Prerana Shrimali

शानदार रहा गुरू गंगानी स्मृति समारोह ‘‘गुरूवै नमः’’

fateh'Rajendra,Sandeep

बाएं से दाएं फतेहसिंह गंगानी, गुरू राजेन्द्र गंगानी, संदीप गंगानी एवं शहनवाज

बृजेन्द्र रेही द्वारा संपादित ‘जनसमाचार ब्यूरो’ की रिपोर्ट——

कथक गुरु स्वर्गीय श्री कुंदन लाल गंगानी की स्मृति में गुरू कुंदनलाल गंगानी संगीत अकादेमी द्वारा आयोजित दो दिवसीय ‘गुरुवे नमः’ समारोह इंडिया हेबिटाट सेंटर के  स्टेन आॅडिटोरियम में मंगलवार शाम संपन्न हो गया। कथक के लोकप्रिय गुरु राजेंद्र गंगानी के मार्गदर्शन में आयोजित यह समारोह एक यादगार समारोह कहा जाएगा।

इस समारोह की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि इसमें गुरु गंगानी की दो वरिष्ठ नृत्यांगनाओं श्रीमती उर्मिला नागर और प्रेरणा श्रीमाली ने गुरु जी से सीखे नृत्य कोश से कुछ बेजोड़ किन्तु कम प्रचलित नृत्य रचनाओं को प्रस्तुत कर समारोह को यादगार बना दिया।

Prerana Shrimali photo courtesy inni Singh

याद रहे कि गुरू श्रीमती उर्मिला नागर गंगानी जी कि पहली शिष्याओं में हैं और जयपुर शैली की वरिष्ठतम नृत्यांगना हैं।

समारोह की शुरुआत 30 जुलाई को हुई इसमें वरिष्ठ और विदुषी नृत्य गुरु प्रेरणा श्रीमाली ने गुरूजी की एक पुरानी और ध्रुपद अंग की सावन ऋतु पर आधारित बंदिश ‘सावन बन आयो’को शानदार भाव संयोजन के साथ प्रस्तुत किया।

ध्रुपद अंग में निबद्ध यह नृत्य प्रस्तुति एक यादगार नृत्य प्रस्तुति कही जाएगी।

इस नृत्य रचना के बोलों और नायिका के मनोभावों कोे नृत्यांगना प्रेरणा श्रीमाली ने अत्यंत सहज तरीके से कथक के व्याकरण और भाव पक्ष को माधुर्य के साथ प्रस्तुत किया।

इसके साथ ही प्रेरणा ने द्रुत गति में विख्यात शास्त्रीय गायक स्व. कुमार गंधर्व का वर्षा ऋतु पर आधारित एक खयाल ‘बैरन बरखा ऋतु आई’ प्रस्तुत कर पहले दिन के समारोह को यादगार बना दिया।

प्रेरणा श्रीमाली के अनुसार इस खयाल की पहली पंक्ति यानी स्थायी ‘‘ मैं आऊं तेरे मंदिरवा’’ कुमार जी की गायिका पत्नी श्रीमती वसुंधरा कोमकली ने लिखी, जिसका उत्तर कुमारजी ने अंतरे में लिखा ‘‘अरे मोरा मंदिरवा तोरा आहे रे’’।

प्रेरणा श्रीमाली के साथ तबले पर गुरूजी के पुत्र फतेह सिंह गंगानी की संगत भी यादगार और मन मोहने वाली थी। तबले पर उनके अंगुलियों की थिरकन एक चुम्बकीय आकर्षण पैदा कर रही थी।

प्रेरणा के साथ गायन में संदीप गंगानी एवं सारंगी पर शाहनवाज ने मधुर संगत की।

समारोह के पहले दिन श्रीमती समीक्षा शर्मा और महेन्द्र परिहार ने अपने युगल नृत्य द्वारा गुरू कुंदन लाल जी को श्रद्धा भाव से नृत्यांजलि अर्पित की। इसी दिन नीलाक्षी खंदकार सक्सेना और दिव्या मोरघोड़ा घोगाले ने भी युगल नृत्य किया।

