साल से हैं लेकिन अभी भी उनके गाने. बजाने में जैसे और ज्यादा गहराई आ रही है। जबकि नए कलाकारों में ऐसे कई होते हैं जो वाकई पूर्णता प्राप्त नहीं करते। पहले ही उन्होंने कार्यक्रम देने शुरू कर दिए हैं।

आजकल की जो टेंडेंसी है उसके अनुसार जब भी हो सके, परफाॅर्मेंस देना शुरू कर दिया। अब परफाॅर्मेंस देने में कोई हर्ज नहीं है, देना चाहिए लेकिन उनमें फ्रसट्रेशन आ जाती है। वो सोचते हैं कि हमारी कद्र नहीं हो रही है।

यह गलत बात है, क्योंकि मैं तो यह मानता हूं कि आर्ट को आप कभी भी छिपा कर नहीं रख सकते। कितना ही ढांकिए, उभर आएगी। जिसमें सचमुच प्रतिभा है, गहराई है, देर है मगर अंधेर नहीं, वो आगे आएगा ही।

(स्व. पं. रविशंकर Pandit Ravi Shankar जी का यह साक्षात्कार जवाहर पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘गमक’ में भी संकलित है। – संपादक)