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भारत आध्यात्मिक प्रयोगों की भूमि : मौलाना मोहम्मद आजम हशमती

मौलाना मोहम्मद आजम हशमती ने कहा कि भारत आध्यात्मिक प्रयोगों की भूमि रहा है।

यह बात पासबाने वतन फाउंडेशन के अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद आजम हशमती ने लखनऊ में 26 दिसम्बर को यूपी प्रेस क्लब में “सूफ़ीवाद : आतंकवाद का हल” विषय पर आयोजित संगोष्ठी में कही।

यह आयोजन पासबाने वतन फाउंडेशन और मुस्लिम छात्र संगठन ‘मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया’ की तरफ़ से किया गया था ।

उन्होंने  कहा कि भारत की भूमि पर इस्लाम में सामाजिक आंदोलने के लिए किए गए सूफ़ी संतों के प्रयोगों का खुले दिल से स्वागत किया गया और आज पूरी दुनिया सूफ़ी इस्लाम के कामयाब प्रयोगों में शांति का मार्ग तलाश रही हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि सामाजिक क्रांति की अनुपालना के लिए भारत सबसे उपयुक्त देश है।

हशमती ने दो शानदार उदाहरण देते हुए भारत को सूफ़ीवाद और इस्लाम की सबसे उपयुक्त भूमि बताया। दुनिया की सबसे अधिक इस्लामी पुस्तकें भारतीयों ने लिखी हैं और वह तक़रीबन सूफ़ी इस्लाम पर आधारित हैं जो शांति, सह अस्तित्व और प्रेम का संदेश देती हैं।

उन्होंने युवाओं को बताया कि जिसे हिन्दू भगवा रंग कहते हैं, उसे मुसलमान चिश्ती रंग क्यों कहते हैं?

उन्होंने समझाया कि हिन्द के सुल्तान ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रह. ने भारत आने के बाद गेरुए वेशभूषा और पटका को अपनी पोशाक बना लिया था ताकि लोग हिन्दू और मुसलमान के नाम पर विभेद में नहीं पड़ें और उनके शांति के संदेश को सुनें। तभी से भारत के मुसलमानों ने भगवा रंग को चिश्ती रंग कहना शुरू कर दिया।

मौलाना  हशमती ने बताया कि अजमेर जाएंगे तो हज़ारों लोगों के गलों में भगवा यानी चिश्ती रंग के पटकों, रुमाल और शॉल को देखेंगे। यह ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रह. की डाली गई परम्परा है जिसे लोग इस अशांति, संशय और हिंसा के माहौल में भी निभाते हैं।

उन्होंने कि यह  सिर्फ़ भारत में देखने को मिलेगा। उन्होंने युवाओं से ख़्वाजा साहब के संदेश को आत्मसात करते हुए सामाजिक सहअस्तित्व को बढ़ाने का आह्वान किया।

मौलाना इरफानूल हक़ कादरी

इस अवसर पर प्रख्यात सूफ़ी विचारक मौलाना इरफानूल हक़ कादरी ने कहा कि भारत में अब भी कट्टरता वह स्थान नहीं बना पाई है जिसका इरादा हर अशांत प्रवृत्ति के देश, संगठन एवं व्यक्ति चाहते हैं।

मौलाना कादरी ने  युवाओं से अपील की कि वह क्रांति और आतंकवाद में फर्क़ को समझें। क्रांति बदलाव, शांति, प्रेम और सहअस्तित्व का प्रवाह करती है जबकि आतंकवाद बेगुनाह लोगों की हत्या, अन्याय, भय और अस्थिरता की तरफ़ ले जाता है।

उन्होंने कहा कि इस्लाम की मंशा दुनिया में शांति स्थापना की रही है।

मौलाना कादरी ने कहा कि भारत में ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रह. के आने के बाद राजनीतिक स्थिरता, सहअस्तित्व और रूहानी प्रेम की एक अनूठी परम्परा शुरू हुई जो बाद में भक्ति काल से आधुनिक भारत तक व्याप्त है।

मौलाना मोहम्मद इशतियाक कादरी

मौलाना मोहम्मद इशतियाक कादरी ने कहा कि पूरे अरब में इस्लाम के नाम पर सिर्फ़ अशांति ही नहीं बल्कि वहाँ किंगडम के नाम पर सत्ताधारी अधिनायकवादियों ने जनता की आवाज़ को नहीं, बल्कि उदार इस्लाम की आवाज़ को भी दबा दिया है।

अधिनायकवाद और इस्लाम के नाम पर कट्टरवाद  ने लोगों का जीना हराम कर दिया है। आतंकवाद और राजनीतिक संकट की इस घड़ी में अरब के मुसलमान भी भारत की तरफ़ देख रहे हैं।

उन्होंने कहा कि भारत में दुनिया का सबसे अधिक मुसलमान अन्य समाजों के साथ शांतिपूर्वक रह रहा है।

 

प्रोफेसर डॉ सुनील सिंह 

जोनपुर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर डॉ सुनील सिंह ने कहा कि हमें यह समझना चाहिए कि भारत में आतंकवाद का नामों निशान भी नहीं है। जो भारतीय मुस्लिम कट्टर इस्लाम के झांसे में आए भी, बहुत जल्द वह इसकी भावना को समझकर वापस सूफ़ी विचारधारा में लौट आए।

दुनिया में सर्वाधिक मुस्लिम आबादी होने के बावजूद वहाबी आतंकवाद में भारत के नौजवानों को आप नहीं देखेंगे।

डॉ सुनील सिंह ने कहा कि युवाओं को सूफ़ी संतों के संदेशों को समझना चाहिए। सूफ़ियों की परम्परा स्व से पूर्व समाज, ख़ुद से पहले आप और इच्छा से पूर्व कल्याण की रही है। यह बात राष्ट्र निर्माण और समाज के कल्याण पर भी लागू होती है।

इस प्रोग्राम की अध्यक्षता नबीरए आला हज़रत मौलाना कारी मोहम्मद तस्लीम रज़ा खान दरगाह आला हज़रत ने की, संचालन मौलाना जमाल अख्तर सद्फ़ ने की।

पासबाने वतन फाउंडेशन और मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया द्वारा आयोजित प्रोग्राम में इफतिखार अंसारी,मेराज अहमद सनी,मौलाना बदरुद्दीन मिसबाही,चंद्रेश प्रताप सिंह,मुनीर अहमद खान व प्रदेश के कई जनपदों से युवाओं ने भाग लिया।

 

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