पुणे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जयघोष

पुणे, 4 जनवरी। बाजीराव पेशवा की कभी राजधानी रहने के साथ-साथ छत्रपति शिवाजी, संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम और लोकमान्य तिलक की कभी नगरी रही पूना में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक लाख से ज्यादा संख्या का पथ संचलन, उस समय इस क्षेत्र के हर नागरिक को स्वर्णिम गौरव का अनुभव करा रहा था, जब पंक्तिबद्ध स्वयंसेवकों का काफिला एक के बाद एक स्वर और ताल के साथ गीत गाता हुआ कि ‘‘संघ किरण घर-घर देने को अगणित नंदादीप जले, मौन तपस्वी साधक बन कर हिमगिरि सा चुपचाप गले, नई चेतना का स्वर दे कर जनमानस को नया मोड़ दे, साहस शौर्य हृदय मे भर कर नयी शक्ति का नया छोर दे, संघशक्ति के महाघोष से असुरो का संसार दले’’ का जयघोष करते हुए उनके दरवाजे से गुजर रहा था।

DCIM100MEDIADJI_0125.JPGनगर के कौने-कौने से गुजरे स्वयंसेवक एक नहीं, अनेक समूह गीत के माध्यम से भारत भक्ति के प्रति अपनी वचनबद्धता दोहरा रहे थे। गीत यह भी गाया जा रहा था कि एकता, स्वतंत्रता, समानता रहे, देश में चरित्र की महानता रहे। कण्ठ हैं करोड़ों, गीत एक राष्ट्र का, रंग हैं अनेक, चित्र एक राष्ट्र का। रूप हैं अनेक, भाव एक राष्ट्र का। शब्द हैं अनेक, अर्थ एक राष्ट्र का। चेतना, समग्रता, समानता रहे।

दूसरे अन्य स्थान पर स्वयंसेवकों का सामूहिक गान था, देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें, सूरज हमें रौशनी देता, हवा नया जीवन देती है। भूख मिटने को हम सबकी, धरती पर होती खेती है। औरों का भी हित हो जिसमें, हम ऐसा कुछ करना सीखें। गरमी की तपती दुपहर में, पेड़ सदा देते हैं छाया। सुमन सुगंध सदा देते हैं, हम सबको फूलों की माला। त्यागी तरुओं के जीवन से, हम परहित कुछ करना सीखें। जो अनपढ़ हैं उन्हें पढ़ाएँ, जो चुप हैं उनको वाणी दें। पिछड़ गए जो उन्हें बढ़ाएँ, समरसता का भाव जगा दें। हम मेहनत के दीप जला कर, नया उजाला करना सीखें।

इस संपूर्ण दृश्य को देखकर जहां पूना महाराष्ट्र की ज्ञान नगरी के क्षेत्रवासियों को अपने पुराने पेशावायी दिनों की याद हो आई थी, उधर रविवार देर शाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पश्चिम महाराष्ट्र प्रांत (सरकारी सात जिलों से बना हुआ प्रांत) से यहां आए 1 लाख 20 हजार से अधिक स्वयंसेवक तथा 50 हजार से अधिक नागरिक प्रत्येक स्वयंसेवक अपने को इस पथ संचलन का साक्षी बनने पर स्वयं को धन्य महसूस कर रहा था।

यहां जांभे, मारुंजी एवं नेरे गांवों की सीमा पर आयोजित शिवशक्ति संगम में साढ़े चार सौ एकड़ के बनाए गए किलानुमा भव्य समतल परिसर में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि हमारी परंपरा शिवत्व की है, जिसे शक्ति का साथ मिले तो विश्व में हमें हमारी पहचान मिलेगी। उन्होंने कहा कि चरित्र ही हमारी शक्ति है। शीलयुक्त शक्ति के बिना विश्व में कोई कीमत नहीं। इस महत्तम उद्देश्य के लिए ही शिवशक्ति संगम अर्थात् सज्जनों की शक्ति के प्रदर्शन की आवश्यकता है।

अपने लगभग 45 मिनट के उद्बोधन में मोहन भागवत ने कहा कि डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के 125वें जयंती वर्ष में, स्त्री शिक्षा की शुरूआत करने वाली सावित्रीबाई फुले की जयंती के दिन यह विराट शिवशक्ति संगम प्रशंसास्पद है। शिवशक्ति कहने पर हमें छत्रपति शिवाजी महाराज का स्मरण आता है, अपने स्थान पर उचित राज करने वाला यह पहला राजा था। सीमित राज्य में राष्ट्र का विचार करने वाला यह राजा था। धर्म का राज्य चले, यह सोचने वाले आदर्श हिंदवी स्वराज्य के शिवाजी संस्थापक थे। उनके द्वारा किया गया संगठन तत्व निष्ठा पर निर्भर है। इसी तत्व निष्ठा के कारण हमने भगवा ध्वज को गुरू माना है।

