बनारस में चुनावी चौपड़ पर मोहरे फिट कर रहेे हैं भाजपा नेता

वाराणसी, 01 मार्च (जनसमा)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बनारस की सीटों पर चुनाव प्रचार के लिए 4 और 5 मार्च को वाराणसी आएंगे। उम्मीद है कि वे रैली भी करें और छोटी-मोटी जनसभाएं भी। वे काशी विश्वनाथ मंदिर भी जा सकते हैं और बनारस को क्योटो बनाने के अपने सपने को साकार करने के बारे में भी लोगों को जानकारी दे सकते हैं।

फोटो : एक रैली में भारतीय जनता पार्टी के समर्थक। (फोटो : आईएएनएस)

राजनीतिक प्रतिष्ठा की सीट वाराणसी इन दिनों सर्वाधिक चर्चा में है। अनेक केन्द्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष अमित शाह पिछले कुछ दिनों से यहां डेरा डाले हुए हैं और पूर्वांचल में भाजपा को विजय दिलाने के लिए अभियान चला रहे हैं।

राजनीति के जानकारों का कहना है कि अगर बनारस की सीटें भाजपा नहीं जीतती है तो यह उसके लिए एक धक्का होगा और विरोधी दल भी चुटकियां लेंगे।

इस संवाददाता ने देखा कि पिछले एक सप्ताह में केन्द्रीय मंत्री अरुण जेटली, स्मृति ईरानी, रविशंकर प्रसाद, जेपी नड्डा, पीयूष गोयल और संतोष गंगवार जैसे बड़े और दिग्गज नेता बनारस में न केवल राजनीतिक मूल्यांकन कर रहे हैं बल्कि मतदाओं से घुलमिल कर चुनावी चौपड़ पर अपने मोहरे फिट कर रहेे हैं।

हालात का अनुमान इससे ही लगाया जा सकता है कि जहां रविशंकर प्रसाद आमजन से संपर्क बनाने के लिए गलियों और बाजारो में घूमते हुए सड़कों पर कचौड़ी खा रहे हैं और वहीं स्मृति ईरानी लोगों को दावत दे रही हैं।

दूसरी ओर अरुण जेटली स्थानीय उद्योगपतियों से गलबहियां डाल कर मिल रहे हैं तो जेपी. नड्डा डाक्टरों के साथ मीटिंग कर रहे हैं। कहीं पीयूष गोयल पत्रकारों के हालचाल पूछ रहे हैं तो दूसरी ओर, संतोष गंगवार कार्यकर्ताओं की शिकायतों को दूर करने में लगे हैं। हालात को नार्मल बनाने और भाजपा के पक्ष में वोट डालने की हर चंद कोशिश की जा रही है।

जानकारों के अनुसार, यह जरूरी है कि इस क्षेत्र के विधानसभा क्षेत्रों में अगर पोलिंग ज्यादा नहीं हुई तो भाजपा को उससे नुकसान हो सकता है।

यदि मुद्दों की बात करें तो बनारस जैसा भारत का प्राचीनतम शहर आजादी के बाद से ही निरंतर उपेक्षा का शिकार रहा है। विकास के नाम पर जो होना चाहिए था वह नहीं हुआ। सरकारों ने गंगा के नाम से घोषणाओं द्वारा रुपयों की बाढ़ लगा दी पर जमीनी हकीकत यह बता रही है कि आज भी गंगा साफ होने के लिए तरस रही है, घाट दरक रहे हैं और मरहम का इंतजार कर रहे हैं।

सच कहा जाए तो गंगा के लिए कोई बड़ा काम नहीं हुआ है। शहर की सड़कों के हालात देखें तो वे भी अच्छे नहीं हैं। गंदे पानी के निकास की व्यवस्था असंतोषजनक है। अलबत्ता, फ्लाईओवर भी बन रहे हैं, रिंग रोड का काम भी चल रहा है और अंडरग्राउंड केबल भी डाली जा रही हैं लेकिन इन सबका संबंध रोजमर्रा की जिंदगी और आम आदमी की जरूरतों के साथ कोई तालमेल नहीं रखता है। पिछले पांच-सात दिनों में बिजली की हालत सुधरी है किंतु सालों से बिजली के लिए यह शहर तरस रहा है।

कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि समाजवादी-कांग्रेस गठबंधन सभी आठ सीटों पर अपनी बाजी मारेगा क्योंकि उनका कहना है कि बनारस में भाजपा के बड़े नेता तो प्रचार कर रहे हैं पर कार्यकर्ता आराम कर रहे हैं। अखिलेश यादव और राहुल गांधी भी 4 मार्च को वाराणसी पहुंच रहे हैं और उम्मीद है कि वे भी व्यापक स्तर पर जनसंपर्क अभियान करें।

बनारस क्षेत्र प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकसभा सीट है और मोदी अपने क्षेत्र में लोकप्रिय भी हैं लेकिन विधानसभा चुनाव में फैसला तो जनता के हाथ में ही होगा। इन चुनावों में ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो भविष्य ही बताएगा।