मॉरिशस : लघु भारत या विस्तारित भारत

माॅरिशस में गंगा तलाव के तट पर लेखक लक्ष्मीनारायण भाला, यमुना सिद्धियान, बबिता सिद्धियान,अमरकृष्ण भद्र एवं प्रकाश मेनन

माॅरिशस में गंगा तलाव के तट पर लेखक लक्ष्मीनारायण भाला, यमुना सिद्धियान, बबिता सिद्धियान,अमरकृष्ण भद्र एवं प्रकाश मेनन

===लक्ष्मीनारायण भाला====

मॉरिशस को लघु भारत क्यों कहा जाता है, यह जानने एवं समझने की जिज्ञासा के  कारण बंगाल के एक प्रचारक बंधु अमरकृष्ण भद्र मॉरिशस जाने का अवसर खोज रहे थे। मेरे मॉरिशस प्रवास की जानकारी मिलते ही उन्होंने साथ चलने की योजना बनाई। परिवार से आर्थिक सहयोग एवं संघ के अधिकारियों से सम्मति के बाद हमारी प्रवास योजना निश्चित हुई।

मॉरिशस में हिन्दु स्वयंसेवक संघ की महिला विभाग की संयोजिका संगीता सौलिक की बेटी, भारत में उच्च शिक्षा पाते हुए मुझे स्थानीय अभिभावक मानती रही है। उसके विवाह का निमंत्रण इस प्रवास का प्रमुख़ निमित्त था।

हम मुम्बई स्थित यशवंत भवन 31 जुलाई की रात पहुंचे। चार आनक एवं पचास बंशी साथ ले जाने का अनुरोध मॉरिशस के सह संघचालक आत्मानंद जी पहले ही कर चुके थे। दो दिन में उसकी व्यवस्था कर 2 अगस्त की रात 12 बजे हम हवाई अड्डे पहुंचे। 6 घंटे में “पैकिंग-बुकिंग-चेकिंग तथा वेटिंग” के बाद भारतीय समय सुबह 6:45 पर हमने उड़ान भरी।

फोटो: माॅरिशस में सात रंग की मिट्टी का टीला

मॉरिशस समय के अनुसार 11:15 बजे हम शिवसागर रामगुलाम हवाई अड्डे पर उतरे। 6 घंटे की थकान भरी उड़ान और थोड़ी प्रतीक्षा के बाद रामायण सेंटर के निदेशक पंडित राजेन्द्र अरुण श्रीमती विनूजी के साथ जब हमें लेने हवाई अड्डे पहुंचे तो हमारी थकान का स्थान उमंग ने ले लिया। उनके घर जाकर स्नानादि से निवृत्त हो जलपान से तरोताजा होकर हम पूर्व निर्धारित स्थान पर अगले 9 दिन के निवास हेतु रवाना हुए।

माॅरिशस में 108 फिट ऊंची शिव की प्रतिमा

माॅरिशस में 108 फिट ऊंची शिव की प्रतिमा

कुंती रामटहल के घर उनकी बेटी बबिता तथा नातिनी यमुना ने हमारा स्वागत किया। 8 बार मॉरिशस का प्रवास हो जाने के कारण भारत में पढ़ने वाले कई विद्यार्थियों का अभिभावकत्व मुझे प्राप्त हुआ है, जिनमे यमुना भी एक है, जो जेएनयू की छात्रा है। बीती रात के जागरण की थकान आज की रात ने मिटा दी और बरसाती मौसम ने दूसरे दिन भी हमें घर में ही बंदी बनाए रखा। संगीताजी का घर उसी मोहल्ले में होने के कारण हमने अपनी उपस्थिति उनके घर जाकर दर्ज करा दी । मॉरिशस देश की जागरूकता का उदाहरण  हमें अगले दिन प्रात: ही देखने को मिल गया जब मॉरिशस के चिकित्सा विभाग से हेल्थ वर्कर हमारे रक्त परीक्षण के लिए आ गए। अर्थात मॉरिशस में हर प्रवासी के निवास और स्वास्थ्य की दोहरी जांच की अकाट्य व्यवस्था है।

तीसरे-चौथे और पांचवें दिन वैवाहिक कार्यक्रमों की व्यस्तता रही। हल्दी, सात फेरे और नव दंपत्ति का स्वागत समारोह, यह तीन दिन का क्रम था। हल्दी के दिन भोजपुरी गीतों के माध्यम से परिवार के सभी सदस्यों का परिचय कराते हुए कन्या को आशीर्वाद देने का क्रम तीन घंटे तक चलता रहा। सात फेरों वाले दिन प्रधानमंत्री अनिरुद्ध जगन्नाथ महोदय का प्रायः दो घंटे तक उपस्थित रहना हमारे लिए सुखद आश्चर्य का विषय था।

