क्या वास्तविक दोस्त तय करने में हम हैं फिसड्डी?

बहुत सारे लोग यह महसूस करते हैं कि दोस्ती दोतरफा रास्ता है, लेकिन आपके केवल आधे जिगरी दोस्त ही आपको अपना दोस्त समझेंगे। इसका पता एक अध्ययन से चला है। इसमें यह भी कहा गया है कि यह उनके प्रभावित करने की क्षमता को सीमित कर देता है और इसका मानव व्यवहार पर भी आगे असर पड़ता है।

यह जानकार कंपनियां और सामाजिक समूह जो सामूहिक कार्य, सूचना विस्तार और उत्पादों के प्रचार के लिए सामाजिक प्रभाव पर निर्भर करते हैं, वे अपनी रणनीतियों और बीच-बचाव करने में सुधार कर सकते हैं।

तेल अवीव विश्वविद्यालय की ईरेज शमुएली ने कहा, इससे यह पाया गया कि हमारे दोस्त कौन हैं, इसका आकलन करने में हम फिसड्डी हैं। इतना ही नहीं, दोस्ती की पारस्परिकता को तय करने में परेशानी हमारी सहयोगात्मक व्यवस्था में शामिल होने की हमारी क्षमता को बहुत अधिक कम कर देती है।

जर्नल ‘पीएलओएस वन’ नामक पत्रिका में प्रकाशित इस अध्यय रिपोर्ट में शमुएली ने कहा है, “हमने सीखा है कि हम अपने सहज ज्ञान या अनुभव पर भरोसा नहीं कर सकते। इन रिश्तों को मापने और उनके प्रभाव की मात्रा निर्धारित करने के लिए निश्चित रूप से एक निष्पक्ष तरीका होना चाहिए।”

इस दल ने विस्तार से सामाजिक प्रयोग किए और दोस्ती के छह सर्वेक्षणों का अध्ययन किया। इनमें दोस्ती के स्तरों और पारस्परिक अपेक्षाओं के आकलन के लिए इजरायल, यूरोप और अमेरिका के करीब 600 छात्रों को शामिल किया गया।

इसके बाद उन लोगों ने एक एल्गोरिज्म विकसित किया और दोस्ती की समझ से जुड़े कई वस्तुगत गुणों की जांच की। आम दोस्तों की संख्या या कुल दोस्तों की संख्या और उसके बाद उनमें एकतरफा दोस्ती और परस्पर दोस्ती में फर्क किया गया।

अध्ययन के परिणाम से पता चला कि 95 फीसदी प्रतिभागी सोचते थे कि उनका संबंध पारस्परिक है।

इसमें कहा गया है, यदि आप सोचते हैं कि कोई आपका दोस्त है तो आप उससे अपेक्षा रखते हैं कि वह भी उसी रूप में महसूस करे, लेकिन वास्तव में यह मामला होता नहीं है। केवल 50 फीसदी दोस्ती ही परस्पर दोस्ती वाली श्रेणी से मेल खाई।

शमुएली का कहना है कि परस्पर रिश्ता महत्वपूर्ण है, क्योंकि सामाजिक प्रभाव ही इस खेल का नाम है।

–आईएएनएस