उन्होंने कहा कि शिवाजी महाराज का स्मरण अर्थात् चरित्र, नीति का स्मरण है। महापुरूषों का स्मरण करते समय उन्होंने यह उद्योग कैसे किया, शक्ति कैसे उत्पन्न होती है, इसका स्मरण करना आवश्यक है. हमारी परंपरा शिवत्व की है. सत्य, शिव, सुंदरम हमारी संस्कृति है. समुद्र मंथन से जो हलाहल निर्माण हुआ, उसकी बाधा विश्व को ना हो इसलिए जिन्होंने प्राशन किया, वे नीलकंठ हमारे आराध्य दैवता हैं। उनके आदर्श की तरह हमारी यात्रा जारी है। शिवत्व की परंपरा शाश्वत अस्तित्व के तौर पर जानी जाती है। शिव को शक्ति का साथ मिलना चाहिए. शिव को शक्ति के सिवा समाज नहीं जानता। विश्व में शक्तिमान राष्ट्रों की बुराई पर चर्चा नहीं होती। वे हम चुपचाप सह लेते हैं लेकिन अच्छे, परंतु शक्ति में कम राष्ट्रों की अच्छी बातों पर चर्चा नहीं होती। उन राष्ट्रों की अच्छी सभ्यता को बहुमान नहीं मिलता।

डॉ. भागवत ने रवींद्रनाथ टैगोर जरिए उनके जापानी अनुभव को साझा करते हुए कहा कि उस व्याख्यान में कई छात्र नहीं आए, क्योंकि गुलाम राष्ट्र के नेता का भाषण हम क्यों सुनें, यह छात्रों का सवाल था। हमारे पास सत्य होने के बाद भी हम उसे बता नहीं सकते थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, युद्ध में विजय के बाद और अणु परीक्षण के बाद हमारी प्रतिष्ठा ही नहीं, देश की शक्ति भी बढ़ी है। इसलिए शक्ति की नितांत आवश्यकता है, शक्ति का अर्थ मान्यता है, शक्तिसंपन्न राजा भी शीलसंपन्न विद्वानों के सामने नतमस्तक होते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे यहां त्याग से, चरित्र से शक्ति जानी जाती है, यहां शक्ति का विचार शील से आता है, इसके लिए शिलसंपन्न  शक्ति की आवश्यकता है और शीलसंपन्न शक्ति सत्याचरण से बनती है।

उन्होंने कहा कि भेदों से ग्रस्त समाज की प्रगति नहीं होती। सुगठित, एक दूसरे की चिंता करने वाला समाज हो, तभी समाज का हित साध्य होता है, आपने इजराइल के स्वाभिमान एवं विकास का उदाहरण देते हुए बताया कि किस तरह यह देश 30 वर्षों में शक्ति का केंद्र बना है। उन्होंने कहा कि जब संकल्पबद्ध समाज सत्य की नींव पर खड़ा होता है तो इजराइल बनता है।

डॉ. भागवत ने कहा कि संविधान लिखते समय डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था कि राजनैतिक एकता आई है, किंतु आर्थिक और सामाजिक एकता के बिना वह टिक नहीं सकती। उन्होंने कहा कि हम कई युद्ध दुश्मन के बल के कारण नहीं, बल्कि आपसी भेद के कारण हार गए, भेद भुलाकर एक साथ खड़े न हो तो संविधान भी हमारी रक्षा नहीं कर सकता। सामाजिक भेदभावों पर कानून में प्रावधान कर समरसता नहीं आएगी। समरसता आचरण का संस्कार करना पड़ता है। तत्व छोड़कर राजनीति, श्रम के सिवा संपत्ति, नीति छोड़कर व्यापार, विवेक शून्य उपभोग, चारित्र्यहीन ज्ञान, मानवता के सिवा  विज्ञान और त्याग के सिवा पूजा सामाजिक अपराध है, ऐसा महात्मा गांधी कहते थे। श्री भागवत ने कहा कि संपूर्ण स्वतंत्रता, समता और बंधुता वाले समाज का निर्माण करना संघ का ध्येय है और इसी के लिए संघ की स्थापना हुई है।

उन्होंने कहा कि शिवत्व और शक्ति की आराधना होने के लिए प. पू. डॉ. हेडगेवार जी ने संघ की स्थापना की। राष्ट्रोद्धार के लिए कई उपक्रमों में सहभागी होकर अपना कर्तव्य निभाया। संघ की स्थापना से पूर्व और बाद भी उन्होंने सभी आंदोलनों में सहभागी होकर कारावास भी भुगता। सभी प्रकार की विचारधाराओं से उनका परिचय था। गुणसंपन्न समाज की निर्मिती के अलावा विकल्प नहीं है, यह उन्होंने जान लिया था। इसके लिए उन्होंने उपाय खोजा था, सबको एक साथ बांधने वाला धागा हिंदुत्व है। मातृभूमि के लिए आस्था यह हिंदू समाज का स्वभाव है, परंपरा से आई हुई यह आस्था है। इसके आधार पर संस्कृति बढ़ती है, पुरखों का गौरव होता है। आज विश्व को इसकी आवश्यकता है।

