मोदी-शी मुलाकात में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे पर चर्चा संभव

हंगझौ (चीन), 3 सितम्बर | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को यहां जी-20 शिखर सम्मेलन से इतर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करेंगे। संभावना जताई जा रही है कि मोदी राष्ट्रपति शी के साथ बातचीत के दौरान परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की सदस्यता और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) पर अपनी चिंता जाहिर करेंगे।

भारत यद्यपि दुनिया की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के इस मंच पर कमजोर वैश्विक अर्थव्यवस्था, गरीबी और हरित फाइनेंस को पटरी पर लाने के लिए ढांचागत सुधारों पर जोर देने की तैयारी में है, लेकिन मोदी एनएसजी में भारत की सदस्यता को समर्थन देने के लिए शी जिनपिंग को एक बार फिर मनाने की कोशिश करेंगे।

मोदी ने जून में ताशकंद में ‘शंघाई सहयोग संगठन सम्मेलन’ से इतर शी से मुलाकात की थी और उस दौरान भी उन्होंने 48 सदस्यीय एनएसजी की सदस्यता के लिए भारत का समर्थन करने का आग्रह किया था।

लेकिन चीन ने जून में सियोल हुई एनएसजी की बैठक में 10 देशों के एक समूह का नेतृत्व करते हुए एनएसजी में भारत के प्रवेश के मार्ग में रोड़ा अटका दिया था। इसके पीछे उसने यह तर्क दिया कि भारत ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया है।

चीन हालांकि, एनएसजी समूह में पाकिस्तान को शामिल करने का समर्थन करता रहा है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चीन के हंगझौ पहुंचने पर सितम्बर 03, 2016 को वहां के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर शानदार स्वागत किया गया।

उस समय भारत का रास्ता रोकने वाले चीन का रुख, अब समूह में भारत के प्रवेश को लेकर कुछ उदार नजर आ रहा है।

मोदी रविवार को शुरू हो रहे सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए शनिवार शाम को हांगझू पहुंच रहे हैं।

चीन के विशेषज्ञों को आशा है कि दोनों नेताओं के बीच मुलाकात ‘सफल’ रहेगी।

सरकारी थिंक टैंक, ‘चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेंपरेरी इंटरनेशनल रिलेशन्स’ में इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एंड साउथ ईस्ट एशियन एंड ओशनियन स्टडीज के निदेशक, हू शिशेंग ने आईएएनएस से कहा, “हम एनएसजी में भारत की सदस्यता के खिलाफ नहीं हैं। चीनी विदेश मंत्री (वांग यी) की भारत (अगस्त में) यात्रा के बाद दोनों पक्षों ने इस प्रकार के सभी मुद्दों को उठाने के लिए एक नए रास्ते विकसित करने पर सहमति जताई थी।”

शिशेंग भारत और चीन के बीच नए ‘तंत्र’ का जिक्र कर रहे थे, जिसके तहत निरस्त्रीकरण मामलों के संयुक्त सचिव अमनदीप सिंह गिल और चीनी विदेश मंत्रालय में हथियार नियंत्रण प्रभाग के महानिदेशक एम्बेसेडर वांग कुन एनएसजी मुद्दे पर चर्चा करेंगे।

उन्होंने कहा, “यह व्यवस्था इसलिए है, ताकि शीर्ष नेता (मोदी और शी) इन मुद्दों को लेकर परेशान न हों। इससे पहले जानकारी के अभाव में वे किसी सहमति पर नहीं पहुंच पाए थे। मुझे उम्मीद है कि इस बार यह मुलाकात सफल होगी।”

क्या एनएसजी में भारत के प्रवेश को लेकर चीन का रुख नरम होगा, इस सवाल पर हू ने कहा, “बिल्कुल।”

चीन के रुख में बदलाव की वजह का शायद दक्षिण चीन सागर विवाद के मामले में जुलाई में आए संयुक्त राष्ट्र के एक फैसले से भी संबंध है। फैसले में तथाकथित ‘नाइन डैश लाइन्स’ यानी विवादास्पद दक्षिण चीन सागर के लगभग 90 प्रतिशत हिस्से पर चीन के दावे को खारिज कर दिया गया था। चीन ने हेग स्थित न्यायालय के फैसले को मानने से इंकार कर दिया है।

भारत ने संबंधित देशों से समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र संकल्प (यूएनसीएलओएस) का सम्मान करने को कहा है, जिसके कारण चीन नाराज हो गया है और वह दुनिया में अपनी छवि खराब होने को लेकर चिंतित है।

माना जा रहा है कि पिछले महीने चीन के विदेश मंत्री वांग यी की यात्रा यह सुनिश्चित करने के लिए थी कि भारत एक प्रकार की सौदेबाजी के तहत जी-20 सम्मेलन में दक्षिण चीन सागर का मुद्दा न उठाए, जिसके बदले उसे एनएसजी की सदस्यता के मुद्दे पर चीन का समर्थन मिल सकता है।

हालांकि इस मुद्दे पर अगर भारत चुप रहता है, तो भी अमेरिका और जापान इसे उठा सकते हैं, जो कि चीन के लिए बेहद शर्मनाक स्थिति होगी।

दोनों नेताओं के बीच 46 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का मुद्दा भी उठने की संभावना है।

भारत ने प्रस्तावित आर्थिक गलियारे का कड़ा विरोध किया है, जो कि पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर गुजरेगा। भारत का दावा है कि उस पर उसका अधिकार है।

स्वतंत्रता दिवस समारोह में मोदी ने अपने भाषण में दोनों क्षेत्रों और बलूचिस्तान का जिक्र किया था, जिसने चीन की चिंता बढ़ा दी है। चीन को डर है कि क्षेत्र में अलगाववादी भावना को दिल्ली का समर्थन मिलने से पहले से ही विलंब से चल रही परियोजना लटक सकती है।

चीन के विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर भारत इन क्षेत्रों में समस्या पैदा करता है, तो इस स्थिति में चीन पाकिस्तान की सहायता करेगा।

भारत शिखर सम्मेलन में इन दो मुद्दों के अलावा वैश्विक ढांचागत सुधार, समावेशी विकास और जलवायु वित्तपोषण जैसे मुद्दों को भी उठा सकता है।

–आईएएनएस