समारोह के दूसरे दिन 31 जुलाई को नृत्याचार्य स्व. कुन्दन लाल जी की वरिष्ठतम शिष्या और नृत्य गुरू 73 साल की नृत्यांगना श्रीमती उर्मिला नागर ने कथक-कोश से 17 मात्रा की ‘शिखर ताल’’ प्रस्तुत की जो कथक के व्याकरण की एक बेजोड़ और बेमिसाल शानदार प्रस्तुति कही जाएगी।

उर्मिला नागर की प्रस्तुति ने कथक के उस पक्ष को प्रस्तुत किया जो उन्होंने सीखा, संजोकर रखा और उसे आने वाली पीढ़ियों के समक्ष प्रस्तुत कर शास्त्रीय नृत्य और संगीत की रियाज परंपरा का शानदार उदाहरण प्रस्तुत किया।

एक सुमधुर गायिका और नृत्यांगना उर्मिला नागर अपने आप में अकेली ऐसी नृत्यांगना हैं जो कथक की संतुलित प्रस्तुति के लिए जानी जाती है।

वे उस परंपरा की कलाकार हैं जो बोलों को पढ़ता है, ताल और सुर को अंतरमन में संजोता है और फिर रसिकजनों को समर्पित करता है।

उर्मिला नागर ने अपने गुरू की स्तुति के साथ नृत्य की शुरुआत की। उनके साथ गायन में उनके प्रतिभाशाली गायक पुत्र उज्ज्वल नागर ने साथ दिया।

गुरू कुंदन लाल गंगानी के पुत्र और जाने माने तबलावादक फतेहसिंह गंगानी ने शानदार संगत की।

इस दिन की एक यादगार प्रस्तुति युवा नृत्यांगना अनुराधा ठाकुर की भी रही।

अनुराधा ने जिस तेजी और तैयारी के साथ तीन ताल में कथक के व्याकरण पक्ष को प्रस्तुत किया उसने दर्शकों से प्रशंसा बटोरने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

गुरू स्व. नारायण प्रसाद जी की एक ठुमरी ‘‘ ऐसो हठीलो छैल, मग रोकत है गिरधारी’’ को भाव पूर्ण तरीके से प्रस्तुत कर युवा नृत्यकारों के बीच अनुराधा ने अपना खास मुकाम बनाया। इस बंदिश पर नृत्यांगना की भावाभिव्यक्ति सटीक थी।

 

समारोह में कथक के महान् कलाकार पण्डित बिरजू महाराज के साथ ही दिल्ली के शास्त्रीय नृत्य के गायकों, वरिष्ठ गुरूओं और नृत्यकारों रीता कोठारी, मंजूश्री चटर्जी, शाश्वति सेन, भाश्वती मिश्रा, अदिती मंगलदास, रमा वैद्यनाथन्, नलिनी जैन आदि ने भी उपस्थिति दर्ज की।

कार्यक्रम के दौरान संगतकारों के सहयोग को भुलाया नहीं जा सकता। उनके बिना कोई नृत्य प्रस्तुति संभव भी नहीं है। सभी संगतकारों ने पूरी मेहनत और लगन से अपनी कला साधना से संगत की। इन संगतकारों में हैं गुरू गंगानी जी के पुत्र योगेश गंगानी, समी उल्ला खां, अयूब खां, महावीर गंगानी, मोहित गंगानी, विनोद गंगानी, संदीप गंगानी, आशीष गंगानी एवं धीरेन्द्र तिवारी।

समारोह के मार्गदर्शक, गुरू कुंदन लाल जी के पुत्र और समकालीन नृत्यकारों में लोकप्रिय नर्तक राजेन्द्र गंगानी ने कहा कि यह समारोह एक सफल समारोह रहा किन्तु इसका सारा श्रेय कथक के प्रति लगाव रखने वाले रसिकजनों का सहयोग और वरिष्ठ गुरुओं का आशीर्वाद ही है।