फिल्मों में अतिनाटकीयता पसंद नहीं : रजत कपूर

निवेदिता—

नई दिल्ली, 19 मई | थियेटर के साथ ही फिल्मों में भी समान रूप से सक्रिय अभिनेता और फिल्मकार रजत कपूर का कहना कि फिल्मों में अतिनाटकीयता उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं है और उन्हें इनका सादगीपूर्ण ढंग से प्रस्तुतीकरण ही पसंद है।

कपूर पिछले सप्ताह ‘ब्लेंडर्स प्राइड रिजर्व कलेक्शन 2016’ के दूसरे संस्करण के मौके पर राजधानी में मौजूद थे।

क्या वह फैशन और नाटकीयता से भरपूर फिल्में बनाएंगे?

रजत कपूर ; फाइल फोटो आईएएनएस

इस सवाल पर उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता। यह सब मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है। इस प्रकार की कहानी (फैशन और नाटकियता से भरपूर फिल्में) मुझे उत्साहित नहीं करती। मुझे लगता है कि सादगी से भरी और हल्की-फुल्की फिल्में ही बनानी चाहिए।”

कपूर के निर्देशन में बनी ‘आंखों देखी’ की काफी सराहना की गई थी। उनके निर्देशन में बनी ‘मिथ्या’ और ‘मिक्स्ड डबल्स’ समेत अन्य फिल्मों को भी आलोचकों ने काफी सराहा था।

निर्देशन के साथ ही उन्होंने अपने अभिनय के लिए काफी वाहवाही बटोरी है। खासतौर पर ‘फंस गए रे ओबामा’, ‘भेजा फ्राय’, ‘मॉनसून वेडिंग’ और ‘दिल चाहता है’ जैसी फिल्मों में उनके अभिनय को बेहद पंसद किया गया था।

बड़े पर्दे पर आखिरी बार वह ‘कपूर एंड संस’ में सिद्धार्थ मल्होत्रा और फवाद खान के पिता की भूमिका में दिखाई दिए थे।

फिल्मों में इतना सक्रिय रहने के बावजूद वह हिंदी फिल्में नहीं देखते।

उन्होंने कहा, “मैं हिंदी फिल्में नहीं देखता। मैं साल में एक या दो फिल्में ही देखता हूं, इससे ज्यादा नहीं।”

उनके काम के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “मेरे पास अभी कुछ फिल्मों की योजनाएं हैं और मैं हमेशा की तरह निर्माता की तलाश कर रहा हूं। मैं नहीं जानता कि पहले कौन सी फिल्म बनेगी। सभी फिल्में एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। इनमें से एक फिल्म गैंगस्टर पर है। मैं भी उस फिल्म में काम करना चाहता हूं, लेकिन मैं अभी भी इन फिल्मों के निर्माण के लिए पैसे जुटा रहा हूं।”

हिंदी फिल्म उद्योग में अपनी पहचान बनाने का श्रेय वह थियेटर को देते हैं, लेकिन उनका साथ ही कहना है कि किसी कलाकार के लिए वही अनुभव होना जरूरी नहीं है।

उन्होंने कहा, “कलाकार बनने के लिए थियेटर की पृष्ठभूमि जरूरी नहीं है। मैं कई ऐसे लोगों को जानता हूं जो शानदार थियेटर कलाकार थे, लेकिन वे अच्छे फिल्म स्टार्स नहीं बन पाए। ये लोग अपवाद भी हैं, लेकिन ये दोनों माध्यम बेहद अलग हैं।”