बैंक से गलत तरीके से पैसा निकालने पर 6 महीने की जेल

हटाई गई कंपनियों का कोई निदेशक या प्राधिकृत हस्ताक्षरकर्ता अगर उसके बैंक खाते से गलत तरीके से पैसा निकालने का प्रयास करता है तो उसे कम से कम 6 महीने की जेल की सजा हो सकती है। कार्पोरेट गवर्नेंस के नियमों और प्रक्रियाओं को सशक्त करने के सरकार के मसौदे के क्रम में सरकार ने आज कुछ बड़े निर्णय लिये हैं जिससे ये शर्तें और अधिक सशक्त होंगी।

निर्णय लिया गया है कि सूची से हटाई गई कंपनियों का कोई निदेशक या प्राधिकृत हस्ताक्षरकर्ता अगर उसके बैंक खाते से गलत तरीके से पैसा निकालने का प्रयास करता है तो उसे कम से कम 6 महीने की जेल की सजा हो सकती है। इस सजा को 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। लोकहित से जुड़ा धोखाधड़ी का मामला पाये जाने पर कम से कम 3 वर्ष की सजा और जुर्माना लगाया जा सकता है। यह जुर्माना संबंधित राशि का 3 गुना होगा।

वित्तीय सेवा विभाग (डीओएफएस) द्वारा 5 सितंबर 2017 को सभी बैंको को जारी निर्देशों के अनुसार, ऐसी कंपनियों के निदेशक (पूर्व) या उनके प्राधिकृत हस्ताक्षरकर्ताओं को बैंक खातों से परिचालन पर रोक लगाई गई है और वे ऐसी सूची से हटाई गई कंपनियों के खातों से बेईमानी से पैसा नहीं निकाल सकेंगे। हालांकि ऐसी कार्रवाई करने से पहले, यदि वे बेईमानी से पैसा निकालते हैं तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

कार्पोरेट मामलों के राज्य मंत्री श्री पी. पी. चौधरी की अध्यक्षता में आयोजित एक समीक्षा बैठक में आज यह भी निर्णय लिया गया कि ऐसी फर्जी कंपनियों के निदेशकों, जिन्होंने 3 वर्ष या इससे अधिक वर्षों से रिटर्न नहीं भरा है, उन्हें उस कंपनी में जहां वे निदेशक के रूप में काम कर रहे हैं या किसी अन्य कंपनी में निदेशक के रूप में नियुक्ति या निदेशक के रूप में पुर्ननियुक्ति के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा और उन्हें पद छोड़ने के लिए बाध्य किया जाएगा। यह आशा की जाती है कि इस कवायद के परिणाम स्वरूप ऐसे कम से कम 3 लाख अयोग्य निदेशकों पर रोक लगायी जा सकेगी।

इन कंपनियों के बैंक खातों का संचालन प्रतिबंद्धित करने और निदेशकों को नियंत्रित करने के अलावा इन फर्जी कंपनियों के वास्‍तविक लाभार्थियों और व्‍यक्तियों की पहचान करने का भी प्रयास किया जा रहा है। प्रवर्तन एजेंसियों की सहायता से इन कंपनियों के निदेशकों के विवरण जैसे उनकी पृष्‍ठभूमि और पूर्व चरित्र और कंपनियों की कार्य प्रणाली में उनकी भूमिका के आंकड़े भी एकत्रित किये जा रहे हैं।

अन्‍य फर्जी कं‍पनियों की पहचान का कार्य भी किया जा रहा है। कुछ मामलों में अवैध कार्यों में लिप्‍त इन कंपनियों से संबंधित पेशेवर, चार्टर्ड अकाउंटेंट/कंपनी सचिव और कोस्‍ट एकाउंटेंट की पहचान की गई है और पेशेवर संस्‍थानों जैसे आईसीएआई, आईसीएसआई और आईसीएओआई द्वारा की जा रही कार्रवाई की निगरानी की जा रही है।

कार्पोरेट मामलों के राज्‍य मंत्री  चौधरी ने कहा कि फर्जी कंपनियों को समाप्‍त करने की कार्रवाई के परिणामस्‍वरूप न केवल काले धन के जोखिमों को रोकने में सहायता मिलेगी, बल्कि व्‍यापार करने की सुगमता और निवेशकों के विश्‍वास में वृद्धि होगी। यही वर्तमान सरकार की प्रतिबद्धता भी है।

उन्‍होंने कहा कि इससे कंपनियों की वित्‍तीय स्थिति का सही और उचित तरीके से पता लगेगा, जिससे धोखाधड़ी और कर चोरी की संभावनाएं न्‍यूनतम हो जाएंगी। फिर अवैध कार्यों के लिए धन की उपलब्‍धता को भी रोका जा सकेगा। श्री चौधरी ने कहा कि सभी भागीदारों के हितों की पूरी रक्षा की जाएगी और विश्‍व व्‍यापार में देश की छवि तथा व्‍यापार में महत्‍वपूर्ण रूप से सुधार होगा।

इससे पूर्व कंपनी मामले मंत्रालय द्वारा लगभग 2,09,032 फर्जी कंपनियों को हटाने और उनके पंजीकरण को रद्द करने की कार्रवाई का अनुसरण करते हुए वित्‍तीय सेवा विभाग, वित्‍त मंत्रालय ने इन कंपनियों के बैंक खातों को उनके निदेशकों या प्राधिकृत प्रतिनिधियों द्वारा संचालित करने पर प्रतिबंध लगा दिया है।

इन फर्जी कंपनियों के बैंक खातों के संचालन को प्रतिबंधित करने का निर्णय चौधरी द्वारा कंपनी मामले मंत्रालय का कार्यभार संभालने के तुरंत बाद की गई समीक्षा बैठक में भी लिया गया। मंत्री महोदय ने मनी लॉंड्रिंग और काले धन के प्रवाह में फर्जी कंपनियों की भूमिका के खतरे को रोकने के लिए व्‍यापक और तीव्र कार्रवाई करने की आवश्‍यकता पर जोर दिया।

उन्‍होंने सचिव, कंपनी मामले को इस मामले को वित्‍तीय सेवा विभाग, वित्‍त मंत्रालय के साथ उठाने का भी निर्देश दिया ताकि इन फर्जी कंपनियों के बैंक खातों का संचालन प्रतिबंद्धित किया जा सके। वित्‍तीय सेवा विभाग ने इस संदर्भ में तुरंत कार्रवाई की और तदानुसार कार्रवाई करने के लिए बैंकों को निर्देश जारी किये।

***