Modi and Abe

जापान से एफडीआई का प्रवाह तीन वर्षों में लगभग तिगुना

गांधीनगर,  14 सितंबर (जनसमा)।  जापान से एफडीआई का प्रवाह पिछले तीन वर्षों में लगभग तिगुना हो गया है। भारत-जापान व्‍यावसायिक प्रमुखों के फोरम में गांधीनगर में प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी ने कहा कि आज दुनिया की सर्वाधिक उदार एफडीआई व्यवस्थाओं में भारत को भी शुमार किया जाता है। 90 प्रतिशत से ज्यादा एफडीआई मंजूरियां स्वतः रूट के जरिये दी जा रही हैं। हमने विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड को समाप्त कर दिया है। इस उदारीकरण के परिणामस्वरूप भारत का एफडीआई पिछले वित्त वर्ष में 60 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है।

उन्होंने कहा कि पिछले साल जापान की ओर से किसी एक वित्‍त वर्ष में अब तक की सबसे अधिक सरकारी विकास सहायता राशि दी गयी। इसी तरह भारत में काम कर रही जापानी कंपनियों की संख्‍या भी पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ी है। आज शुरू किये गये कार्यक्रमों से आप दोनों देशों के संबंधों की गहराई का अंदाजा लगा सकते हैं।

  • पहली मुंबई-अहमदाबाद तेज रफ्तार रेल परियोजना :
  • मुझे उम्‍मीद है कि 500 किमी लंबी बुलेट ट्रेन रेल लाइन का काम जल्‍द शुरू हो जाएगा और यह 2022-23 तक चालू हो जाएगी
  • तेज रफ्तार रेल परियोजना के साथ-साथ एक प्रशिक्षण संस्‍थान भी बनाया जा रहा है
  • इसमें मेकर्स ऑफ न्‍यू इंडिया यानी नये भारत के निर्माताओं का निर्माण होगा जो इस इस तेज रफ्तार रेलवे के निर्माण, संचालन और रखरखाव के लिए वांछित अत्‍यधिक कौशल संपन्‍न जनशक्ति की आवश्‍यकता पूरी करेंगे.
  • दूसरा, जापानी औद्योगिक बस्‍ती का विकास: देश भर में चार स्‍थानों को अंतिम रूप दिया गया है. गुजरात के अलावा ये राजस्‍थान, आंध्र प्रदेश और तमिल नाडु में हैं.
  • तीसरा है ऑटो-मोबाइल यानी मोटरवाहन उद्योग के क्षेत्र में हमारा सहयोग : मांडल में सुज़ुकी का संयंत्र दुनिया भर को कारों का निर्यात कर रहा है और नेक्‍स्‍ट जेनरेशन यानी अगली पीढ़ी के हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए लीथियम-आयन बैटरियों के उत्‍पादन की नींव रख दी गयी है.
  • चौथा है, जापान-भारत विनिर्माण संस्‍थानों के जरिए मानव संसाधन विकास. इनका विकास जापानी कंपनियों द्वारा किया जा रहा है. गुजरात के अलावा कर्नाटक, राजस्‍थान और तमिलनाडु में इनका विकास किया जाएगा.

मोदी ने कहा कि  वाराणसी कन्वेंशन सेंटर की परियोजना जापान के क्योटो शहर और वाराणसी के बीच सांस्कृतिक सहयोग का प्रतीक है। इसकी परिकल्पना प्रधानमंत्री आबे और मैंने तब की थी जब हम एक साथ वर्ष 2015 में वाराणसी के दौरे पर गए थे। मैंने इसका नाम “रुद्राक्ष” रखा है, जो स्नेह का प्रतीक है और मानवता के लिए भगवान शिव का प्रसाद है। यह रुद्राक्ष वाराणसी के लिए जापान की ओर से स्नेह की माला होगी। यह सारनाथ में हमारी मौजूदा साझा बौद्ध विरासत को एक श्रद्धाजंलि भी होगी। इस परियोजना के लिए जापान की वित्तीय सहायता हेतु मैं प्रधानमंत्री आबे को अपनी ओर से हार्दिक व्यक्तिगत धन्यवाद देता हूं।