पिनकोड : पत्र को सही जगह पहुंचाने का अचूक तरीका

डॉ़ के़ परमेश्वरन====एक छोटा आयातकार बॉक्स जो छह हिस्सों में बंटा  है, देश में सभी डाक सामग्रियों पर बना होता है। इसे अधिकांश लोग नजर अंदाज करते हैं और अक्सर इसे बिना भरे ही छोड़ देते हैं। लेकिन डाक विभाग के लिए यह छोटा बॉक्स, एक पत्र को सही जगह पहुंचाने  के लिए सटीक और अचूक कार्य करता है। इस बॉक्स में पत्र भेजे जाने वाले स्थान का पिन कोड भरना होता है। पिन कोड क्या है? यह कैसे कार्य करता है?

पिन कोड क्या है?

पिन कोड पोस्टल इन्डेक्स नम्बर (पिन) कोड का संक्षिप्त नाम है। यह छह अंकों का विशिष्ट कोड है जो भारत में डाक वितरण करने वाले सभी डाकघरों को आवंटित किया जाता है। चूंकि एक कोड केवल एक ही डाकघर से सम्बंधित होता है इसलिए उस कोड का उपयोग यह सुनिश्चित करता है कि पत्र तेजी से ठीक डाकघर में पहुंच जाए।

यह कैसे कार्य करता है?

पिन कोड प्रणाली लागू करने के लिए पूरे देश को आठ पिन क्षेत्रों में बांटा गया है। नीचे दी गई तालिका में प्रत्येक क्षेत्र की पहचान संख्या और उसकी सीमा को दर्शाया गया है।

संख्या क्षेत्र इसके अंतर्गत आने वाले राज्य
1 उत्तरी दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर
2 उत्तरी उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड
3 पश्चिमी राजस्थान और गुजरात
4 पश्चिमी छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश
5 दक्षिणी आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक
6 दक्षिणी केरल एवं तमिलनाडु
7 पूर्वी पश्चिम बंगाल, उड़ीसा एवं पूर्वोत्तर
8 पूर्वी बिहार और झारखण्‍ड

जैसाकि प्रारंभ में उल्लेख किया गया है कि पिन कोड छह अंकों की एक संख्या है। पहला अंक इन क्षेत्रों में से एक को दर्शाता है। दूसरा एवं तीसरा अंक मिलकर उस जिले को दर्शाते हैं जहां वितरण करने वाला डाकघर स्थित है। अगले तीन अंक उस विशेष डाकघर को दर्शाते हैं जहां पत्र का वितरण होना है।

संक्षेप में पहले तीन अंक मिलकर उस छंटाई करने वाले या राजस्व जिले को दर्शाते हैं जहां पत्र को मूलतया भेजा जाना है। अंतिम तीन अंक उस वास्तविक डाकघर से संबंध रखते हैं जाहं उस पत्र को अंततरू वितरित किया जाना है।

उदाहरण के लिए अगर कोई कोझिकोड, केरल के एक शहर में रहता है तो उस क्षेत्र के डाकघर का पिन कोड 673006 है। इसमें पहला अंक 6 यह दर्शाता है कि पत्र छठे पिन क्षेत्र-तमिलनाडु, पांडिचेरी एवं केरल के लिए है। 7 और 3 (कोड का दूसरा एवं तीसरा अंक) अंक यह दर्शाएंगे कि पत्र का गंतव्य स्थान ठीक-ठीक कोझिकोड (पूर्वनाम कालीकट) में है। अंतिम तीन अंक 006 यह सुनिश्चित करेंगे कि  पत्र कोझिकोड में 006 नम्बर की छोटी बस्ती में स्थित विलाकुलम में जाना है। अगर किसी पत्र पर पर्याप्त डाक टिकट लगे हों और उस पर पिन कोड ठीक तरह लिखा गया हो तो वह गंतव्य स्थान पहुंच जायेगा चाहे वह अलास्का हो या साइबेरिया से ही क्यों नहीं भेजा गया हो।

हम एक उदाहरण और लेते हैं। पत्र सूचना कार्यालय के लिए मदुरै में पिन कोड 625020 है। यहां अंक 6 पिन क्षेत्र-तमिलनाडु, पांडिचेरी एवं केरल को दर्शाता है। अगले दो अंक 25 मदुरै जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं जबकि अंतिम दो अंक 20 मिलकर गांधीनगर डाकघर को दर्शाते हैं, जो पत्र सूचना कार्यालय, मदुरै को डाक वितरण करने वाला डाकघर है।

