जस्टिस कर्णन ने CJI सहित सुप्रीम कोर्ट के सात जजों को ‘घर की अदालत’ में किया तलब

कोलकाता, 14 अप्रैल। सर्वोच्च न्यायालय के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सी. एस. कर्णन ने गुरुवार को प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. एस. केहर सहित सर्वोच्च न्यायालय के सात न्यायाधीशों के खिलाफ समन जारी कर उन्हें अपनी अदालत में पेश होने का आदेश दिया है। न्यायाधीश कर्णन ने अनुसूचित जाति/जनजाति (प्रताड़ना से संरक्षण) अधिनियम का उल्लंघन करने के आरोप में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ यह आदेश जारी किया है और उन्हें 28 अप्रैल को अपनी अदालत में पेश होने का निर्देश दिया है।

फाइल फोटो : न्यायाधीश सी. एस. कर्णन। (आईएएनएस)

जस्टिस कर्णन ने अपने आवास पर पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘ सातों माननीय न्यायाधीश 28 अप्रैल 2017 को सुबह साढ़े ग्यारह बजे मेरे रोजडेल आवासीय अदालत में पेश होंगे और अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के उल्लंघन को लेकर कितनी सजा हो, इसके बारे में अपनी राय रखेंगे।’ उन्होंने अपने आवास से स्वत: संज्ञान न्यायिक आदेश पारित किया। अपने आवास को उन्होंने अस्थायी न्यायालय करार दिया।

हालांकि अभी न्यायाधीश कर्णन द्वारा जारी किए गए आदेश की वैधानिकता स्पष्ट नहीं है, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायाधीश कर्णन से उनकी प्रशासनिक एवं न्यायिक शक्तियां छीन ली हैं। इन सातों न्यायाधीशों ने स्व-संज्ञान से फरवरी में न्यायाधीश कर्णन के खिलाफ अदालत की अवमानना का आदेश जारी किया था। न्यायाधीश कर्णन के खिलाफ अवमानना का यह आदेश जनवरी में 20 न्यायाधीशों को भ्रष्ट बताते हुए उनके खिलाफ जांच की मांग करने के बाद जारी किया गया था।

अपने आदेश में जस्टिस कर्णन ने कहा कि 31 मार्च को देश के चीफ जस्टिस जी. एस. खेहर ने उनके मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि 6 दूसरे जजों ने सवाल का अनुमोदन किया, जो खुली अदालत में उनके अपमान के बराबर है। गौरतलब है कि चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने जस्टिस कर्णन को अवमानना नोटिस का जवाब देने के लिए 4 हफ्ते का वक्त दिया है। जस्टिस कर्णन ने दावा किया, ‘सीजेआई ने मेरे बारे में कहा कि मेरी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है इसलिए अवमानना कार्यवाही को 4 हफ्ते के लिए टाला जाता है जिससे मेरी मानसिक स्थिति ठीक हो सके। यह खुली अदालत में मेरा एक और बड़ा अपमान था और इस बात का भी बाकी 6 माननीय जजों ने अनुमोदन किया।’