पं. विश्वामित्र के मुख से हो रहे मंत्रोच्चार में जम्बूद्वीपे, भरतखंडे, आर्यावर्ते, शुभलग्ने, शुभनक्षत्रे, मॉरिशसदेशे आदि शब्द सुनकर भारत की राजधानी से 5835 किलोमीटर की दूरी पर भी हमें भारत में ही होने की अनुभूति हो रही थी। सात फेरों के हर मंत्र का अर्थ समझाते हुए पंडितजी गृहस्थ धर्म के आदर्श स्थिति की व्याख्या कर रहे थे।

यहाँ अधिकतर विवाह शनिवार – रविवार को ही होते हैं। इन दो दिनों में ही शुभ लग्न खोज कर सभी रीति-रिवाज निभाए जाते हैं। हम मॉरिशस को चाहे लघु भारत कहें या विस्तारित भारत, मन्त्रों की रचना में तो इसे भारत का ही अंग मान लिया है।

तीसरे दिन नव दम्पत्ति के गरिमापूर्ण स्वागत समारोह के साथ वैवाहिक कार्यक्रम पूरे हुए। सारे आयोजन में न तो फूहड़ नाच-गाना और न ही प्रदूषणी पटाखे। यह बात भारतवासियों को मॉरिशस से सीखनी चाहिए। इसी व्यस्तता में समुद्र किनारे गंगा माई के मंदिर का दर्शन तथा समुद्र दर्शन का हमने लाभ उठाया। गंगा माई के प्रति मॉरिशस वासियों के मन में बसी हुई श्रद्धा को देखकर हम गदगद् थे।

जो आनक एवं वंशी हम भारत से लाए थे, आज का दिन उसके उपयोग का दिन था। हिंदु स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवक एवं सेविकाओं ने मिल कर पथ संचलन एवं गुरु पूजन का कार्यक्रम आयोजित किया था। एक मुहल्ले को निनादित करते हुए 80 से अधिक सेवक-सेविकाओं के इस पथ संचलन में बंशी वादक सेविकाएं थीं तो आनक वादक सेवक थे। विश्व विभाग के सह प्रमुख डॉ. राम वैद्य भी संचलन करने वालों की पंक्ति में थे। संचलन के उपरांत गुरु पूजन हेतु दो ध्वज फहराए गए। सेवक सेविकाओं ने ध्वज पूजन अर्थात् गुरु पूजन किया। सांघिक गीत, एकल गीत, बौद्धिक एवं सामूहिक प्रार्थना के बाद दोनों ध्वजों का अवतरण हुआ। प्रसंगानुरूप भाषण, भोजन आदि का आनंद लेते हुए सब लोग अपने-अपने गंतव्य की ओर गए।

मॉरिशस प्रवास का हमारा छठवां दिन व्यस्तता का दिन था। चिन्मय आश्रम के शांत – पवित्र वातावरण से हमारा आज का प्रवास प्रारम्भ हुआ। केरल के प्रकाश मेनन भी हमारे साथ चलने को तैयार हुए। हमारे यजमान परिवार की तीन पीढ़ियों की तीनों महिलाए और हम तीनों ने मिलकर किराए का वाहन लिया। `गंगा-तलाव` के पावन परिसर में हम पहुंचे। 108 फ़ीट ऊँची भगवान शिव की मनमोहक मूर्ति के पास ही माँ दुर्गा की निर्माणाधीन मूर्ति प्रायः 75 प्रतिशत बन चुकी है। भक्तों की भीड़ में हम सब ने भी गंगा तलाव के किनारे खड़े होकर तर्पण एवं स्थान- स्थान पर स्थापित मूर्तियों और मंदिरों में जाकर पूजन-अर्चन किया। भारत से बार-बार गंगाजल लाकर इस तालाब में डाला जाता है ताकि तालाब का गंगत्व भाव बना रहे और बढता भी रहे। गाल पर उभरे तिल के सामान तालाब के बीचों बीच छोटासा हरियाली भरा टीला तालाब की शोभा को मानो चार चाँद लगा रहा हो। इस तालाब की मछलियां शायद समुद्र की मछलियों से अधिक निर्भीक एवं सुखी होंगी क्योंकि वे जान चुकी हैं कि उन्हें खिलाने वाले ही यहां आते हैं, पकडने वाले या खाने वाले नहीं।