डॉ. भागवत ने कहा कि भारतीय मूल्यों की प्रतिष्ठापना करने हेतु संगठन की आवश्यकता है। राष्ट्रीय चरित्र वाले समाज निर्माण करना और देश को परम वैभव प्राप्त करवाना, यह संघ का कार्य है। किसी भी प्राकृतिक विपत्ति के समय आगे आने वाला स्वयंसेवक यह संघ की पहचान है। अपने हित का विचार छोड़कर समाज के तौर पर निरालस, निस्वार्थ सेवा करने वाला अर्थात् संघ स्वयंसेवक। यह गर्व का नहीं, अपितु 90 वर्षों से संघ जो कर रहा है, उस प्रयोग का फल है। संघ के सरसंघ चालक डॉ. भागवत ने कहा कि देश प्रतिष्ठित, सुरक्षित न हो तो व्यक्तिगत सुख की कीमत नहीं है। सभी जिम्मेदारियां संभालकर समाज सेवा करने वाली शक्ति अर्थात् संघ का कार्य है, अत: समाजहित के इस कार्य में सब सक्रिय हों, यही आज सभी से शुभकामना है।

इस अवसर पर प्रांत कार्यवाहक विनायकराव थोरात ने संघ के कार्य की जानकारी सभी को दी। वहीं सूखाग्रस्तों के लिए संघ, जनकल्याण समिति को आर्थिक सहायता करने का आह्वान किया। आयोजन का सूत्रसंचालन सुनील देसाई तथा संदीप जाधव के द्वारा किया गया। आयोजन में मंच पर सरसंघचालक मोहन भागवत के अलावा पश्चिम क्षेत्र संघचालक डॉ. जयंतीभाई भाडेसिया, प्रांत संघचालक नानासाहेब जाधव, प्रांत कार्यवाह विनायकराव थोरात उपस्थित थे।

शिवशक्ति संगम की विशेषताएं

शिवशक्ति संगम के लिए समाज के विभिन्न घटकों से गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति रही। विभिन्न पीठों के धर्माचार्य, राजनैतिक नेता, कला, सांस्कृतिक क्षेत्र के दिग्गज और उद्योग जगत के नामी लोग बड़ी संख्या में उपस्थित थे। यहां विशेष अतिथियों के लिए स्वतंत्र चार एवं धर्माचार्यों के लिए अलग प्रवेशद्वार एवं प्रबंध किए गए थे। इस प्रवेशद्वार पर संघ के कार्य एवं सेवाकार्यों की जानकारी प्रदान करने वाली सीडी, तिलगुल बड़ी, पानी की बोतल और शरबत देकर आगंतुकों का स्वागत किया गया। मुख्य उद्बोधन मंच 80 फुट ऊंचा, 200 फुट लम्बा तथा 150 फिट चौड़ा बनाया गया था, जिसके पीछे छत्रपति शिवाजी की राजधानी रायगढ़ किले की भव्य चित्रकारी उकेरी गई थी और उसके ठीक बीच में महाराजा शिवाजी की विशाल प्रतिमा लगाई गई थी।

बता दें कि साढ़े चार सौ एकड़ के ऊबड़-खाबड़ स्थान को 8 हजार स्वयंसेवकों ने 6 माह अथक परिश्रम कर समतल किया था, जहां यह स्वयंसेवकों का भव्य समागम हो सका। सुरक्षा की दृष्टि से स्वयंसेवक ही इस पूरे परिसर की हाईटेक व्यवस्थाओं के जरिए निगरानी कर रहे थे, मोबाइल जेमर लगाने के साथ यहां ड्रोन विमान भी सुरक्षा के मद्देनजर लगाए गए थे।

ये गणमान्य नागरिक रहे उपस्थित

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस, पुणे जिले के पालकमंत्री गिरीश बापट, पुणे के सांसद अनिल शिरोले, केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, सांसद हरिश्चंद्र चव्हाण, अरूण साबले, महाराष्ट्र भूषण शिवशाहीर बाबासाहेब पुरंदरे, विश्वनाथ कराड, लेखक द. मा. मिरासदार, शां.ब. मुजूमदार, डॉ. अशोक कुकडे, अनिरूद्ध देशपांडे, राहूल सोलापूरकर, रवींद्र मंकणी, उद्यमी अभय फिरोदिया, अनिरूद्ध देशपांडे, अतुल गोयल, धर्माचार्य द्वारिकापीठाधिश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी त्रिलोकतीर्थ, ज्ञानी चरण सिंह जी, कालसिद्धेश्वर महाराज, आचार्य विश्वकल्याण विजयश्री महाराज, मारूती महाराज पुरेकर, किसन महाराज पुरेकर, भास्करगिरी महाराज, बालयोगी ओतुरकर महाराज, शांती गिरीमहाराज, मकरंद दासजी महाराज, फरशीवाले बाबा, कलकीमहाराज, नारायणपूरचे नारायण महाराज, राष्ट्रसंत भैय्यूजी महाराज, ह.भ.प. बंडातात्या कराडकर आदि गणमान्य उपस्थित थे।

(हि.स.)