मध्य भारत में पहली बार हुआ धमनी का एंजियोप्लास्टी

रायपुर, 5 अगस्त । फोर्टिस एस्कॉर्ट हार्ट हॉस्पिटल के मुख्य हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. सतीश सूर्यवंशी और उनकी टीम ने डबल बाइफरकेशन एंजियोप्लास्टी करने में सफलता पाई है।

इसके बाद मरीज को एक दिन आईसीयू में रखने के बाद वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया और अगले ही दिन मरीज को डिस्चार्ज भी किया गया। पत्रकारों से चर्चा में डॉ. सतीश सूर्यवंशी ने बताया कि यह मध्य भारत और राज्य का डबल बिफरकेशन एंजियोप्लास्टी का पहला केस है।

डॉ. सतीश सूर्यवंशी ने बताया कि 58 साल का एक मरीज सीने में दर्द की शिकायत से फोर्टिस एस्कॉर्ट हार्ट सेंटर रायपुर में भर्ती हुआ। उसका इलेक्ट्रोकार्डिओग्राम में थोड़ा सा बदलाव था। मरीज का इकोकार्डियोग्राफी जांच की गई जो सामान्य थी।

मरीज की जब एजियोग्राफी जांच की गई, जिसमें हृदय की नलियों में रूकावट का पता चला। इस प्रकरण में भी मरीज की हृदय की मुख्य धमनी (लेफ्ट मेन आर्टरी) और उसकी बाकी दो शाखाएं भी अवरूद्ध थी। डॉ. सूर्यवंशी ने बताया कि ऐसे मरीज जिनके मुख्य शाखाओं में अवरूद्ध होता है उन्हें बाईपास सर्जरी करने की सलाह दी जाती है।

लेकिन मरीज के रिश्तेदार बाईपास करवाने के लिए तैयार नहीं थे, फिर उन्हें दूसरे विकल्प एंजियोप्लास्टी के बारे में बताया गया। इस तरह के प्रकरण में बाईफरकेशन एंजियोप्लास्टी किया जाता है।

डॉ. सूर्यवंशी का कहना है कि यह एक दुर्लभ प्रकरण है। ऐसा सामान्यत: बाइफरकेशन एंजियोप्लास्टी कम ही होता है। इस तरह के केस जिसमें दो जगह मुख्य धमनी और उसकी शाखाओं का एंजियोप्लास्टी होती है। यह तकनीकी रूप से काफी मुश्किल होता है।

क्योंकि इस तकनीक में स्टेंट जो स्टेनलेस ट्यूब का बना होता है। उसके अंदर से मुख्य नली की शाखा में तार डालना पड़ता है, जो काफी जटिल प्रक्रिया है। हृदय के एक मुख्य धमनी नली एक धमनी की शाखाओं में अवरोध होता है, जिसमें एंजियोप्लास्टी की जाती है, उस तकनीक को बाइफरकेशन (विभाजित) एंजियोप्लास्टी कहा जाता है।

ऐसे केस में मुख्य नली में स्टेंट डाला जाता है और उसकी शाखा में गुब्बारे से अवरोध को दूर किया जाता है। उसके बाद जो मुख्य नली है उसकी शाखा को एक साथ गुब्बारे से फुलाया जाता है, जिसे एक साथ किसिंग बैलून कहते हैं।

इस तकनीक से की गई एंजियोप्लास्टी को बाइफरकेशन एंजियोप्लास्टी कहा जाता है। इस प्रकरण में तार को दो नलियों में फुलाया गया, जो जगह से स्टेंट के आर-पार ले जाया गया।

डॉ. सूर्यवंशी ने बताया कि इस प्रकरण में जो मरीज की मुख्य धमनी में अवरोध था और उसके दो शाखाओं में जिसमें एक बड़ी और एक छोटी थी, ऐसे मरीज को कम से कम 5 साल तक खून पतला करने की दवाई लेनी पड़ती है।

उन्होंने बताया कि मरीज आमतौर पर बाईपास सर्जरी से बचना चाहते हैं, क्योंकि यह प्रक्रिया ज्यादा जटिल होता है, इसलिए ऐसे केसेस में मरीज बाईपास के लिए तैयार नहीं होते, वहां इस तकनीक का उपयोग किया जा सकता है। और जहां कोई विकल्प नहीं होता वहां पर बाइफरकेशन एंजियोप्लास्टी की जाती है।(आईएएनएस/वीएनएस)