जेपी के नाम पर हो रही सत्ता की राजनीति : राम बहादुर राय

पटना, 3 सितंबर। लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) के सहयोगी रह चुके इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष राम बहादुर राय ने कहा कि आज के हालात में जयप्रकाश नारायण की प्रासंगिकता बढ़ गई है। जेपी का नाम लेने वाले लोग आज सत्ता की राजनीति ज्यादा कर रहे हैं, जबकि जेपी ने कभी भी सत्ता और कुर्सी के लिए राजनीति नहीं की।

लोकनायक की जन्मस्थली सिताब दियारा से लौटकर पटना पहुंचे राय ने विशेष बातचीत में कहा कि जेपी ने कभी भी सत्ता के लिए और कुर्सी के लिए राजनीति नहीं की। उनकी राजनीति का मकसद था, स्वराज गरीबों तक कैसे पहुंचे।

सिताब दियारा जाने का कारण पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि जून महीने में भारत सरकार ने जेपी की जन्मस्थली में राष्ट्रीय स्मारक बनाने की घोषणा की थी। इसका काम संस्कृति मंत्रालय को सौंपा गया है।

उन्होंने कहा, “इसके लिए सरकार द्वारा राशि भी विमुक्त कर दी गई है, लेकिन जन्मस्थली पर कुछ बुनियादी अड़चनें हैं, जिसका मैं जायजा लेने गया था। जिस घर को जेपी का जन्मस्थान कहा जाता है, उसमें उनके दूर के एक रिश्तेदार रह रहे हैं। अभी तक वह जगह जेपी ट्रस्ट को नहीं सौंपा गया है।”

राय ने कहा कि इस विषय पर वहां के लोगों से बातचीत हुई है।

उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिताब दियारा में राष्ट्रीय स्मारक का निर्माण कराने का निर्णय लिया है। इससे वर्तमान पीढ़ी को तथा आने वाली पीढ़ी को भी जेपी के विषय में जानकारी मिल सकेगी।

राय ने कहा, “जेपी स्वतंत्रता आंदोलन की पहली लड़ाई के भी नायक थे और दूसरी आजादी की लड़ाई के महानायक थे।”

उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि आजादी की दूसरी लड़ाई का तात्पर्य इंदिरा गांधी की लगाई इमर्जेसी और तानाशाही से मुक्ति की लड़ाई से है। बकौल राय, “इंदिरा गांधी ने जब देश पर तानाशाही थोपी थी, तब खतरा इस बात का हो गया था कि लोगों की आजादी छिन जाएगी। आपातकाल के खिलाफ लोकतंत्र के लिए जो संघर्ष हुआ, उसे ही तमाम लोगों ने आजादी की दूसरी लड़ाई कहा। यह लड़ाई जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में लड़ा गया था और वह उसके महानायक थे।”

उन्होंने कहा कि आज लोग लोकतंत्र को अधिकार मानने लगे हैं। लोकतंत्र में लोगों को वोट देने का अधिकार सबसे बड़ी ताकत है। यह जेपी की बड़ी देन है।

राय बोले, “देश में जब तक लोकतंत्र का महत्व रहेगा, तब तक जेपी का भी महत्व बना रहेगा।”

क्या आज की परिस्थिति में एकबार फिर जेपी आंदोलन जैसे आंदोलन की जरूरत है? यह पूछे जाने पर राय ने बेबाकी से कहा, “आंदोलन तो हमेशा जरूरी होता ही है, लेकिन जेपी जैसा आंदोलन करने के लिए कई चीजों की जरूरत होती है।”

उन्होंने कहा, “जेपी जैसे आंदोलन के लिए नेतृत्व, परिस्थितयां, संगठनतंत्र, वातावरण के साथ-साथ लोगों में लड़ने का माद्दा भी जरूरी है। ये सभी चीजें मिलकर किसी भी आंदोलन को खड़ा करते हैं। अब यह आज के समय में कितना है या नहीं है, यह आकलन का विषय है।”

राय ने हालांकि यह भी कहा कि लोग अब सत्ता परिवर्तन के लिए बड़े आंदोलन के बजाय चुनाव को ही आंदोलन मानते हैं। सत्ता परिवर्तन के लिए लोग चुनाव के सहारे सरकार बदल लेते हैं।

देश के वरिष्ठ पत्रकार राय कहते हैं कि अब आंदोलन की जरूरत व्यवस्था बदलने के लिए है और इसके लिए जो आंदोलन चाहिए उसके लिए एक लंबी तैयारी की जरूरत है। इसके पहले यह जानना भी जरूरी है कि व्यवस्था होती क्या है?

उन्होंने कहा कि देश में लोकतंत्र तो है, लेकिन व्यवस्था आज भी पुरानी है। लोकतंत्र के इस स्वरूप पर जेपी कहते थे कि ‘लगता है, राजतंत्र का पिरामिड उल्टा खड़ा है।’

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के भविष्य की योजनाओं के विषय में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में दो नई योजनाएं शुरू की गई हैं, जिन्हें ‘संस्कृति संवाद श्रृंखला’ और ‘भारत विद्या योजना’ नाम दिया गया है। इसमें जिला स्तर पर विलुप्त हो रही लोककलाओं को सामने लाना और उपेक्षित कलाकारों को मंच प्रदान करना है।

उन्होंने कहा कि उनकी योजना कलाकारों की ‘ऑल इंडिया डायरेक्टरी’ बनाने की है और इन कामों को विनम्रतापूर्वक आगे बढ़ाया जा रहा है।–आईएएनएस