Rasha mohan

रासायनों के अनियंत्रित उपयोग से असुरक्षित खाद्यान्न उत्पादन

देश में रासायनिक उर्वरक, कीट-रोगनाशी रासायनों एवं अन्य रासायनों का प्रयोग करने से कृषि उत्पादन तो बढ़ गया है लेकिन रासायनों के अनियंत्रित उपयोग से असुरक्षित खाद्यान्न उत्पादन करने के कारण समस्याएं भी बढ़ गईं हैं।

यह बात केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री, राधा मोहन सिंह ने इंडिया एक्सपो सेंटर, ग्रेटर नोएडा में 9 नवंबर को जैविक कृषि विश्व कुम्भ 2017 का उदघाटन करते हुए कही।

सिंह ने कहा कि अब देश में खाद्य आपूर्ति की कोई समस्या नही है, लेकिन देश की बढ़ती जनसँख्या को सुरक्षित एवं पौष्टिक खाद्यान उपलब्ध कराने की महत्वपूर्ण चुनौती का कार्य अभी शेष है, हमारी निर्भरता रासायनिक खेती पर हो गयी है

सिंह ने कहा है कि भारत परंपरागत रूप से दुनिया का सबसे बड़ा जैविक कृषि करने वाला देश हैI यहाँ तक कि मौजूदा भारत के बहुत बड़े भू – भाग में परंपरागत ज्ञान के आधार पर जैविक खेती की जाती है।

सिंह ने यह बात आज इस आयोजन में विश्व के 110 देशों के 1400 प्रतिनिधि और 2000 भारतीय प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। आयोजन को इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ आर्गेनिक फार्मिक मूवमेंट्स (आईफोम) और ओएफआई ने मिलकर आयोजित किया है।

राधा मोहन सिंह ने कहा कि देश में वर्तमान में 22.5 लाख हेक्टेयर जमीन पर जैविक खेती हो रही है जिसमे परंपरागत कृषि विकास योजना से 3,60,400 किसान को लाभ पहुंचा है। इसी तरह पूर्वोत्तर राज्यों के क्षेत्रों में जैविक कृषि के अंतर्गत 50,000 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करने का लक्ष्य है। अब तक 45863 हेक्टेयर क्षेत्र को जैविक योग्य क्षेत्र में परिवर्तित किया जा चुका है और 2406 फार्मर इटेंरेस्ट ग्रुप (एफआईजी) का गठन कर लिया गया है, 2500 एफआईजी लक्ष्य के मुकाबले 44064 किसानों को योजना से जोड़ा जा चुका है।

केन्द्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि उत्तर प्रदेश में परंपरागत कृषि विकास योजना वर्ष 2015-16 से प्रारम्भ हुई और 28750 एकड़ मे 28750 किसान को लाभ पहुंचा है। किसानो के जैविक उत्पादो के विपणन के लिए राज्य सरकार 5 लाख रुपये प्रति जनपद को देकर बिक्री केंद्र (Outlet) खुलवा रही हैI श्री सिंह ने कहा कि दुनिया के कुछ वैज्ञानिक इसे ‘डिफाल्ट ऑर्गेनिक’ कहते हैं, लेकिन हमें यह समझने की जरूरत है कि जो किसान परंपरागत रूप से जैविक खेती कर रहे हैं, यह उनकी मजबूरी नहीं, उनकी पसंद है। बेहद गहरी समझ के साथ वो इस रास्ते पर सदियों से चल रहे हैं। आज, वो रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं करते तो यह उनकी अज्ञानता नहीं है, बल्कि उन्होंने बहुत सोचसमझ कर ऐसा न करने का फैसला किया है। इसलिए उनकी इस खेती की विधि को ‘बाई डिफाल्ट’ नहीं कहा जा सकता ।

सिंह ने कहा कि भारत सरकार इस बात को स्वीकार करती है कि पिछले कुछ दशकों में खेतों में रासायनिक खाद के अंधाधुंध उपयोग ने यह सवाल पैदा कर दिया है कि इस तरह हम कितने दिन खेती कर सकेंगे? रासायनिक खाद युक्त खेती से पर्यावरण के साथ सामाजिक-आर्थिक और उत्पादन से जुड़े मुद्दे भी हैं जो हमारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं ।