‘देश के बौद्धिक संपदा संरक्षण पर दुनिया की राय बदल रही’

नई दिल्ली, 10 अप्रैल | देश में यह महसूस किया जाने लगा है कि सृजनात्मकता को बगैर वैधानिक सुरक्षा दिए नवाचार निर्थक है और इसकी वजह से देश में बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था (आईपीआर) को लेकर विदेशी संस्थानों की राय में सुधार होने लगा है। यह बात विशेषज्ञों ने कही।

विधि कंपनी आनंद एंड आनंद के प्रवीण आनंद ने कहा, “पिछले 50 साल में हुए सबसे महत्वपूर्ण कार्यो में से एक है बौद्धिक संपदा अधिकार। निर्माणाधीन नई नीति में नवाचार बढ़ाने पर ध्यान दया गया है। गत दो साल में इस क्षेत्र में व्यापक बदलाव आया है।”

उन्होंने कहा कि पेटेंट कार्यालयों के आधुनिकीकरण का प्रयास, प्रक्रिया सरल करने के लिए नियमों में सुधार, पेटेंट आवेदनों की विशाल संख्या से निपटने के लिए अतिरिक्त कर्मचारियों की भर्ती जैसे कई कदम उठाए गए हैं।

आनंद ने आईएएनएस से कहा, “यदि नीति में इसी तरह विकास जारी रहा, तो पश्चिमी निवेशकों की राय में व्यापक बदलाव आएगा। यदि विदेशी निवेशकों को विश्वास हो कि यहां वे सुरक्षित हैं, तो इस शानदार बाजार में कौन नहीं आना चाहेगा।”

एशियन कोलिशन अगेंस्ट काउंटरफीटिंग एंड पायरेसी के निदेशक एंड्रयू ब्रैडशॉ ने कहा कि पश्चिमी देशों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोशिश के बाद देश में बौद्धिक संपदा अधिकार संरक्षण में काफी सुधार आया है।

ब्रैडशॉ सुपरड्राई के वैश्विक ब्रांड सुरक्षा प्रमुख भी हैं। उन्होंने आईएएनएस से कहा, “मोदी के सत्ता में आने के बाद से काफी बदलाव आया है।”

उन्होंने कहा कि व्यवस्था में बदलाव के साथ कानूनों को लागू करना भी उतना ही जरूरी है।

अमेरिकंस फॉर टैक्स रिफॉर्म फाउडेशन के ‘प्रोपर्टी राइट्स अलायंस’ द्वारा जारी अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक अधिकार सूचकांक के मुताबिक, 2015 में भारत 5.2 अंक के साथ 129 देशों में 62वें स्थान पर रहा। 2014 में देश को 5.5 अंक हासिल हुआ था।

आनंद ने कहा, “नकल के मामले में दोष साबित होने का अनुपात बढ़ना चाहिए। संवैधानिक रूप से मुआवजा की व्यवस्था होनी चाहिए। अभी दिल्ली उच्च न्यायालय मुआवजा चुकाने का फैसला दे सकता है। यह अधिकार प्रत्येक जिला न्यायालय को भी दिया जाए।”

एडीडास समूह के विधि विशेषज्ञ पुलिन कुमार ने आईएएनएस से कहा, “कानून बनाना ही सबकुछ नहीं है, ग्राहकों को भी जागरूक किया जाना चाहिए। सबसे पहले कानून की ओर से सुरक्षा व्यवस्था होनी चाहिए। फिर नीति दस्तावेज भी होने चाहिए। समर्पित कार्यान्वयन एजेंसी के जरिए सरकारी मदद भी होनी चाहिए।”(आईएएनएस)