Ambassador Burakovsky

राजदूत बुराकोवस्की के साथ गुजराती लंच

एक राजदूत का जीवन वास्तव में भारत के ‘वसुधैव कुटुम्बकम-एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ के दृष्टिकोण से मेल खाता है क्योंकि वह अपने कार्यकाल के दौरान कई देशों, कई संस्कृतियों का अनुभव करते हुए शांति, मानवता, वैश्विक सहयोग और विकास के समान लक्ष्य की दिशा में काम करते हैं। 

माधुरी शुक्ला (Madhuri Shukla) ने भारत में पोलैंड के राजदूत (Ambassador of Poland to India) एडम बुराकोव्स्की (Adam Wojciech Burakowski) से दिलचस्प बातचीत की, जब वे नई दिल्ली स्थित गुजरात भवन कैंटीन (Gujarat Bhavan canteen) में अपने लंच ब्रेक में गुजराती व्यंजनों (Gujarati cuisine) का आनंद ले रहे थे। यह बातचीत दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भारत और पोलैंड के ऐतिहासिक संबंधों पर प्रकाश डालती है जब एक उदार गुजराती महाराजा दिग्विजय रंजीतसिंह जी जडेजा ने संकट के समय पोलैंड के कई बच्चों को आश्रय दिया था। 

अपनी पसंदीदा गुजराती दाल से शुरुआत करते हुए राजदूत बुराकोवस्की (Ambassador Burakovsky) बताते हैं कि कैसे यहां की गुजराती थाली में हर रोज़ अलग-अलग व्यंजन परोसा जाता है लेकिन गुजराती दाल रोज़ मिलती है और उन्हें ये बहुत पसंद है। वे इस कैंटीन में नियमित रूप से आते रहते हैं। उन्हें यहां का खाना, यहां का वातावरण, यहां काम करने वालों का सेवा भाव, सबकुछ बहुत अच्छा लगता है और इसके लिए वह तहे दिल से अपना आभार व्यक्त करते हैं। 

राजदूत के साथ बातचीत के कुछ अंश:-

1) क्या आप पहली बार गुजरात भवन आए हैं या इससे पहले भी आप यहां आते रहे हैं?

Gujarati lunch

मैंने भारत में 5 साल काम किया है और शुरुआत में ही इस कैंटीन के बारे में पता चलते ही यहां आने लगा था। मुझे यहां की गुजराती थाली में मिलने वाले फरसान, मेन कोर्स में मिलने वाली सब्ज़ियां, दाल, चावल, रोटी, दही और मिठाई की वजह से बहुत पसंद है। मैं अक्सर अपने लंच ब्रेक में यहां आता रहा हूं क्योंकि यह एम्बेसी से ज़्यादा दूर नहीं है, यहां की सर्विस बहुत फास्ट और अच्छी है। यहां मिलने वाली थाली बहुत पौष्टिक और फ्लेवरफुल है।

2) क्या आप कभी अपने परिवार के सदस्यों या दोस्तों के साथ यहां आए हैं? 

हां, मैं यहां अक्सर अपनी पत्नी और दोस्तों के साथ आता रहा हूं। 

3) भारत और पोलैंड का ऐतिहासिक रिश्ता बेहद यादगार रहा है। आप दोनों देशों के अतीत और भविष्य को कैसे जोड़कर देखते हैं? 

मुझे हिंदी भाषा बहुत अच्छे से आती है (मुस्कुराते हुए)। भारत ने मुझे हमेशा आकर्षित किया है। पोलैंड में तकरीबन 40,000 भारतीय रहते हैं। मैं भारत में स्पेशलाइज़ेशन सब्जेक्ट के साथ पॉलिटिकल साइंस का प्रोफेसर था। मैंने 1857 से अब तक के भारतीय इतिहास पर एक किताब भी लिखी है। चाहे बात राजनीतिक रिश्तों की हो, आर्थिक जुड़ाव की हो या फिर सांस्कृतिक संबंधों की, भारत और पोलैंड, दोनों ही देश एक-दूसरे के साथ लंबे समय से दोस्ती का रिश्ता निभा रहे हैं। पोलैंड के IT और ऑटोमोबाइल क्षेत्र में भारत का निवेश लगभग 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा है। कोरोना महामारी के बाद, टूरिज़्म और बिजनेस सेक्टर में द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करने के लिए भारत और पोलैंड के बीच कनेक्टिविटी में भी सुधार हुआ है।

