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सभी भारतीय भाषाओं के विकास और प्रसार का प्रयास होना चाहिए

जिस तरह दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा (दभाहिप्रस) नें हिन्दी का प्रचार-प्रसार किया है उसी तरह सभी भारतीय भाषाओं के विकास और प्रसार का प्रयास होना चाहिए।

यह विचार राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने शनिवार को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के शताब्दी समारोह का उद्घाटन करते हुए व्यक्त किया।

उन्होंने कहा कि आपकी संस्था को इसमें पहल करनी चाहिए। कोविंद ने उदाहरण देते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश कन्नड़ भाषा प्रचार सभा, केरल प्रदेश तमिल भाषा प्रचार सभा आदि।

राष्ट्रपति ने कहा कि एक से अधिक भाषा सीखनेे से सोच का दायरा बढ़ता है। भारत में कई भाषाएं और बोलियां हैं और उनमें से सभी की अपनी विशेष प्रकृति और सुंदरता है।यह विविधता भारत की संस्कृति और कल्याण में जोड़ती है।

उन्होंने कहा कि हिन्दी प्रचार के माध्यम से ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा’ ने राष्ट्रीय एकता और सौहार्द की नींव को मजबूत बनाया है। मुझे बताया गया है कि सभा ने लगभग 20 हज़ार सक्रिय हिन्दी प्रचारकों का नेटवर्क विकसित किया है।

कोविंद ने कहा कि सभा द्वारा अन्य भाषा-भाषियों के लिए हिन्दी की परीक्षा आयोजित की जाती है। मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई है कि वर्ष 2017-18 के दौरान, ऐसे परीक्षार्थियों की संख्या साढ़े आठ लाख से भी अधिक हो गयी है।

राष्ट्रपति ने कहा कि इस सभा के प्रयासों से, अब तक लगभग दो करोड़ छात्र लाभान्वित हो चुके हैं। सभा के ‘स्नातकोत्तर और शोध संस्थान’ द्वारा लगभग 6 हजार व्यक्तियों को पी.एच.डी., डी-लिट और अन्य प्रमाण पत्र प्रदान किए जा चुके हैं।

सभा द्वारा अनेक कॉलेजों के माध्यम से, हिन्दी शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि सभा के ‘राष्ट्रीय हिन्दी शोध पुस्तकालय’ में हिन्दी साहित्य की एक लाख से भी अधिक पुस्तकें हैं।

‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा’ ने एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया है, जिसका अनुकरण देश के सभी क्षेत्रों में होना चाहिए।

राष्ट्रपति कोविन्द के सम्बोधन के कुछ मुख्य बिन्दु हैं:

  • आज इंटरनेट पर हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में नयी सामग्री का सृजन बहुत तेज गति से बढ़ रहा है। यह प्रयास होना चाहिए कि बुनियादी और उच्च.शिक्षा के लिए उच्च.स्तर की सामग्री सभी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हो।
  • ऐसी सामग्री उपलब्ध होने से भारतीय भाषाओं के माध्यम से मौलिक ज्ञान-विज्ञान, काम-काज और व्यापार को बढ़ावा मिलेगा।
  • हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं में ऐसी क्षमता विकसित करनी चाहिए कि उनमें बायो.टेक्नालॉजी और इन्फॉर्मेशन.टेक्नालॉजी जैसे विषयों पर मौलिक काम किया जा सके।