संस्कृति एवं कला का अनोखा संगम है सिंहस्थ महापर्व

भोपाल, 10 मई (जनसमा)। महाकाल की नगरी उज्जैन में 12 वर्ष तक शिष्यों से सेवा प्राप्त कर सिंहस्थ मेले में सेवा करने का सुखद अनुभव प्राप्त कर रहे हैं संत-महात्मा। अखाड़ों में श्रद्धालुओं को भोजन प्रसादी, पेय पदार्थ के साथ अमृतरूपी वाणी से ज्ञान की वर्षा प्राप्त हो रही है। सभी आश्रम एवं अखाड़ों में श्रद्धालुओं एवं महाकुम्भ में आये मेहमानों को राम-कथाएँ कृष्ण-लीला, गीता-भागवत, भोले-शंकर की महिमा की कथा से ओत-प्रोत कर रहे हैं।

फोटो :  9 मई, 2016 को सिंहस्थ के दूसरे शाही स्नान पर शैव-सम्प्रदाय के साधुओं ने क्षिप्रा नदी में अमृत स्नान किया। 

मोक्षदायिनी क्षिप्रा में अमृत-स्नान का लाभ उठाने के साथ भक्तिमय वातावरण में श्रद्धालु भारतीय संस्‍कृति कला एवं ऐतिहासिक धरोहरों को अपने अर्न्तमन में समेट रहे हैं। विभिन्न क्षेत्र से आये कई श्रद्धालु ऐसे मिले जो प्रथम शाही स्नान और अक्षय तृतीया पर्व के बाद अपने मुकाम को वापस जाना चाहते थे लेकिन भगवान महाकाल की नगरी का बहुरंगी दृश्य एवं संत-महात्माओं के समागम ने उन्हें जाने से रोक दिया।

बैमोसम बरसात एवं आँधी-तूफान भी श्रद्धालुओं की श्रद्धा को रोक नहीं सका अपितु श्रद्धाभाव निरंतर बढ़ता रहा। उज्जैन नगरी में रात का नज़ारा भी श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केन्द्र है।

प्रशासकीय व्यवस्थाओं के साथ स्वयंसेवी संस्थाओं ने सेवाभाव से श्रद्धालुओं की सेवा कर खूब पुण्य कमाया। महाराष्ट्र से आये 60 वर्षीय श्री राजा भारतीय, करनाल से आये 65 वर्षीय श्री राजीव भारतीय ने कहा कि उज्जैन सिंहस्थ से ऐसा महसूस हुआ कि चारों धाम की यात्रा पूरी हो गई है। अनेकता में एकता ही भारत की संस्कृति है, जिसका जीवन्त उदाहरण यहाँ देखने को मिला है।