ropeway

शिमला, मनाली और धर्मशाला के लिए नई रोप-वे परिवहन सुविधा 

हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) सरकार शिमला(Shimla) , मनाली (Manali) और धर्मशाला (Dharmshala) जैसे शहरों में सड़कों पर भीड़-भाड़ कम करने के लिए नई रोप-वे (ropeway) परिवहन सुविधा शुरू करेगी।

रोप-वे (ropeway) परियोजनाओं में त्वरित निष्पादन  के लिए राज्य सरकार ने हिमाचल प्रदेश एरियल रोप-वे अधिनियम, 1968 (Himachal Pradesh Aerial Ropeway Act, 1968) पर विधानसभा में संशोधन किया है, जिसे 29 अगस्त, 2019 को पारित किया गया है।

पीपीपी और अन्य सरकारी वित्त पोषित रो-वे (ropeway)  परियोजनाओं के शीघ्र क्रियान्वयन के लिए हिमाचल प्रदेश एरियल रोप-वे अधिनियम को  सरल बनाया गया है।

यह संशोधन इस क्षेत्र में बड़े निवेश को आकर्षित करने में सहायता करेगा। इससे पहले से रुकी हुई परियोजनाएं जल्दी पूरी हो सकेंगी तथा नई परियोजनाओं को शुरू करने में मदद मिलेगी।

शिमला जाखू रोप वे : फोटो यूट्यूब से साभार

यह अधिनियम (Act)  परिवहन क्षेत्र में नवीनतम और आधुनिक तकनीकों को अपनाने की दिशा में एक और सकारात्मक कदम है।

इससे ग्रामीण इलाकों की बस्तियों को शहरी क्षेत्र से जोड़ने और पर्यटकों को आकर्षित करने में भी मदद मिलेगी। इससे नये पर्यटक स्थलों को भी शामिल किया जा सकेगा।

इसके साथ ही रोप-वे (ropeway)  के माध्यम से प्रदेश में पर्यटन क्षमता में वृद्धि लाने, सभी मौसम में जनजातीय क्षेत्रों के लिए आवाजाही सुनिश्चित बनाने और अधिक भीड़भाड़ वाली सड़कों में ओवरहेड परिवहन (transportation ) सुविधा प्रदान करने पर भी बल दिया जा रहा है।

हिमाचल प्रदेश एरियल रोप-वे अधिनियम, 1968  पारित हो जाने के बाद भवन की छत के ऊपर से वर्टिकल निकासी की वर्तमान धारा (टीसीपी कानून के तहत अधिकतम इमारत की ऊंचाई निर्धारित है) और कैबिन के आधार को भारतीय मानकों के अनुसार अधिकतम 10 से 5 मीटर तक बदल दिया गया है।

भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) विभिन्न मामलों में 1.5 मीटर से 5 मीटर वर्टिकल निकासी की सलाह देता है।

वर्टिकल निकासी में इस बदलाव से रोप-वे (ropeway)  परियोजनाएं तकनीकी-व्यावसायिक  निर्माण की दृष्टि से व्यवहारिक होंगी।

हिमाचल राज्य भूकम्पीय क्षेत्र पांच में स्थित है जिससे इन क्षेत्रों में कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए अधिक संख्या में रोप-वे (ropeway)  की आवश्यकता है।

इसके अतिरिक्त, टावरों की कम ऊंचाई के साथ भूमि, पेड़ों और पहाड़ियों को काटने की आवश्यकता काफी कम हो जाएगी।

इससे इस पर्वतीय राज्य की नाजुक पारिस्थितिकी को बचाया जा सकेगा और परियोजना लागत में भी काफी कमी आएगी।

 

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