प्राचीन धरती पर भरपूर थी ऑक्सीजन

मेलबर्न, 25 मई | मोनास विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अंतरिक्ष की धूल का अध्ययन कर 2.7 अरब वर्ष पूर्व धरती के वातावरण के बारे में एक आश्चर्यजनक खोज की है। उन्होंने इस धारणा को चुनौती दी है कि प्राचीन धरती के वायुमंडल में ऑक्सीजन की कमी थी। शोधदल ने बताया कि प्राचीन धरती के ऊपरी वायुमंडल में उस वक्त ऑक्सीजन की मात्रा आज जितनी ही थी और मीथेन के एक धुंध की परत ऑक्सीजन से भरपूर ऊपरी परत को ऑक्सीजन की कमी वाले निचले परत से अलग करती थी।

मोनास विश्वविद्यालय के एंड्र टोमकिंस ने बताया, “अत्याधुनिक सूक्ष्मदर्शियों के प्रयोग से हमने पाया कि ज्यादातर माइक्रोमेटेराइट्स (अंतरिक्ष की धूल) कभी लौह धातु के कण रहे हैं। ये वायुमंडल की ऊपरी सतह में आयरन ऑक्साइड धातु में बदल गए थे, जो कि ऑक्सीजन की भरपूर मौजूदगी से ही संभव है।”

उन्होंने बताया कि उनके दल ने प्राचीन पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के पिलबरा क्षेत्र से मिले प्राचीन चूना पत्थर के नमूने का मोनाल सेंटर फॉर इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (एमसीईएम) में और ऑस्ट्रेलियन सिंक्रोट्रोन में अध्ययन किया।

टोमकिंस ने बताया, “यह एक रोमांचक परीक्षण था, क्योंकि पहली बार किसी ने प्राचीन धरती के ऊपरी वायुमंडल के नमूनों के रसायन विज्ञान के अध्ययन का तरीका निकाला है।”

यह शोध ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

इम्पीरियल कॉलेज ऑफ लंदन की सह शोधार्थी मैथ्यू जेंज ने बताया, “यह आश्चर्यजनक है, क्योंकि पहले यह बात स्थापित थी कि धरती के निचले वायुमंडल में 2.7 अरब साल पहले ऑक्सीजन की मात्रा काफी कम थी। लेकिन ऊपरी वायुमंडल में संश्लेषक जीवों की उपस्थिति से पहले ऑक्सीजन की इतनी मात्रा एक बड़ी पहेली बनी हुई थी।”

इस शोध के निष्कर्षो में बताया गया है कि उस समय धरती पर परतदार वायुमंडल था, जिनमें आपस में मेल काफी कम था और वायुमंडल के ऊपरी सतह में ऑक्सीजन की उच्च मात्रा पराबैगनी किरणों के कारण कार्बन डाईआक्साइड के टूटने से पैदा हुई थी।

इसके अलावा परतदार वायुमंडल के मुख्य कारण वायुमंडल के मध्य में मीथेन धुंध की परत का होना भी है।

मीथेन एक ऐसी परत है, जो पराबैंगनी किरणों को सोख लेती है, जिससे गर्मी पैदा होती है और वायुमंडल में एक गर्म इलाका पैदा हो जाता है, जिससे वायुमंडल की परतें आपस में मिल नहीं पाती हैं।

टोमकिन्स बताते हैं, “मानव के बाल की मोटाई के बराबर अंतरिक्ष की धूल के कणों के जीवाश्म के अध्ययन से हमें अरबों साल पहले के धरती के ऊपरी वायुमंडल के रसायनों की जानकारी मिली है।”

अब यह शोध दल अगले चरण में एक अरब साल पुराने चट्टानों का अध्ययन करेगा, ताकि वायुमंडलीय रसायनशा और संरचना में परिवर्तन के बारे जानकारी हासिल हो सके।

शोधकर्ताओं का कहना है, “हमारा जोर मुख्य रूप से ऑक्सीडेशन की परिघटना पर है, जो 2.4 अरब साल पहले हुई थी। तब निचले वायुमंडल में अचानक ऑक्सीजन की मात्रा में वृद्धि हो गई थी।”