अदालत से माल्या के खिलाफ गैर-जमानती वारंट की मांग

नई दिल्ली, 10 मई| प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने राष्ट्रीय राजधानी की एक अदालत में एक अर्जी दायर कर शराब कारोबारी विजय माल्या को अदालत में व्यक्तिगत तौर पर पेशी से स्थाई तौर पर दी गई छूट के आदेश को वापस लेने और विदेशी मुद्रा नियमों के उल्लंघन के मामले में उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करने का अनुरोध किया है। ईडी के सरकारी अभियोजक एन.के.मत्ता ने पिछले सप्ताह मुख्य महानगर दंडाधिकारी सुमित दास के समक्ष एक अर्जी दायर कर उन्हें इस बात से अवगत कराया कि एजेंसी, आरोपी माल्या के खिलाफ काले धन को वैध बनाने (मनी लांड्रिंग) के मामले की जांच कर रही है। इसमें माल्या को समन जारी किया गया है, लेकिन इस वक्त विदेश में रह रहे माल्या समन का अनादर कर रहे हैं।

मत्ता ने अदालत से यह भी कहा कि आरोपी मनी लांड्रिंग के अन्य मामलों में भी कार्रवाई के दौरान अनुपस्थित रहा है। खबरों के मुताबिक वह ब्रिटेन में हैं।

ईडी ने अपनी अर्जी में कहा, “इन सबके मद्देनजर, एजेंसी अदालत से विनम्र निवेदन करती है कि अदालत ने उन्हें व्यक्तिगत पेशी से छूट का जो आदेश दे रखा है, उसे वह वापस ले और मामलों की सुनवाई में उनकी पेशी सुनिश्चित करने के लिए उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करे।”

सूत्रों के मुताबिक, ईडी की अर्जी पर सुनवाई करने के बाद दंडाधिकारी दास ने सोमवार को माल्या के वकील को नोटिस जारी कर 20 मई तक उनका जवाब मांगा है।

वर्तमान में अदालत साल 2000 में माल्या से संबंधित विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (फेरा) के उल्लंघन के मामले की अंतिम बहस की सुनवाई कर रही है। मामला विदेश में अपनी कंपनी की शराब के प्रचार के लिए धन जुटाने से संबंधित है।

ईडी के मुताबिक, माल्या ने फॉर्मूला वन वर्ल्ड चैंपियनशिपमें लंदन तथा कुछ यूरोपीय देशों में साल 1996, 1997 तथा 1998 में किंगफिशर का लोगो लगाने के लिए एक ब्रिटिश कंपनी को दो लाख डॉलर की राशि का भुगतान किया। एजेंसी ने दावा किया कि रकम का भुगतान भारतीय रिजर्व बैंक की मंजूरी के बिना किया गया, जो सीधे तौर पर फेरा के मानदंडों का उल्लंघन है।

माल्या को इस मामले में समन जारी किया गया था और उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था। दिल्ली की एक अदालत ने 20 दिसंबर, 2000 को माल्या को व्यक्तिगत तौर पर पेशी से छूट का आदेश दिया था।

ईडी ने माल्या को व्यक्तिगत तौर पर पेशी में मिली छूट को वापस लेने तथा अदालत को उन्हें यह आदेश देने की मांग की है कि मामले की अंतिम बहस की प्रत्येक तारीख पर वह खुद अदालत में मौजूद रहें।