यहां यह भी ध्यान देने योग्य है कि मदुरै, तमिलनाडु में गांधीनगर डाकघर को दी गई संख्या विशिष्ट है। भारत के किसी भी अन्य डाकघर के लिए यह संख्या नहीं हो सकती। पिन कोड डॉयरेक्ट्री की जांच करने पर यह पता चलेगा कि उत्तर प्रदेश के पवित्र शहर मथुरा में वितरण डाकघर का बिल्कुल अलग पिन कोड-281001 है क्योंकि दोनों मंदिरों के शहरों के नामों में भ्रांति होने की संभावना रहती है। मथुरा के पिनकोड में 2 अंक पिन क्षेत्र के लिए है जिसमें उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड आते हैं। 81 अंक मथुरा को दर्शाते है जबकि 001 मथुरा मुख्य डाकघर के लिए हैं।

 अमेरिका में जिप प्रणाली

जिप कोड संयुक्त राज्य डाक सेवा में (यूएसपीएस) द्वारा प्रयुक्त डाक कोड संख्याओं की प्रणाली है। जिसका 1963 से प्रयोग किया जा रहा है। जिप (जैडआईपी) क्षेत्र सुधार योजना (जोन इम्प्रूवमेंट प्लान) का संक्षिप्त रूप है। इसका चयन इस विश्वास के साथ किया गया था कि जब पत्र भेजने वाले पते में कोड का प्रयोग करेंगे तो पत्र अधिक कुशलता एवं अधिक तेजी से यात्रा पूरी करेगा। मूल प्रारूप में पांच अंक होते हैं। 1980 में शुरू किए गए विस्तृत जिप़4 कोड में जिप कोड के पांच अंक और 4 अतिरिक्त अंक हैं जो जिप कोड के मुकाबले अधिक पास की स्थान स्थिति का निर्धारण करते है।

 यूनाइटेड किंगडम की प्रणाली

यूनाइटेड किंगडम (इंग्लैंड) में प्रयुक्त डाक कोड प्रणाली पोस्टकोड के रूप में जानी जाती है। कोड में शब्दों एवं अंकों, दोनों का प्रयोग होता है। उन्हें 11 अक्तूबर, 1959 से 1974 तक की 15 वर्ष की अवधि के लिए ब्रिटिश रॉयल मेल सिस्टम द्वारा शुरू किया गया था। पूरे पोस्टकोड को पोस्टकोड यूनिट के रूप में जाना जाता है जो सामान्यतया पते के सैट या एक बड़े वितरण स्थान के अनुरूप है।

लंदन और दूसरे बड़े शहरों में 1857 से डाक जिलों की प्रणाली लागू की गयी थी। बाद में 1971 में लंदन में इस प्रणाली को परिष्कृत करके इसमें संख्या धारक उपखण्डों को शामिल किया गया और 1934 में दूसरे शहरों तक भी इसका विस्तार किया गया। बाद में इन नगरों को राष्ट्रीय पोस्ट कोड प्रणाली में शामिल कर लिया गया।

 क्षेत्रीय प्रणाली- एक अग्रदूत

भारत में डाक से वस्तुएं भेजे जाने की प्रणाली को सुचारू रूप देने के प्रयासों का इतिहास बहुत पुराना है, इस दिशा में, 1946 में किया गया एक प्रयास था-वितरण क्षेत्र संख्या प्रणाली। इस प्रणाली के अंतर्गत हर वितरण डाकघर को एक विशिष्ट संख्या प्रदान की गयी। पहले इसे मुंबई, कोलकाता, दिल्ली और चेन्नई जैसे बड़े नगरों में लागू किया गया। इसमें लोगों से अनुरोध किया गया कि जिन नगरों में यह प्रणाली लागू की गयी है वहां नगर के नाम के बाद उसकी संख्या भी लिखी जाए और यह संख्या अंकित न किये जाने की स्थिति में भेजी गयी वस्तुओं की प्राप्ति में विलंब हो सकता है।

 डाक सर्किल

डाक सर्किलों का संगठन भी वितरण प्रणाली के सुचारू बनाने और डाक से भेजी गई वस्तुओं की प्राप्ति में होने वाली देरी से बचाव का प्रयास था। 1 अप्रैल, 1774 में जब डाक की सुविधाएं जनता को उपलब्ध करायी गयी, उस समय मात्र तीन ही डाक सर्किल थे जिनके नाम थे बंगाल, बम्बई और मद्रास।

उन दिनों जहां बंगाल, ब्रिटिश साम्राज्य के सम्पूर्ण पूर्वी और उत्तरी क्षेत्रों को डाक सेवा उपलब्ध कराता था वहीं मद्रास द्वारा पूरे दक्षिण क्षेत्र को डाक की सेवाएं उपलब्ध करायी जाती थीं। विभाजन के बाद आजाद भारत में बम्बई सेन्ट्रल, पूर्वी पंजाब, मद्रास और उत्तर प्रदेश में 20 डाक सर्किल हैं, जिनमें आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पूर्वोत्तर क्षेत्र, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और सैनिक डाक सेवा शामिल हैं।

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