Symphony Orchestra

दक्षिण एशियाई सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा ‘चिराग’ का संगीत कार्यक्रम

(मुंबई में नेशनल सेंटर फॉर द परफॉर्मिंग आर्ट्स (एनसीपीए) के दक्षिण एशियाई सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा Symphony Orchestra के ‘चिराग’ संगीत कार्यक्रम के अवसर पर 28 अप्रैल, 2019 को उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू द्वारा दिया गया संबोधन)

“आज हम एक महत्वपूर्ण अवसर का साक्षी बनने के लिए यहां एकत्रित हुए हैं- जिसके माध्‍यम से हम यह प्रदर्शित करते हैं, कि हम भारत में, एक देश और लोगों के रूप में, सभी देशों के बीच सहयोग और सह-अस्तित्व के प्रति समर्पित हैं।

सेवानिवृत्त वरिष्ठ सिविल अधिकारी श्रीमती निरुपमा और श्री सुधाकर राव द्वारा दक्षिण एशियाई सिम्फनी फाउंडेशन की स्‍थापना इस उद्देश्‍य से की गई थी कि संगीत के दिव्य माध्यम से दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लोगों को एकजुट करने हेतु एक अद्वितीय परियोजना- अर्थात एक सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा Symphony Orchestra तैयार किया जा सके।

संगीत की भाषा सार्वभौमिक और भौगोलिक सीमाओं से परे है। संगीत लोगों को एकजुट करता है। हमने भारत में, हमेशा से यह स्‍वीकार किया है कि संगीत कार्यक्रम योग अथवा आध्यात्मिक अनुशासन का एक प्रभावी रूप हैं।

इसी प्रकार से एक ऑर्केस्ट्रा में भी कई संगीतकार एकसाथ शामिल होते हैं। ऑर्केस्ट्रा के प्रत्येक सदस्य को अपने स्वयं के साधन पर गहराई से ध्यान केंद्रित करना पड़ता है, लेकिन साथ ही साथ इसे अन्य संगीतकारों के साथ सामन्‍जस्‍य भी स्‍थापित करना पड़ता है।

यह आपकी अपनी पहचान को संरक्षित करने और साथ ही एक व्‍यापक, सहयोगी प्रयास का हिस्सा होने का एक सर्वोच्च उदाहरण है। राष्ट्रों और मानवों के बीच संबंधों में, यह संभवतः एक साथ रहने और कार्य करने की वह क्षमता है जो सभी अंतरों को मिटा सकता है।

महान संगीतकार, रॉबर्ट शुमान ने एक बार कहा था कि व्‍यक्तियों के अंधकार से परिपूर्ण हृदयों में प्रकाश लाना एक कलाकार का कर्तव्य है।

संगीत एक शक्तिशाली कला रूप है जो हमारे जीवन की गुणवत्ता को बदल सकता है।

मेरा विश्‍वास ​​है कि दक्षिण एशियाई सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा Symphony Orchestraअपने कार्यक्रम चिराग के माध्यम से, एक नवीन मार्ग प्रशस्‍त करेगा जिससे दक्षिण एशियाई लोगों के बीच लंबे समय से मौजूद सांस्कृतिक सहयोग और संवाद को और मजबूती मिल सकेगी।

दक्षिण एशिया को आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से और अधिक एकीकृत करने की आवश्यकता है, और क्षेत्र में लोगों से लोगों के बीच संबंध और समझ को और बढ़ना चाहिए ताकि हम अपनी पूर्व विरासतों को भूलते हुए जिसने हमें एक-दूसरे से अलग, विभाजित किया हुआ है, एकसाथ आगे बढ़ सकें।

मुझे प्रसन्‍नता है कि दक्षिण एशियाई सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा में कई दक्षिण एशियाई देशों के संगीतकार और दक्षिण एशियाई प्रवासी शामिल हैं। यह ऑर्केस्ट्रा संगीत के माध्यम से रचनात्मक अभिव्यक्ति के समर्पित विभिन्‍न देशों के बहनों और भाइयों का एक सुंदर समूह है। यह शांति की भाषा बोलता है और विचारों को एकजुट बनाते हुए हमें उस असीम अनुभव तक पहुंचाता है।

हमें सिर्फ इस कार्यक्रम तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। दक्षिण एशियाई सिम्फनी फाउंडेशन को अब ऐसे क्षेत्रीय स्वदेशी संगीत की प्रस्‍तुति और रचना के बारे में विचार करना चाहिए जिसे सम्‍पूर्ण विश्‍व में सुनाया जा सके।

हम अपने क्षेत्र में प्राचीन गांधार और हिंदू कुश की पहाडि़यों से लेकर सिंधु और गंगा के नदी जल तक, शक्तिशाली हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी तक और अरब सागर एवं दक्षिण में श्रीलंका, मालदीव और हिंद महासागर के तटों में बसी अपनी पाँच हज़ार वर्ष पुरानी सभ्यता के उत्तराधिकारी हैं। आइए हम इस सांस्कृतिक परंपराओं और संगीत की तालों का आनंद लें।

इसके साथ-साथ, आपको अन्य शहरों और क्षेत्रों में संगीत कार्यक्रमों की योजना बनानी चाहिए। मुझे आशा है कि जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा, आप दुनिया के महान ऑर्केस्ट्रा में से एक बन जाएंगे और आपकी पहचान शांति और सह-अस्तित्व के संदेश के लिए की जाएगी।

इस क्षेत्र के नन्‍हें बालकों के लिए संगीत प्रशिक्षण भी महत्वपूर्ण है। इस ऑर्केस्ट्रा में अफगानिस्तान के काबुल से भी कुछ उत्‍साही बच्चे हैं। ये सभी अपने संगीत के प्रति समर्पित हैं और बाहरी दुनिया के साथ अपनी कला के माध्यम से संवाद करते हैं, ये बच्‍चे अपने प्राचीन देश की ना सिर्फ प्रसिद्धि करते हैं बल्कि उसका सम्मान भी बढ़ाते हैं।

संगीत युद्ध और आतंकवाद की पीड़ाओं को दूर करने और मानवीय आत्मा के सर्वश्रेष्ठ भाव का प्रतीक है। मैं उन्हें और उनके गतिशील एवं अत्‍यंत उत्‍साही शिक्षक डॉ. अहमद सरमस्त को सलाम करता हूं जो आज हमारे साथ हैं।

इस भावना को हमें लगातार प्रोत्साहित करना चाहिए और बढ़ावा देना चाहिए। यही कारण है कि दक्षिण एशियाई सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा जैसे संगठनों को शांति और अहिंसा के संदेश को फैलाते हुए बुद्धि रहित हिंसा जैसे मार्ग पर चलने वाले गुमराह व्‍यक्तियों के मन से द्वेष रूपी विकारों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।

इस ऑर्केस्ट्रा के सदस्‍य और संगीतकार एक नवीन और पुनरुत्थानवादी दक्षिण एशिया के राजदूत बनें। वे प्राचीन सभ्यता के सार जैसे-शांति, करुणा और सह-अस्तित्व को पुन: जगाने और क्षेत्रीय एकता के लिए समान सांस्कृतिक समन्‍वय बनाने का कार्य करें।

मैं ऑर्केस्ट्रा के सभी संगीतकारों, संचालक, विश्व सुब्बारमण और संस्थापकों, निरुपमा और सुधाकर राव को दक्षिण एशियाई क्षेत्र में शांति और मानवतावादी संवाद और सहयोग को बढ़ावा देने के प्रयासों के लिए अपनी शुभकामनाएं देता हूं।