बगदादी के चरमपंथ के खिलाफ एक पैगाम

आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) की विचाराधारा से प्रभावित एक बहका हुआ नौजवान हमारे लिए आतंकी, अतिवादी, चरमपंथी और बेशक राष्ट्रद्रोही हो सकता है, लेकिन एक माता-पिता के लिए बेटे के शिवाय कुछ नहीं हो सकता। मगर लखनऊ मुठभेड़ में मारे गए आतंकी सैफुल्लाह के पिता सरताज ने अपना दिल पत्थर कर अलगाववादी ताकतों को बड़ा झटका दिया है।

कानपुर के जाजमऊ निवासी इस पिता का कद देशवासियों की निगाह में बड़ा हो चला है। बेटे का शव लेने से इनकार कर इस्लामी आतंकी विचारधारा के समर्थक और उसके हिमायतियों को सरताज ने करारा तमाचा मारा है।

उन्होंने साफ तौर पर कहा कि अगर वह देश के खिलाफ है तो हमारा उससे कोई संबंध नहीं है। राजनीति के अतिवाद और विचाराधाराओं के इस संक्रमणकाल में उम्मीद की नई कोंपलें निकलती दिखती हैं। राष्ट्रवाद बनाम राष्ट्रभक्ति पर निचले स्तर पर गिरती बहस को सैफुल्लाह के पिता ने नई ऊंचाई दी है। आतंक को धर्म और संप्रदाय के चश्मे से दिखने वाली राजनीति और उसके समर्थकों के लिए इससे बड़ी शर्म की बात कोई नहीं को सकती। देशभक्ति का प्रमाण मांगने वालों के लिए यह एक सबक है।

सवाल सिर्फ हिंदू-मुसलमान और सैफुल्लाह का नहीं है। चिंता इस तरह के लाखों युवाओं की है, जिनके कदम गलत दिशा की तरफ बढ़ गए हैं और इस मुद्दे पर बहस देश, जाति, संप्रदाय, राजनीति और विचाराधारा से ऊपर उठकर करने की जरूरत है।

आजादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समानार्थी शब्द के रूप में परिभाषित किया जाने लगा है। यह समझना मुश्किल है कि यह अभिव्यक्ति का अतिवाद है या फिर संक्रमणकाल।

आजाद देश में कश्मीर और इस्लामी आजादी का सवाल क्यों उठ रहा है? भारत जितना हिंदुओं का, उतना ही मुसलमानों का है और उतनी ही सभी को अभिव्यक्ति और आजादी की समानता है। राष्ट्रवाद, अभिव्यक्ति और आजादी पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। लेकिन दुख इस बात का है की राजनीति में लाभ के लिए यह सब किया जा रहा है।

आज सोशल मीडिया पर चार लाइनों का ट्वीट देशभक्ति बनाम राष्ट्रद्रोह का पैमाना बन गया है। शायद यही अभिव्यक्ति का अतिवाद और अघोषित युद्ध है। कांग्रेस यह सबूत मांग रही है कि सैफुल्लाह का संबंध आईएएसआई से था या नहीं। जबकि देश की संसद का एक सदन सरताज के सम्मान में खड़ा है।

लखनऊ में 12 घंटे की चली कार्रवाई के बाद सुरक्षा बलों ने सैफुल्लाह को मार गिराया। उसने सरेंडर करने से मना कर दिया था। उसके पास भारी मात्रा में बम बनाने की सामाग्री, इस्लामिक चरमपंथ के झंडे, नक्शे, 650 करतूत, मोबाइल और जाने कितने सामन सुरक्षा एजेंसियां ने बरामद की हैं। ससंद में गृहमंत्री ने इस पर बयान भी दिया है।

मध्यप्रदेश के पिपरिया में हुए रेलगाड़ी विस्फोट में वह पाइप भी बरामद की गई है, जिस पर इस्लामिक स्टेट लिखा है, जो आईएसआईएस और उसकी विचारधारा से प्रभावित होने का बड़ा सबूत है। तीन-तीन राज्यों तेंलगाना, एम और यूपी पुलिस के समन्वय से इस कार्रवाई को अंजाम दिया गया। सुरक्षा एजेंसियों ने अब तक छह संदिग्धों को पकड़ा है। अब कितना सबूत चाहिए, कांग्रस और उसकी विचारधारा के समर्थकों को कौन बताए।

कांग्रेस को आतंक का अगर इतना प्रमाण चाहिए तो उसका जबाब सैफुल्लाह के पिता सरताज से पूछना चाहिए। आज उनके सम्मान और समर्थन में पूरा देश खड़ा है। उन्होंने एक नई मिसाल रखी है। उन युवाओं और उनके परिजनों के लिए यह बड़ा सबक है, जिनके घरों के युवा धर्म, जन्नत और इस्लाम के लिए अलगाववादी विचारधारा के चंगुल में जा फंसे हैं। अलगाववादी विचारधाराओं के लिए यह सबक है, जिनकी तरफ से अतिवाद और आतंक को खाद-पानी देने की कोशिश की जाती है।

एक तरफ जहां कश्मीर की आजादी के लिए तिरंगे को आग लगाने और आईएसआईएस के झंडे लहराने वाली जमात है, वहीं भारत के खिलाफ साजिश रचने वालांे को जवाब देने के लिए सरताज जैसे पिता भी हैं।

फिरकापरस्त और अलगाववादी ताकतों को खुद के चश्मे की धूल साफ कर लेनी चाहिए। जिस तरह सरताज ने उदाहरण पेश किया है, उस तरह हर आतंकी के मां-बाप और भाइयों को मिसाल पेश करनी चाहिए, जिससे इनके मनोबल और देश की अखंडता एवं एकता के साथ राजनीति करने वालों को सही वक्त पर सही जाबब मिल सके।

आतंक पर राजनीति बंद होनी चाहिए और इसे हिंदू और मुसलमान के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। यहां सभी समुदाय, जाति, धर्म, भाषा को पूरी आजादी है। देश में अगर आईएसआईएस मॉड्यूल बिखरा है और हमारे नौजवानों के कदम बहक रहे हैं तो उस मॉड्यूल का सफाया होना चाहिए।

हम बुरहान बानी और सैफुल्लाह को आदर्श नहीं मान सकते, लेकिन उस कौम से आने वाले आतंकियों को उसकी नर्सरी भी नहीं कह सकते। चरमपंथ की अलग जाति, भाषा और परिभाषा होती है। इसका किसी संप्रदाय से लेनादेना नहीं है। राजनीति को यह बात समझनी होगी। हम गंदी विचाराधारा के जरिए सत्ता की मंजिल जरूर हासिल कर सकते हैं, लेकिन लोकतंत्र को एक दिशाहीन बहस की ओर ले जाने से भारी नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे अहम मसलों पर राजनीतिक बयानबाजी से बचना चाहिए।

इस्लामी आतंकवाद के आका बगदादी को भारत भूमि से निकले सरताज के उस अजीज और देशभक्ति से पगे उस कड़े संदेश को भी पढ़ना चाहिए। -आईएएनएस/आईपीएन
===प्रभुनाथ शुक्ल
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)