एक समय वह भी था, जब टैक्सी के लिए नहीं होते थे पैसे : सचिन

मुंबई, 26 अप्रैल |  विश्व के दिग्ग्ज बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर ने मंगलवार को पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया कि जब वह 12 साल के थे तब उन्हें अंडर-15 मैच खेलने के लिए दादर स्टेशन से शिवाजी पार्क तक दो किट बैगों के साथ पैदल जाना पड़ा था क्योंकि उस समय उनकी जेब में टैक्सी के लिए पैसे नहीं थे। सचिन ने एक कार्यक्रम में कहा, “मैं जब 12 साल का था और मुंबई की अंडर-15 टीम में चुना गया था। मैं काफी उत्सुक था और कुछ पैसे लेकर हम तीन मैच के लिए पुणे गए थे। वहां एकदम बारिश होने लगी। मैं उम्मीद कर रहा था कि बरसात रुक जाए और हम कुछ क्रिकेट खेल पाएं।”

फोटोः सचिन तेंदुल्कर 26 अप्रैल, 2016 को मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान। (आईएएनएस)

सचिन ने कहा, “मेरी जब बल्लेबाजी आई तो मैं चार रनों पर आउट हो गया था। मैं सिर्फ 12 साल का था और मुश्किल से तेज दौड़ पाता था। मैं काफी निराश था और ड्रेसिंग रूम में लौट कर रोने लगा था। इसके बाद मुझे दोबारा बल्लेबाजी का मौका नहीं मिला।”

उन्होंने कहा, “क्योंकि बरसात हो रही थी और पूरे दिन हमने कुछ नहीं किया और बिना यह जाने कि पैसे कैसे खत्म करने हैं फिल्म देखी, खाया पिया।”

सचिन ने कहा, “मैंने सारे पैसे खत्म कर दिए थे और जब मैं मुंबई वापस लौटा तो मेरी जेब में एक भी पैसा नहीं था। मेरे पास दो बैग थे। हम दादर स्टेशन पर उतरे और वहां से मुझे शिवाजी पार्क तक पैदल जाना पड़ा क्योंकि मेरे पास पैसे नहीं थे।”

भारतीय क्रिकेट टीम के इस पूर्व कप्तान ने कहा, “अगर मेरे पास फोन होता तो मैं अपने माता-पिता को एक एसएमएस करता और वह मेरे खाते में पैसे भेज देते और मैं कैब से वहां जा सकता था।”

बल्लेबाजी का लगभग हर रिकार्ड अपने नाम कर चुके सचिन तीसरे अंपायर तकनीक के द्वारा आउट दिए गए पहले बल्लेबाज थे। उन्होंने इस किस्से को याद करते हुए कहा, “जब तकनीक की बात आती है तो मैं पहली बार तीसरे अंपायर द्वारा 1992 में रन आउट दिया गया था। कई बार तकनीक आपका साथ नहीं देती। जब आप क्षेत्ररक्षण करते हो तो चाहते हो कि तीसरे अंपायर का फैसला आपके पक्ष में हो, लेकिन जब बल्लेबाजी करते हो तो इसके विपरित चाहत होती है।”

सचिन ने पहली बार भारतीय टीम के ड्रेसिंग रूम में तकनीक के प्रयोग को भी याद किया।

उन्होंने कहा, “मैंने जब 1989 में क्रिकेट खेलना शुरू किया था तब से लेकर अब तक काफी बदलाव आ चुका है। हमारे पास कोई प्रायोजक नहीं होता था। हमारे पहले दौरे पर हमारे पास सीमित कपड़े थे। वहां से यह सब शुरू हुआ। 2002-2003 में हमें अचानक से बताया गया कि ड्रेसिंग रूम में कम्प्यूटर आने वाला है।”

उन्होंने कहा, “कम्प्यूटर ड्रेसिग रूम में क्या करेगा। यह हमें बल्लेबाजी और गेंदबाजी नहीं सीखा सकता। लेकिन समय के साथ हमें पता चला की यह रणनीति बनाने के लिए सही है।”

उन्होंने कहा, “हम प्रोजेक्टर लगा कर उस पर सारे आंकड़े देख सकते हैं और यह भी पता कर सकते हैं कि किस बल्लेबाज को कहां गेंद नहीं करनी है। यह हम 15 खिलाड़ियों के लिए सोचना मुश्किल था और वह हमारे सामने था। इससे हमें रणनीति बनाने में मदद मिली।”

(आईएएनएस)