सात रंग की मिट्टी का टीला मॉरिशस का एक दर्शनीय स्थल है। झरना, चिडियाघर, बॉटनीकल गार्डेन आदि के साथ रास्तों के दोनों ओर ऊंचे पेड तथा सब तरफ गन्ने की खेतों का आनंद लेते हुए हम  कृष्णानंद सेवा आश्रम पहुंचे। सूर्यदेव बिशेसर की अध्यक्षता में ह्युमैन सर्विस ट्रस्ट द्वारा चलाए जा रहे अनाथ एवं दिव्यांगों के सेवा कार्यों का अवलोकन कर मन की संवेदनाएं जाग उठीं। इनके द्वारा संचालित आयुर्वेदिक व प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र भी प्रशंसनीय कार्य है।

सातवां दिन अमर दा का दिन था। केले के पौधों पर लटकते फूल अर्थात `मौचा` को नष्ट होते देख उनके अंदर छुपा हुआ किसान जाग गया। `मौचा` के फूल एवं `मानकचू` की जड को किस प्रकार भोजनोपयोगी एवं स्वादिष्ट बनाया जा सकता है इसका प्रशिक्षण देने का अवसर जिन दो घरों में हम गये वहां उन्हें प्राप्त हुआ। उन्होंने सहज भाव से कुटुम्ब प्रबोधन का काम भी किया। जिस घर में हमारा निवास था उस घर के रसोई घर में तो आज उनका ही राज था। उनके मार्गदर्शन में बने भोजन के स्वाद का सभी ने आनंद लिया। संघ कार्यकर्ता का सम्पर्क रसोई घर तक होना चाहिए इस सिद्धांत का प्रत्यक्ष अनुभव उस परिवार को हुआ। शाम को विवाह वाले घर जाकर उनसे हमने विदाई ली एवं रात्रि में एक मित्र के निमंत्रण पर उनके रेस्टोरेंट में भोजन हेतु गए। यहां भी अमर दा की रुचि के अनुसार उन्हें इस प्रवास का पहला बंगाली भोजन मिला।

हम मॉरिशस की अपनी धर्म बहन के घर थे, अत: रक्षा बंधन अग्रिम ही मना लिया जाय यह सोच कर आज आठवें दिन हमने कुंती बहन से राखी बंधवा ली। बहन भाईयों में परम्परागत उपहारों का आदान प्रदान भी हुआ। भोजनोपरांत रामायण सेंटर के प्रमुख कार्यकर्ता हरिनाथ जी के साथ हिंदु महासभा के पोर्ट लुईस स्थित कार्यालय तथा कुछ मित्रों के दफ्तर होकर हम रामायण सेंटर पहुंचे। सात दिन के रामायण पाठ का आज समापन था। भजन, परिचय, सम्बोधन तथा जलपान के उपरांत वहीं पर रात्रि निवास की व्यवस्था थी। रामायण सेंटर में भव्य राम मंदिर का निर्माण तथा विभिन्न कार्यक्रमों के द्वारा जनता में राम के प्रति श्रद्धा जगाने का सफल प्रयोग देख कर मन हर्षित हो उठा।

अगला दिन हमारे मॉरिशस प्रवास का अंतिम दिन था। मॉरिशस के भूतपूर्व संघ चालक रघुनाथ दयाल के अस्वस्थ होने की जानकारी मिलने के कारण उनसे भेंट करने की इच्छा होना स्वाभाविक था। हरिनाथ जी ने हमारी यह इच्छा भी पूरी कर दी। किडनी के मरीज होने के कारण सप्ताह में तीन बार डायलिसिस की प्रक्रिया से उन्हें गुजरना पडता है। इस अवस्था में भी हिंदुत्व पर लिखी जा रही उनकी पुस्तक को पूरी करने का उनका आग्रह देखकर मेरा मन उनके प्रति श्रद्धा से भर गया। रघुनाथ दयाल जी से भावभीनी विदाई लेकर हमने प्रस्थान किया। रामायण सेंटर के मुखिया पं. राजेंद्र अरुण तथा श्रीमती वीनू अरुण एवं हरिनाथ जी ने हमें हवाई अड्डे तक आकर राम मंदिर के लोकार्पण पर पुनरागमन का आग्रह करते हुए विदा किया।

नौ दिन की इस मॉरिशस यात्रा में हमने प्राय: 400 किलोमीटर का सफर किया होगा। 67 किमी उत्तर दक्षिण तथा 43 किमी पूरब पश्चिम में फैले हुए और तेरह लाख की जनसंख्या वाले इस देश को बार- बार नमन करने को मन करता है क्योंकि इसका साफ सुथरापन, अनुशासन, सम्पन्नता, सांस्कृतिक चेतना, आतिथ्य परायणता आदि विशिष्टताएं भारत के लिए अनुकरणीय हैं।                                                        **********