GSAT-9

दक्षिण एशिया सैटेलाइट-9

भारत का सर्वप्रथम दक्षिण एशिया सेटेलाइट (एसएएस) सफलतापूर्वक लांच किए जाने से छह पड़ोसी देशों के बीच संचार प्रणाली को प्रोत्‍साहन मिलेगा और आपदा संपर्क में सुधार होगा। दक्षिण एशिया सेटेलाइट ने सहयोग का नया क्षतिज प्रदान किया है और यह अंतरिक्ष कुटनीतिक में महत्‍वपूर्ण स्‍थान बनाया है।

2230 किलोग्राम वजन के इस उपग्रह की जीवन अवधि 12 वर्षों की है और यह क्षेत्र में संचार, प्रसारण तथा इंटरनेट सेवाओं को समर्थन देगा। सीमित प्रौद्योगिकी संसाधन के साथ यह भौगोलिक और आर्थिक दृष्‍टि से चुनौती पूर्ण है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा निर्मित और भारत द्वारा धन पोषित जियो स्‍टेशनरी कम्‍युनिकेशन सैटेलाइट-9 (जीएसएटी-9) आंध्र प्रदेश के तट श्रीहरिकोटा से 5 मई को जीएसएलवे-एफ 09 रॉकेट से लांच किया गया।

यह उपग्रह संपूर्ण क्षेत्र की प्रगति के लिए वरदान साबित होगा। आशा की जाती है कि यह उपग्रह अफगानिस्‍तान, बांगलादेश, भूटान, भारत, मालीद्वीव, नेपाल तथा श्रीलंका के आपसी संबंधों को सुदृढ़ बनाएगा।

इसरो द्वारा सफलतापूर्वक लांच किए जाने के अवसर पर समारोह में मोदी, अफगान के राष्‍ट्रपति अशरफगनी बांगलादेश के प्रधानमंत्री शेख हसीना, भूटान के प्रधानमंत्री थेरिंग तोबगे, मालद्वीव के राष्‍ट्रपति अब्‍दूला, नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्‍प कमल दहल और श्रीलंका के राष्‍ट्रपति मैत्रीपाल सिरीसेना वीडियो कांफ्रेंस के माध्‍यम से शामिल हुए।

पाकिस्‍तान इस परियोजना का हिस्‍सा नहीं है क्‍योंकि उसने 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रस्‍तावित अनमोल उपहार को स्‍वीकार करने से इंकार कर दिया था। प्रारंभ में इस प्रस्‍ताव को सार्क उपग्रह नाम देने का नाम दिया गया था लेकिन पाकिस्‍तान के इंकार करने से इसका नाम दक्षिण एशिया उपग्रह रखा गया।

जीएसएटी-9 जियो सिंकोनस संचार और मौसम विज्ञान उपग्रह हैं। यह उपग्रह डीटीएच (डायरेक्‍ट टू होम) के संदर्भ में सभी शामिल देशों को क्षमता प्रदान करेगा और आपदा सूचना अंतरण के लिए परियोजना के देशों को एक दूसरे से जोड़ेगा। उपग्रह बेहतर शासन संचालन, बेहतर बैंकिंग, दूरदराज के क्षेत्र में शिक्षा को बेहतर बनाने में सहायक होगा।  सक्षम प्राकृतिक संसाधन की मैपिंग हो सकेगी।  टेलीमेडिसन के माध्‍यम से लोगों को जोड़ेगा और प्राकृतिक आपदाओं के बारे में तुरंत जानकारी देगा।

सेटेलाइट में 12केयू बैंड के ट्रांसपॉंडर्स लगे है। छह देश अपनी संचार व्‍यवस्‍था के उपयोग बढ़ाने में इसका  उपयोग करेंगे। यह साझा दक्षिण एशिया प्रोग्रामिंग के अतिरिक्‍त होगा। परियोजना में शामिल देशों को अपनी अवसंरचना विकसित करनी होगी और भारत इसमें सहायता देने का इच्‍छुक है।

यह परियोजना लगभग 450 करोड़ रू. की है और उपग्रह की कीमत 235 करोड़ रू. है। यह जीएसएलवी का 11वां लांच है। एसएएस अपनी कक्षा…जीओ सिंक्रोनस ट्रांस..(जीटीओ) में परिक्रमा कर रहा है। आने वाले दिनों में उपग्रह के लिक्‍विड एपोजी मोटर (एलएएम) चरणों में अंतिम सर्कुलर जियो स्‍टेशनरी (जीओएस) तक उठाया जाएगा। ऑब्रिट ऊपर उठाने की क्रिया पूरी होने के बाद इसे सेवा में लगाया जाएगा।

भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो की सफलता जारी है। इस उपग्रह के लांच होने से भारत की ख्‍याति में एक और पंख लग गया है। भारत ने इस वर्ष फरवरी में एक ही बार में एकल रॉकेट से 104 उपग्रहों को लांच करके रिकॉर्ड कायम किया है।

इसरो अब तक 226 उपग्रह कक्षा में भेज चुका है। इसमें विदेश से भेजे गए 108 उपग्रह शामिल हैं। आने वाले सालों में सात की जगह 12 उपग्रह लांच करके अपनी क्षमता बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। वर्तमान में और उपग्रह बनाये जा रहे हैं और लागत में कमी की जा रही है।

–  के.वी. वेकेंटसुब्रमण्‍यम

*लेखक स्‍वतंत्र पत्रकार और स्‍तंभकार हैं। लेखक को प्रिंट, ऑनलाइन, रेडियो और टेलीविजन मीडिया में चार दशक तक काम करने का अनुभव प्राप्‍त है।