हिमाचल प्रदेश में बंदरों को मारने के लिए ईको टास्क फोर्स का गठन

शिमला, 11 अप्रैल (जनसमा)। हिमाचल प्रदेश में बंदरों को वैज्ञानिक तरीके से मारने के लिए ईको टास्क फोर्स का गठन किया जाएगा ताकि खतरा बने हिंसक बन्दरों से मानव जीवन को बचाया जासके। हिमाचल सरकार ने केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय को 53 तहसीलों तथा उप.तहसीलों की सूची भेजी है ताकि किसानों तथा बागवानों को राहत देने के लिए बंदरों को नाशक जीव घोषित किया जा सकता है।  अभी तक 38 तहसीलों व उप तहसीलों में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा वर्मिन घोषित किए गए बंदरों को मारने का निर्णय लिया गया है। एक जानकारी के बनुसार प्रदेश में बंदरों की कुल संख्या दो लाख से ज्यादा है।

वन्य प्राणी तथा बंदरों की समस्या से निपटने के लिये गठित उच्च स्तरीय समिति की बैठक की अध्यक्षता करते हुए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा कि आज यहां लोगों की धार्मिक भावनाओं के चलते बंदरों को मारने से बचने के कारण अब यह कार्य राज्य वन विभाग द्वारा गठित ईको टास्क फोर्स को सौंपा जाएगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि बंदरों का खतरा प्रदेश के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। हमें बंदर बाहुल्य क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित करना होगा। उन्होंने कहा कि बंदर फसलों व फलों को बड़ा नुकसान पहुंचाने के अलावा बच्चों और महिलाओं पर हमला कर रहे हैं, इसलिए सरकार ने शिमला के नजदीक ‘रेस्क्यू सेंटर फॉर लाइफ केयर’ खोलने का निर्णय लिया है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय उच्च मार्गों, गांवों तथा अन्य शहरों में बंदरों की समस्या से निपटने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्य दलों का गठन किया जाएगा। इसके अलावा, मादा बंदरों में गर्भ निरोधक गोलियां से प्रजनन पर नियंत्रण लगाने के प्रयास भी किए जाएंगे।

गैर सरकारी सदस्य आशा कुमारी ने राष्ट्रीय उच्च मार्गों पर बंदरों को खाद्य पदार्थ खिलाने पर कानूनी कदम उठाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि कानून बनने के बावजूद भी राष्ट्रीय उच्च मार्गों से लगते स्थायी स्थलों पर कानून एजेंसियों द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, जिसके कारण कोई बड़ा हादसा हो सकता है।

उन्होंने कहा कि बंदरों तथा अन्य जंगली जंतुओं के उत्पात से निपटने के लिए एक स्थाई समाधान की आवश्यकता है। दलों को विशेष क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित करना होगा और इसके पश्चात बंदरों की जनसंख्या में आई गिरावट का पता लगाना होगा।

अतिरिक्त मुख्य सचिव तरूण कपूर ने कहा कि नसबंदी किए गए बंदरों की पहचान के लिए उनके माथे के बीच स्थाई टैटू उकेरे जाएंगे। उन्होंने कहा कि क्रियाशील होने पर मोबाइल बंदर नसबंदी इकाई वैन भी काफी सहायक सिद्ध होगी। उन्होंने कहा कि शिमला के समीप

‘रेस्क्यू सेंटर फॉर लाइफ केयर’ खोला जाएगा, जिसमें एक हजार आवारा तथा नसबंदी किए गए बंदरों को रखने की क्षमता होंगी।

कपूर ने कहा कि भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय को 53 तहसीलों तथा उप.तहसीलों की सूची भेजी गई है, जहां किसानों तथा बागवानों को राहत देने के लिए बंदरों को नाशक जीव घोषित किया जा सकता है।

उन्होंने बताया कि शीघ्र ही भारतीय वन्य प्राणी संस्थान ‘डब्ल्यूआईआई’ देहरादून के संयुक्त तत्वावधान में जंगली सूअर, सांभर तथा नील गाय को वर्मिन घोषित करने के लिए एक सर्वेक्षण किया जाएगा। अभी तक 38 तहसीलों व उप तहसीलों में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा वर्मिन घोषित किए गए बंदरों को मारने का निर्णय लिया गया है। उन्होंने कहा कि बच्चों पर बंदरों का आक्रमण रोकने के लिए शिमला के स्कूलों के समीप बंदरों की निगरानी के लिए पहरेदारों की तैनाती की गई है।

प्रधान मुख्य अरण्यपाल वन्य प्राणी एस.के. शर्मा ने जानकारी दी कि 2015 में किए गए सर्वेक्षण के आधार पर बंदरों की कुल 2,07,614 की अनुमानित आबादी में से इस वर्ष मार्च माह तक कुल 1,25,266 बंदरों की नसबंदी की जा चुकी है।

उन्होंने कहा कि वन मण्डलाधिकारियों की देखरेख में प्रत्येक वृत्त में गठित त्वरित कार्रवाई दलों को बंदरों की नसबंदी करने तथा इन्हें परिवहन पिंजरों तक लाने के लिए ट्रैंग्क्वालाइजिंग गन प्रदान की जाएंगी। उन्होंने कहा कि जाखू मंदिर में बंदरों के लिए एक आहार स्थल स्थापित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि पहली बार क्षतिपूर्ति राशि में वृद्धि की गई है।