संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2016 को अंतर्राष्ट्रीय दाल वर्ष घोषित किया

नई दिल्ली, 12 मार्च (जनसमा)।  संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2016 को अंतर्राष्ट्रीय दाल वर्ष घोषित किया है ताकि दालों के लाभ के बारे में जनता को जागरूक करने के साथ-साथ विश्व में दालों के उपयोग को भी बढ़ावा दिया जा सके। भारत सरकार ने देश में दालों के उत्पादन को लाभदायक बनाने के लिए अनेक कार्यक्रम शुरू किए हैं।

दालें विश्व की बड़ी आबादी विशेषरूप से लातिन अमेरिकी, अफ्रीकी और एशियाई देशों में खाद्य सुरक्षा की महत्वपूर्ण फसलें हैं। इन देशों में दालें परंपरागत भोजन का अभिन्न हिस्सा हैं और अक्सर छोटे किसान इनका उत्पादन करते हैं।

पशु आधारित महंगे प्रोटीन के मुकाबले दालें सस्ता विकल्प हैं और विश्व के गरीब भागों में जहां दूध के प्रोटीन स्रोत दालों के प्रोटीन स्रोतों के मुकाबले अधिक महंगे हैं, दालें खुराक में सुधार लाने के लिए आदर्श विकल्प प्रस्तुत करती हैं। संयुक्त राष्ट्र ने भी यह पाया है कि दालें भूख, खाद्य सुरक्षा, कुपोषण, पर्यावरण चुनौतियों और मानव स्वास्थ्य के समाधान में महत्वपूर्ण योगदान करती हैं।

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह 13 मार्च 2016 को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के केंद्रीय दाल अनुसंधान संस्थान कानपुर का दौरा कर रहे हैं, जो सरकार की इस बारे में प्रतिबद्धता को दर्शाता है। अपनी यात्रा के दौरान राधा मोहन सिंह संस्थान के अनुसंधान कार्य की निगरानी के साथ-साथ वैज्ञानिकों को भी संबोधित करेंगे और किसानों को सरकार द्वारा चलाई जा रही अनेक नीतियों और कल्याण कार्यक्रमों के बारे में जानकारी देंगे।

भारत ने दालों के उत्पादन में स्थिरता के मुद्दे पर वर्ष 2010 तक संघर्ष किया, क्योंकि दालों का कुल उत्पादन 14-15 मिलियन टन के आसपास ही बना रहता था।

पिछले कुछ वर्षों के दौरान देश में दालों का उत्पादन बढ़कर 18 मिलियन टन के आसपास हो गया है। 2013-14 में दालों का सर्वाधिक 19.78 मिलियन टन उत्पादन हुआ, जो एक रिकार्ड उत्पादन है। दालों के उत्पादन में 2.61 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर इस दशक के दौरान सर्वाधिक रही है, जबकि चावल, गेहूं और अन्य अनाजों की कुल विकास दर क्रमशरू 1.59 प्रतिशत, 1.89 प्रतिशत और 1.88 प्रतिशत रही।

चना उत्पादन और अरहर में सबसे अधिक विकास दर अर्जित की गई है। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि दालों में विकास की संभावनाएं अन्य फसलों से बेहतर रही हैं। यह दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता अर्जित करने की दिशा में एक क्रांतिकारी आंदोलन प्रतीत होता है।

भारतीय दाल अनुसंधान संस्थान बहुविषयी पहुंच के माध्यम से अग्रणीय क्षेत्रों में दाल अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका रहा है।

इस संस्थान की महत्वपूर्ण उपलब्धियों में मूंग की फसल परिपक्वता अवधि 75 से घटाकर 55 दिन, मसूर की 140 से घटाकर 120 दिन, चने की 135 से घटाकर 100 दिन कम करने वाली प्रजातियों के विकास सहित काबुली चने और मसूर के दानों का आकार बढ़ाने, मूंग और उड़द की प्रतिरोधी किस्मों के विकास और अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों को विकसित करने जैसी अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धियां शामिल हैं।

संस्थान ने परंपरागत और जीनोमिक्स दोनों ही माध्यमों से प्रजनन कार्यक्रम को सघन करने में कड़ी मेहनत की है, ताकि सक्षम फसल सुधार प्राप्त किए जा सकें। संस्थान ने संकर किस्म की अरहर के विकास पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है।

संस्थान द्वारा अरहर और चने की फलीवेधक निरोधी प्रजातियों का विकास उन्नत चरण में है। दाल आधारित प्रौद्योगिकियों के प्रसार के लिए कुशल विस्तार मॉडल का उद्देश्य देश में दालों के उत्पादन को किसानों के लिए लाभकारी बनाना है।

इस अग्रणी संस्थान द्वारा मनाए जा रहे अंतर्राष्ट्रीय दाल वर्ष समारोह से न केवल दालों के महत्व का संदेश प्रसारित होगा, बल्कि देश को दालों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनके उत्पादन को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी।