रेल परियोजनाओं में विलंब से लागत 1.07 लाख करोड़ रुपये बढ़ी

देवानिक साहा====

रेल परियोजनाओं को पूरा करने में हुई देरी की वजह से लागत 1.07 लाख करोड़ रुपये (16.4 अरब डॉलर) बढ़ गई है और यह राशि भारतीय रेल के 30 लाख कर्मचारियों के कुल सालाना वेतन के बराबर है। यह निष्कर्ष देश के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) की एक रपट के विश्लेषण से सामने आया है।

सीएजी द्वारा 2009-14 अवधि में तैयार की गई ‘भारतीय रेल की चालू परियोजनाओं की वर्तमान स्थिति’ रपट में कहा गया है कि मार्च 2014 की स्थिति के मुताबिक इन परियोजनाओं को पूरा करने के लिए 2.86 लाख करोड़ रुपये (28.6 अरब डॉलर) की जरूरत है।

नए रेल मार्गो, आमान परिवर्तन और दोहरीकरण की 442 अपूर्ण परियोजनाओं में से सिर्फ 35 फीसदी या 156 परियोजनाओं में अंतिम समय सीमा थी, फिर भी 75 फीसदी परियोजनाएं 15 साल बाद भी पूरी नहीं हुईं।

रपट में कहा गया है कि 150 करोड़ रुपये से अधिक बजट वाली (442 में से) 319 परियोजनाओं का खर्च 1.01 लाख करोड़ रुपये (15.5 अरब डॉलर) बढ़ गया है, वहीं 150 करोड़ रुपये से कम बजट वाली 123 परियोजनाओं का खर्च 5,614 करोड़ रुपये (0.89 अरब डॉलर) बढ़ गया है।

तीन परियोजनाएं 30 साल बाद भी पूरी नहीं हो पाईं और 22 परियोजनाएं 16 साल पहले मंजूरी मिलने के बाद भी अब तक शुरू नहीं हो पाईं।

रपट में परियोजनाओं में हुई देरी के प्रमुख कारणों के तौर पर बताया गया है कि इनकी शुरुआत बिना स्पष्ट योजना और बिना तैयारी के हुई। कई परियोजनाएं रेलवे की अपनी वित्तीय कसौटी पर भी खरा नहीं उतरती हैं।

रपट के मुताबिक, सिर्फ 30 फीसदी परियोजनाएं ही वित्तीय कसौटी के अनुरूप हैं, शेष अव्यावहारिक हैं।

भारतीय रेल वित्त संहिता में कहा गया है, “किसी भी नए निवेश को वित्तीय रूप से वाजिब तभी माना जाएगा, जब संचालन खर्च या औसत सालाना लागत सहित कुल प्रस्तावित खर्च से शुद्ध लाभ 14 फीसदी या अधिक मिलने की संभावना हो।”

30 फीसदी अपूर्ण परियोजनाएं ही इस कसौटी पर खरा उतरती हैं। 126 अपूर्ण परियोजनाओं का संभावित रिटर्न नकारात्मक है। इसका मतलब यह है कि 70 फीसदी परियोजनाएं वित्तीय रूप से व्यावहारिक ही नहीं हैं।

सीएजी ने अपने सुझाव में कहा है कि जो परियोजनाएं 15 साल तक पूरी नहीं हो पाईं, उनकी वित्तीय व्यवहार्यता पर फिर से विचार किया जाना चाहिए।

सीएजी ने यह भी कहा है कि रेलवे बोर्ड और क्षेत्रीय अधिकारियों को परियोजनाओं की बेहतर निगरानी करनी चाहिए, ताकि पैसा बर्बाद न हो।

(आंकड़ा आधारित, गैर लाभकारी, लोकहित पत्रकारिता मंच, इंडियास्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत। ये लेखक के निजी विचार हैं)