4) क्या आप कभी गुजरात गए हैं? यदि हां तो अपने अनुभव के बारे में कुछ साझा करें।

पोलैंड और गुजरात का रिश्ता बेहद खास है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब सितंबर 1939 में हिटलर की सेना ने पोलैंड पर आक्रमण किया था तब एक गुजराती राजा ने पोलैंड के 1000 बच्चों को आश्रय दिया था जिनमें से कई अनाथ बच्चे युद्ध के खत्म होने तक जामनगर ज़िले में समंदर किनारे बने बालाचडी कैंप में रहे थे। ये समर कैंप राजा का था जहां उन बच्चों को आश्रय दिया गया था। जिस समय कई देशों ने अपना मुंह मोड़ लिया था, यहां तक कि ब्रिटिश अधिकारियों ने भी उन्हें प्रवेश देने से मना कर दिया था उस मुश्किल वक्त में नवांनगर के महाराजा दिग्विजय रंजीतसिंह जी जाडेजा उन बच्चों के साथ खड़े रहे और बड़े प्यार और दया से रहने के लिए जगह दी और उनका ख्याल रखा। महाराजा दिग्विजय सिंह जी ने उन बच्चों को खाना और आश्रय देने के साथ-साथ उनकी पॉलिश संस्कृति और परम्पराओं को ज़िंदा रखने के लिए उनकी पढ़ाई आगे बढ़ाने के लिए भी दृढ़ प्रयास किया। 

महाराजा को श्रद्धांजलि के रूप में वॉरसॉ में बने एक स्कवेयर का नाम उनके नाम पर रखा गया था और 2014 में ‘स्क्वायर ऑफ द गुड महाराजा’ नामक क्षेत्र में एक पार्क बनाया गया था। उनके सम्मान में बनाए एक स्मारक को देखने के लिए कई स्थानीय लोग आते हैं। मानवता के प्रति उनके निस्वार्थ कार्य के लिए महाराजा जाम साहब को पोलैंड के सर्वोच्च सम्मान राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया।

मैं खुद वॉरसॉ में महाराजा जाम साहेब दिग्विजय सिंहजी हाई स्कूल से ग्रेजुएट हूं। मेरे साथ भारत में अपने कार्यकाल के दौरान गुजरात की कई यात्राओं की सुखद यादें हैं।

पॉलिश शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए भारत में आंदोलन का नेतृत्व करने वाले महाराजा जाम साहेब के प्रयासों का सम्मान करने के लिए भारतीय और पॉलिश दोनों सरकारों के सहयोग से “लिटिल पोलैंड इन इंडिया” नाम से एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई गई थी। 

5) अगर आपका पोलैंड में कभी भी गुजराती खाना खाने का मन करता है तो आप कहां जाते हैं? क्या वहां ऐसी कोई जगह है जहां आप गुजराती व्यंजन का आनंद उठा सकते हैं?

वॉरसॉ में 112 भारतीय रेस्टोरेंट हैं जहां अधिकतर व्यंजन गुजराती ही होते हैं। इसलिए हां, पोलैंड में मेरे पास कई ऐसी जगहें हैं जहां मैं गुजराती खाने का स्वाद चख सकता हूं। आने वाले वक्त में कैटरिंग उद्योग का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। 

6) क्या आप गुजराती भोजन के लिए दिल्ली के गरवी गुजरात भवन गए हैं?

अभी नहीं, लेकिन मैं चाहता हूं कि भारत से अलविदा लेने से पहले मैं वहां ज़रूर जाऊं। 

7) क्योंकि अब आप अपने नए घर दक्षिण अफ्रीका जा रहे हैं तो आप दिल्ली की कौनसी याद साथ ले जाएंगे? आप दिल्ली को खुद से कैसे जोड़कर देखते हैं?

मुझे भारत की संस्कृति, यहां का खानपान और मेज़बानी बहुत याद आएगी लेकिन दक्षिण अफ्रीका में भी बहुत से भारतीय हैं इसलिए मुझे उम्मीद है कि वहां भी मुझे गुजराती खाना ज़रूर मिल जाएगा। 

खाने के आख़िर में पान और आचार को छुए बिना उन्हें ये पता चला कि अभी तक यहां की कैंटीन में खिचड़ी और गुजराती कढ़ी को नहीं चखा है। कैंटीन में काम करने वाले कर्मचारियों का दिल से धन्यवाद करते हुए एम्बेसडर बुराकोवस्की मुस्कुराते हुए कहते हैं आवजो (Come back again) क्योंकि गुजराती अलविदा नहीं कहते हैं। वे कहते हैं आवजो यानि फिर से वापस आइए।