Justice

आईसीजे सुनिश्चित करे कि जाधव को फांसी न दी जाए

द हेग, 15 मई | अंतर्राष्‍ट्रीय न्‍यायालय अध्यक्ष रॉनी अब्राहम के समक्ष जिरह के दौरान तथ्यों को सामने रखते हुए भारत के वकील हरीश साल्वे ने कहा, “मैं आईसीजे से आग्रह करता हूं कि वह सुनिश्चित करे कि जाधव को फांसी न दी जाए, पाकिस्तान इस अदालत को बताए कि (फांसी नहीं देने की) कार्रवाई की जा चुकी है और ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की गई है, जो जाधव मामले में भारत के आधिकारों पर प्रतिकूल असर डालता हो।”

भारत को आशंका है कि पाकिस्‍तान कूलभूषण जाधव को उसका पक्ष सुनने से पहले ही फांसी पर लटका सकता है। भारत के वकील हरीश साल्‍वे ने कहा कि जाधव को पिछले वर्ष तीन मार्च को गिरफ्तार किया गया था और पाकिस्‍तान की सैन्‍य अदालत ने उन पर जासूसी और विध्‍वंसक गतिविधियों का आरोप लगाकर मौत की सजा सुनाई थी। पाकिस्‍तानी सेना की हिरासत में रखे जाने के दौरान उनसे करवाए गए कबूलनामे के आधार पर ये आरोप लगाये गए थे।

Renowned sand artist Sudarsan Pattnaik’s creation to press for “Justice for Kulbhushan Jadhav” in Puri on May 15, 2017. (Photo: IANS)

हेग स्थित अंतराष्‍ट्रीय न्‍यायालय में जाधव मामले की सुनवाई शुरू होने पर भारत ने दलील दी कि पाकिस्‍तान ने मौलिक मानवअधिकारों की धज्‍जि‍यां उड़ा दी हैं। भारत ने कहा कि वह चाहता है कि जाधव को अपना पक्ष रखने का कानूनी हक मिले।अंतर्राष्ट्रीय अदालत (आईसीजे) में कथित भारतीय जासूस कुलभूषण जाधव के मामले पर सोमवार को सुनवाई के दौरान भारत तथा पाकिस्तान ने मजबूती से अपने पक्ष रखे।

नई दिल्ली ने अदालत से अपील की कि वह जाधव की मौत की सजा को तत्काल रद्द करे। पाकिस्तान ने भारत की दलील को इस आधार पर खारिज कर दिया कि मामले को अंतर्राष्ट्रीय अदालत के दायरे में लाने का नई दिल्ली पास कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि विएना संधि के प्रावधान जासूसी, आतंकवादियों तथा जासूसी में संलिप्त लोगों से संबंधित मामलों में लागू नहीं होते।

इस्लामाबाद को हालांकि उस समय जोरदार झटका लगा, जब उसने अंतर्राष्ट्रीय अदालत से जाधव के कबूलनामे का वीडियो चलाने की अनुमति मांगी, लेकिन अदालत ने अनुमति नहीं दी।

सोमवार को हुई सुनवाई के अंत में आईसीजे के अध्यक्ष रॉनी अब्राहम ने घोषणा की कि मामले में फैसला ‘यथासंभव जल्द से जल्द’ दिया जाएगा।

साल्वे ने कहा कि ‘मामले की गंभीरता को देखते हुए भारत ने इस अदालत का रुख किया’, जिसने इसपर तत्काल संज्ञान लिया।

साल्वे ने अदालत से कहा कि 16 मार्च, 2016 को ईरान में जाधव का अपहरण किया गया और फिर पाकिस्तान लाकर कथित तौर पर भारतीय जासूस के तौर पर पेश किया गया और सैन्य हिरासत में एक दंडाधिकारी के समक्ष उनसे कबूलनामा लिया गया। उन्हें किसी से संपर्क नहीं करने दिया गया और सुनवाई भी एकतफा की गई।

उन्होंने आईसीजे के अध्यक्ष से आग्रह किया कि वह सैन्य अदालत की विवेकशून्य परिस्थितियों पर ध्यान दें।

साल्वे ने कहा कि विएन संधि के प्रावधानों के मुताबिक, प्रत्येक कैदी के पास अधिकार है कि उसकी सुनवाई स्वतंत्र अदालत में हो, जिसे कानून के माध्यम से स्थापित किया गया हो और उसपर मुकदमा उसकी मौजूदगी में चलना चाहिए तथा आरोपी को अपना बचाव करने के लिए कानूनी सहायता दी जानी चाहिए। जाधव के मामले में मानवाधिकार के समस्त प्रावधानों की धज्जियां उड़ाई गईं।

