बिहार में शराबबंदी के बाद अब नशामुक्ति अभियान

पटना, 2 अप्रैल। बिहार सरकार के लिए शुक्रवार से प्रभाव में आए शराबबंदी को लागू करने की ही चुनौती नहीं है, बल्कि लाखों शराबियों से शराब छुड़वाना भी राज्य सरकार के लिए कठिन काम होगा।

शुक्रवार से बिहार में सीमित शराबबंदी लागू कर दी गई है और इसके बाद राज्य सरकार ने नशामुक्ति अभियान चलाने का फैसला किया है।

फोटोः बिहार में शराबबंदी को लेकर पटना में नुक्कड़ नाटक करते कलाकार। (आईएएनएस)

इससे पहले नशामुक्ति अभियान की जिम्मेदारी मुख्यत: गैरसरकारी व नागरिक संगठनों को दी गई थी, जो नशामुक्ति केंद्र चलाते थे।

अब बिहार सरकार ने खुद 39 नशामुक्ति केंद्र खोलने का फैसला किया है, जिसमें शराबियों की काउंसिलिंग की जाएगी और उनका इलाज किया जाएगा।

राज्य के कार्यक्रम अधिकारी एन. के. सिन्हा ने बताया, “बिहार के सभी 38 जिलों में इलाज और काउंसिलिंग के लिए 150 उच्च प्रशिक्षित डॉक्टरों की तैनाती की जाएगी।”

उन्होंने बताया कि इन डॉक्टरों को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस (नीमहंस) और नई दिल्ली व पटना स्थित ऑल इंडिया मेडिकल साइंसेज (एम्स) में प्रशिक्षण दिया गया है। “राज्य सरकार ने फरवरी और मार्च में इन डॉक्टरों के विशेष प्रशिक्षण के लिए भेजा था।”

पटना में सरकार ने नालंदा मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में 25 विस्तरों वाला और जिले के सभी सदर अस्पतालों में 10 विस्तरों वाला नशामुक्ति केंद्र स्थापित किया है।

इन केंद्रों में डॉक्टर शराबियों के परिवार वालों खासतौर से महिलाओं की मुफ्त काउंसलिंग करेंगे।

बिहार के आबकारी एवं मद्य निषेध मंत्री अब्दुल जलील मस्तान ने बताया कि सरकार शराब पर प्रतिबंध लगाने की बजाय नशामुक्ति पर जोर देगी।

उन्होंने कहा, “शराबबंदी के बाद अब शराबियों को या तो शराब के बिना रहना होगा या फिर उन्हें नशे की आदत छोड़नी होगी। ऐसी स्थिति में उन सबमें स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो सकती हैं, इसलिए नशामुक्ति केंद्रों में उनके इलाज की व्यवस्था की गई है।”

वहीं, बिहार के पुलिस प्रमुख पी.के. ठाकुर ने घोषणा की है कि राज्य पुलिस की प्राथमिकता शराब का शतप्रतिशत निषेध और इसका कार्यान्वयन है।

ठाकुर ने कहा, “हमने एक हेल्पलाइन नंबर स्थापित करने का फैसला किया है, जिस पर शराब संबंधी शिकायतों को दर्ज किया जाएगा।”

अधिकारियों के मुताबिक, शराबबंदी से राज्य सरकार की आर्थिक सेहत पर काफी असर पड़ेगा, क्योंकि शराब की ब्रिकी से बिहार सरकार को सालाना 3,650 करोड़ रुपये का राजस्व मिलता था।

राज्य सरकार ने शराब के कारोबार में जुटे लोगों को रोजगार मुहैया कराने के लिए उन्हें राज्य सरकार की कंपनी बिहार स्टेट कोऑपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड के उत्पादों की बिक्री करने का प्रस्ताव दिया है जो ‘सुधा डेयरी’ के नाम से बेचे जाते हैं।

(आईएएनएस)