भारत डेयरी राष्ट्रों के बीच एक लीडर के रूप मे उभर रहा है : राधा मोहन

नई दिल्ली, 16 मई (जनसमा)। भारत में डेयरी 60 मिलियन ग्रामीण घरेलू किसानों को आजीविका प्रदान करता है जिसमें से दो तिहाई गरीब, लघु और सीमान्त किसान तथा भूमिहीन कृषि मजदूर हैं। भारत डेयरी राष्ट्रों के बीच एक लीडर के रूप मे उभर रहा है। यह जानकारी केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने सोमवार को यहाँ गौवंश एवं गौशालाओ पर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय एवं पशु पालन, डेयरी मत्स्य पालन विभाग द्वारा आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में  दी।

राधा मोहन ने कहा कि देश में 2015-16 के दौरान हमारे किसानों ने 160.35 मिलियन टन दूध उत्पादित किया है जिसकी कीमत 4 लाख करोड़ रू. से भी अधिक है।पहली बार 10 वर्षों के औसत उत्पादन में वार्षिक वृद्धि दर भारत में 4.6 % और विश्व कि 2.24% है।  देश की डेयरी सहकारिताएं किसानों को औसत रूप से अपनी बिक्री का 75 से 80 प्रतिशत प्रदान करती है।

सिंह ने जानकारी दी की इस क्षेत्र में 15 मिलियन पुरूषों की तुलना में 75 मिलियन महिलाएं कार्यरत हैं। पशुधन विकास क्रियाकलापों और डेयरी सहकारिताओं में नेतृत्वकारी भूमिका में महिलाओं की भागीदारी के प्रति रूझान बढ़ रहा है। इससे ग्रामीण समुदायों में महिला नेतृत्व घरों के सशक्तिकरण को बढ़ावा मिला है।

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने कहा कि भारत में देशी पशु विशेष रूप से अपने-अपने प्रजनन क्षेत्रों की जलवायु और पर्यावरण के उपयुक्त होते हैं। उनमें ऊष्मा सध्यता, रोगों के प्रति प्रतिरोध की क्षमता और जलवायु और पोषाहार के अत्यधिक दबाव में पनपने की क्षमता होती है। डेयरी पशुओं के दुग्ध उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन और तापमान में वृद्धि का दुग्ध उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। 2020 में तापीय दबाव के कारण पशुओं और भैंसों के दुग्ध उत्पादन में लगभग 30.2 लाख टन की वार्षिक हानि होगी जिसका मूल्य वर्तमान दरों पर लगभग 5000 करोड़ रुपये से अधिक होगा। दुग्ध उत्पादन और जनन क्षमता में गिरावट सबसे अधिक विदेशी एवं संकर नस्ल के पशुओ और उसके बाद भैंसों में होगी। जलवायु परिवर्तन से देशी नस्लें कम से कम प्रभावित होंगी। संयुक्त राज्य अमरीका, ब्राजील और आस्ट्रेलिया सहित कई देशों द्वारा ऊष्मा-सह रोग प्रतिरोध स्टॉक का विकास करने के लिए देशी नसलों का आयात किया है।