उन्होंने कहा कि भारत द्वारा पेश किए गए तथ्यों ने सुनवाई की प्रकृति के आधार पर यह स्पष्ट किया कि संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र तथा विएना संधि के समस्त सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया।

साल्वे ने अतीत के उन तीन मामलों का जिक्र किया, जिनमें आईसीजे ने हस्तक्षेप किया था। पराग्वे बनाम अमेरिका के मामले में अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि अमेरिकी सरकार को पराग्वे के नागरिक को राजनयिक संपर्क सुनिश्चित करने को लेकर कदम उठाने की जरूरत है।

साल्वे ने कहा कि जर्मनी बनाम अमेरिका के मामले में अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि जर्मनी के एक नागरिक को सुनाई गई मौत की सजा ‘न्याय की अपूरणीय क्षति’ है। उन्होंने अमेरिका बनाम मेक्सिको के एक मामले का भी संदर्भ दिया, जिसमें मौत की सजा पाए मेक्सिको के 54 लोगों की जिंदगी दांव पर लग गई थी।

पाकिस्तान की तरफ से पेश हुए वकील खवार कुरैशी ने मामले को आईसीजे में लाने के भारत के प्रयास को खारिज करते हुए कहा कि विएना संधि के प्रावधान जासूसो, आतंकवादियों तथा जासूसी में संलिप्त लोगों के मामलों में लागू नहीं होते हैं।

उन्होंने कहा, “भारत विएना संधि के अनुच्छेद 36 के प्रावधानों के तहत मामले की सुनवाई चाहता है, जो इस मामले में प्रासंगिक नहीं है। विएना संधि मित्रवत देशों के बीच बेहतर संपर्को के लिए स्वीकार की गई थी। लेकिन एक देश द्वारा करवाई गई जासूसी के मामले में यह लागू नहीं होती।”

भारत के वकील साल्वे द्वारा दी गई दलीलों के 45 मिनट के जवाब के दौरान कुरैशी ने कहा, “विएना संधि से यह स्पष्ट होता है कि अनुच्छेद 36 के तहत भारत ने जिन प्रावधानों के तहत सुनवाई की मांग की है, उसकी अनुमति अदालत नहीं दे सकती।”

वकील ने दावा किया कि भारत ने आठ सितंबर, 1974 को आईसीजे से कहा था कि पाकिस्तान के साथ उसके विवादों तथा बहुपक्षीय संबंधों से संबंधित किसी भी व्याख्या व उत्तरदायित्व से वह अपने अधिकार क्षेत्र से उसे बाहर निकाल दे।

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि पाकिस्तान जिन मुद्दों को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मानता है, उसमें आईसीजे के अधिकार क्षेत्र को लेकर उसे आपत्ति है।

कुरैशी ने जाधव को अगवा किए जाने के आरोपों को खारिज किया।

उन्होंने कहा, “भारत ने अपने उस आरोप के समर्थन में कोई सबूत मुहैया नहीं कराया है, जिसमें उसने कहा है कि जाधव को ईरान से अगवा किया गया। भारत के साथ लगती हमारी काफी लंबी सीमा है, जहां लाखों लोग रहते हैं। अगर हम चाहते तो किसी को भी उठाकर ले जाते। यह कहना कि हम जाधव को ईरान से अगवा कर पाकिस्तान लाए, बस केवल कपट है।”

उन्होंने कहा कि जाधव तक राजनयिक पहुंच प्रदान करने के मुद्दे पर इसलिए विचार नहीं किया गया, क्योंकि उसपर जासूसी का आरोप है और आतंकवादियों के संदर्भ में इसपर विचार नहीं किया जाता।

कुरैशी ने कहा कि कुल मिलाकर अदालत से भारत को कोई राहत नहीं मिलने वाली और भारत ने जिन तत्कालीन उपायों की मांग की है, उसकी पहल नहीं की जा सकती।

उन्होंने कहा कि साल्वे ने अपनी दलीलों में मेक्सिको तथा जर्मनी सहित अमेरिका तथा अन्य राष्ट्रों से संबंधित जिन मामलों का हवाला दिया है, वे प्रासंगिक नहीं हैं और तथ्यात्मक रूप से सही नहीं हैं।