Dharm Sansad

न्यायपालिका तथा सरकार हिन्दू परम्पराओं के पालन में हस्तक्षेप से दूर रहें

प्रयागराज में हो रहे धर्मसंसद का यह अभिमत है कि न्यायपालिका तथा सरकार को हिन्दू परम्पराओं व मान्यताओं के पालन में हस्तक्षेप से दूर रहना चाहिए।

विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा आयोजित दो दिवसीय धर्म संसद ने एक प्रस्ताव पारित कर कहा है कि क्षेत्रवाद, भाषावाद, प्रान्तवाद, जातिवाद व छद्म धर्मनिरपेक्षता के नाम पर देश को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।

प्रयागराज में गुरूवार 31 जनवरी को शुरू हुई  दो दिवसीय धर्म संसद ने  प्रस्ताव में चेतावनी देते हुए हिन्दू समाज से कहा  है कि इससे दिग्भ्रमित न होते हुए ऐसे कुत्सित प्रयासों का संगठित होकर प्रतिकार करें।

धर्म संसद का आयोजन सेक्टर-14, ओल्ड जी. टी. रोड, कुम्भ मेला क्षेत्र, प्रयागराज में किया गया।

धर्मसंसद जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती जी महाराज की अध्यक्षता में  हुई।

मंच पर विशेष रूप से जगद्गुरु रामानन्दाचार्य नरेन्द्राचार्य जी महाराज, जगद्गुरु रामानुजाचार्य हंसदेवाचार्य जी महाराज, निर्मल पीठाधीश्वर श्रीमहंत ज्ञानदेव जी महाराज, पूज्य स्वामी जितेन्द्रनाथ जी महाराज, पूज्य सतपाल जी महाराज, पूज्य स्वामी वियोगानन्द जी महाराज, पूज्य स्वामी विवेकानन्द सरस्वती जी महाराज, आनन्द अखाड़ा के आचार्य म.म. बालकानन्द जी महाराज, निरंजनी अखाड़ा के पूज्य स्वामी पुण्यानन्द गिरि जी महाराज, पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज, पूज्य स्वामी परमानन्द जी महाराज, पूज्य स्वामी अयप्पादास जी महाराज, पूज्य स्वामी जितेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज, डाॅ. रामेश्वरदास जी वैष्णव, पूज्य श्रीमहंत नृत्यगोपालदास जी महाराज तथा म.म. जयरामदास जी महाराज सहित 200 सन्त मंच पर एवं 3000 से अधिक सन्त सभागार में उपस्थित थे।

प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि जिन राजनैतिक दलों द्वारा भी ऐसे प्रयास किए जा रहे हों उनसे भी सावधान रहें ।

धर्मसंसद में यह प्रस्ताव स्वामी गोविन्द देव गिरि जी ने रखा तथा इसका अनुमोदक स्वामी जितेन्द्रानन्द जी ने किया।

प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों से दलित-मुस्लिम गठजोड़ करने का भी असफल प्रयास हो रहा है। जिन जेहादियों को बाबा साहब अम्बेडकर ने स्वयं बर्बर तथा अविश्वसनीय करार दिया था,  अब उन्हीं के नाम पर यह दुष्चक्र किया जा रहा है जिसे उजागर करने की आवश्यकता है।

स्वामी रामदेव जी

इस अवसर पर स्वामी रामदेव जी ने कहा कि देश में समान नागरिक कानून तथा समान जनसंख्या का कानून लाना चाहिए तथा गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानन्द जी महाराज ने कहा कि सरकार को शीघ्र ही गोसेवा आयोग बनाना चाहिए।

शबरीमला संघर्ष

धर्म संसद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि शबरीमला समाज का संघर्ष है। वामपंथी सरकार न्यायपालिका के आदेशों के परे जा रही है। वे छलपूर्वक कुछ गैर श्रद्धालुओं को मन्दिर के अन्दर ले गए हैं, जो अयप्पा भक्त हैं, उनका दमन किया जा रहा है, जिससे हिन्दू समाज उद्वेलित है।

एक अन्य प्रस्ताव में शबरीमला संघर्ष को अयोध्या आन्दोलन के समकक्ष मान कर कहा गया है कि हिन्दू परम्पराओं के प्रति समाज में अश्रद्धा और अविश्वास निर्माण कर अपमानित और कलंकित करने का कुप्रयास किया जा रहा है।

धर्मसंसद में यह प्रस्ताव स्वामी परमात्मानन्द जी ने रखा तथा अनुमोदन स्वामी अयप्पा दास जी ने किया।धर्मसंसद में यह प्रस्ताव स्वामी परमात्मानन्द जी ने रखा तथा अनुमोदन स्वामी अयप्पा दास जी ने किया।

प्रस्ताव में केरल सरकार की निन्दा करते हुए कहा गया है कि केरल की वामपंथी सरकार जेहादी तत्वों, वामपंथी अराजक गुण्डों तथा प्रशासन के माध्यम से भगवान अयप्पा के भक्तों पर दमनचक्र चला रही है।

धर्मसंसद का यह अभिमत है कि न्यायपालिका तथा सरकार को हिन्दू परम्पराओं व मान्यताओं के पालन में हस्तक्षेप से दूर रहना चाहिए।

धर्मसंसद केरल की वामपंथी सरकार के इस दमनचक्र की घोर भत्र्सना करती है और हिन्दू समाज से आह्वान करती है कि इस दमनचक्र के विरोध में राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जाए। धर्मसंसद ने दानों प्रस्ताव सर्वानुमति से पारित किये।