रेत पर निशान मिट कर भी अमर हो जाते हैं : सुदर्शन पटनायक

नई दिल्ली, 25 सितम्बर | आप कभी बचपन में समुद्र किनारे गए होंगे तो अपने सपनों को आकार देते रेत के महल या टीले जरूर बनाए होंगे। सभी के लिए यह एक खेल होता है, लेकिन सुदर्शन पटनायक के लिए यह एक कला है, एक उपासना है और जिंदगी को दर्शाने का एक अनूठा माध्यम है।

सुदर्शन ने कहा कि जब उन्होंने आठ साल की उम्र में समुद्र किनारे रेत पर अपनी कला को अभिव्यक्ति देनी शुरू की थी तब उन्हें पता नहीं था कि उनका यह शौक और हुनर उनका नाम सात समुद्र पार तक फैला देगा। बचपन में गरीबी और अभावों का सामना कर चुके सुदर्शन अपने हुनर, अथक परिश्रम, लगन के बल पर आज उस मुकाम पर हैं, जहां से उन्होंने न सिर्फ अपने राज्य ओडिशा का, बल्कि देश का नाम इस अनूठी कला के क्षेत्र में दुनिया में शीर्ष पर पहुंचा दिया है।

सुदर्शन ने आईएएनएस के साथ खास बातचीत में कहा, “पिता ने मुझे त्याग दिया था। एक घरेलू नौकर के रूप में काम करता था। पेंटिंग का बेहद शौक था, लेकिन रंग, ब्रश और अन्य सामानों के लिए पैसे नहीं थे। काम से जब थक जाता, समुद्र किनारे जाकर रेत में सुकून तलाशता। रेत मेरे लिए ऐसा कैनवास था, जहां मैं अपने भावों को व्यक्त कर सकता था।”

पटनायक आगे कहते हैं, “जब मैं रेत पर कोई आकृति बनाता, सैकड़ों लोग उसके इर्दगिर्द खड़े हो जाते और बेहद प्रशंसा करते। मुझे प्रोत्साहन मिला।”

रेत पर निशान छोड़ना मुश्किल होता है, लेकिन यह कहावत सुदर्शन पटनायक पर लागू नहीं होती। वह रेत को कैनवास में बदल कर ऐसे संदेश देते हैं, जो हर किसी को सोचने पर मजबूर कर देते हैं।

कैसा लगता है जब समुद्र की लहरें रेत पर उकेरी गई कृति को बहा ले जाती हैं? सुदर्शन कहते हैं, “लहरें आती हैं, सब कुछ साफ कर देती हैं, लेकिन तबतक उसके निशान अमर हो चुके होते हैं। अगले ही दिन समुद्र एक नया कैनवास दे देता है।”

अब तक 60 से भी अधिक अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुके सुदर्शन पांच विश्व प्रतियोगिताएं जीत चुके हैं।

सुदर्शन ने हाल ही में मॉस्को में नौवें सैंड स्कल्पचर चैंपियनशिप 2016 में अपनी रेत मूर्ति ‘महात्मा गांधी-वल्र्ड पीस’ के लिए ‘पीपल्स चॉइस’ पुरस्कार जीता है। इस प्रतियोगिता में दुनियाभर के देशों के करीब 20 दिग्गज रेत कलाकारों ने हिस्सा लिया था। अप्रैल में इसी शिल्प के लिए उन्होंने स्वर्ण पदक भी जीता था।

2014 में पद्मश्री से सम्मानित सुदर्शन ने एक सवाल के जवाब में कहा कि शुरुआत में वह देवी-देवताओं की आकृतियां उकेरते थे। लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने समाजिक विषयों को इसमें शामिल किया। उन्होंने कहा, “मैं कोशिश करता हूं कि कला के माध्यम से दुनियाभर की समस्याओं को उठाऊं और लोगों का उस तरफ ध्यान खीचूं।”

‘ह्यूूमनिटी वॉश्ड अशोर, शेम शेम शेम’ के संदेश के साथ समंदर में डूबे सीरिया के एैलन कुर्दी के दर्द को जब सुदर्शन ने रेत पर उकेरा तो पूरी दुनिया की आंखों में ऐलन का दर्द उतर आया था। ग्लोबल वॉर्मिग पर उनकी कृति ने बर्लिन में यूएसएफ डबल चैंपियनशिप में जीत हासिल की थी।

सुदर्शन कहते हैं, “मुझे पता चला कि ओडिशा के कुछ तटीय इलाके भी ग्लोबल वॉर्मिग से प्रभावित होंगे, तब मैंने सैंड आर्ट वर्ल्ड चैंपियनशिप में ग्लोबल वॉर्मिग के विषय को उठाने का फैसला किया।” यह पहला मौका था जब किसी भारतीय ने यह प्रतियोगिता जीती थी।

पटनायक ने हाल ही में मदर टेरेसा को संत की उपाधि दिए जाने के अवसर पर उनकी एक शानदार रेत प्रतिमा बनाई थी।

सुदर्शन ने पुरी में भगवान जगन्नाथ के सौ रथ बनाकर विश्व रिकॉर्ड बनाया, जो लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस में दर्ज है। क्रिसमस के मौके पर उन्होंने दुनिया की सबसे बड़ी जीसस की प्रतिमा बनाई थी। 75 फुट चौड़ी और 35 फुट ऊंची इस प्रतिमा को बनाने के लिए 1000 टन रेत इस्तेमाल की गई। इस प्रतिमा को भी लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस में शामिल किया गया। वह अब तक 20 से अधिक विश्व कीर्तिमान बना चुके हैं।

सफलता के इस रास्ते में सुदर्शन के सामने रोड़े भी आए। उन्होंने कहा, “एक बार विश्व चैंपियनशिप यूएस ओपन के लिए मुझे अमेरिका से आमंत्रण मिला था और अमेरिकी दूतावास ने मुझे वीजा नहीं दिया था। फिर एक दिन ऐसा भी आया जब उन्होंने मुझे बुलाकर वीजा दिया।”

लेकिन सुदर्शन को अपने देश में पहचान बाद में मिली। वह कहते हैं, “जब मैंने विदेश में जाकर रेत कला की प्रतियोगिताएं जीतीं और वहां की तस्वीरें प्रकाशित हुईं तब यहां लोगों ने मेरी कला को सराहा और भारत में रेत मूर्ति को पहचान मिली।”

पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए ओडिशा पर्यटन की पहल पर सुदर्शन की रेत कला बीजू पटनायक अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे पर भी प्रदर्शित की जा रही है। प्रत्येक 15 दिनों पर यहां सुदर्शन की नई कृति प्रदर्शित की जाएगी।

सुदर्शन ने इस कला को आगे बढ़ाने के लिए 1994 में पुरी तट पर ओपन एयर गोल्डन सैंड आर्ट इंस्टीटयूट की स्थापना की, जिसमें वह युवा कलाकारों को प्रशिक्षण देते हैं। लेकिन वह सरकारी उपेक्षा से नाराज हैं।

उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री ने मुझे बुलाकर मेरी तारीफ की है, लेकिन संस्कृति मंत्रालय कलाकारों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ नहीं करता। केवल मैं ही नहीं, पूरे देश में ऐसे कई हुनर छिपे हैं, जो पहचान पाने का इंतजार कर रहे हैं।”         ===ममता अग्रवाल

(फाइल फोटो)