Gau Seva

आखिर क्या है गौरक्षा का मकसद ?

इन दिनों देश में गाय और गाय के रक्षकों यानी ‘गौरक्षकों‘ की चर्चा कुछ ज्यादा ही सुर्खियां बटोर रही है। आए दिन कोई न कोई समाचार इस बारे में सुनने को मिल ही जाता है जिसमें नकारात्मकता और आक्रामकता का बोलबाला रहता हैै। कहीं गौरक्षकों ने पशु तस्करों से गायों को मुक्त कराया तो कहीं कुछ कथित ‘गौरक्षकों’ के हाथों पिटकर किसी की जान चली गई। कहीं गौरक्षकों ने मांस की दुकानों को जबरन बंद करा दिया तो कहीं मांस को ले फर्जी गौरक्षकों के कारण सरकारों की किरकिरी हुई।

एक कार्यक्रम में तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को यहां तक कहना पड़ा कि 80 प्रतिशत गौरक्षक ‘फर्जी’ होते हैं।

अब प्रश्न उठता है कि आखिर गौरक्षा का मतलब क्या है? भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग द्वारा अप्रैल 1967 में प्रकाशित एक पुस्तक ‘गांधीजी और गौरक्षा’ में गांधीजी द्वारा गौरक्षा के संबंध में दिए गए वक्तव्यों को पढ़कर गौरक्षा के बारे में काफी कुछ समझा जा सकता है।

यहां हम बिन्दुवार गांधीजी के शब्दों को प्रस्तुत कर रहे हैं:

प्रकाशित पुस्तक का मुखपृष्ठ

  • ‘‘मैं बचपन से ही गौभक्त रहा हूं। मैं उसे सारी सुख-समृद्धि की जननी मानता हूं। दुनिया के किसी भी देश में गाय या गोवंश की ऐसी दुर्दशा नहीं जैसी भारत में है। आश्चर्य तो यह है कि भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां गौ पूजी जाती है।
  • ऐसी स्थिति लाई जा सकती है और लाई जानी चाहिए कि गोवध में तनिक भी आर्थिक लाभ न रह जाए। पर दुर्भाग्य से दुनिया भर में भारत ही एक ऐसा देश है, जहां इस पूज्य पशु को मारना सब से सस्ता पड़ता है।
  • हम दया भाव से पिंजरापोल और गौशालाएं स्थापित करते हैं, पर जिस ढंग से वे चलते हैं, उससे दया प्रगट नहीं होती।
  • गौ मेरे लिए दया की मूर्ति है। अभी तक हम गोरक्षा से केवल खिलवाड़ करते रहे हैं। पर हमें जल्दी ही वास्तविकता का सामना करना पड़ेगा।
  • कानून बनाना तो गौरक्षा कार्यक्रम का सबसे छोटा अंग है… लोग यह समझते हैं कि बस कानून बनते ही हर बुराई किसी प्रकार के प्रयत्न के बिना अपने आप मिट जाती है।
  • मैं धर्म के मामले में सरकार के हस्तक्षेप के विरुद्ध हूं और भारत में गौ का प्रश्न धार्मिक और आर्थिक दोनों तरह का है। हिन्दु धर्म ने केवल हिन्दुओं के लिए गौहत्या का निषेध किया है सारी दुनिया के लिए नहीं।
  • गौहत्या के लिए कसाई को दोषी ठहराना ठीक वैसा ही है जैसा कि अपने बुखार के लिए डाक्टर के सिर दोष मढ़ना। हमारी ही घोर उपेक्षा के कारण गौ कसाई के हाथ में पड़ती है।
  • हम गौ की रक्षा नहीं कर सकते इसी का आगे यह परिणाम होता है कि देश में भूखे, सूखे और हड्डियों के ढांचे वाले लोग दिखाई देते हैं। हमारी सभ्यता दूसरी सभ्यताओं से बिल्कुल भिन्न है। हमारे पशु हमारे जीवन के अंग हैं।’’

अब यह सोचने का विषय है कि गाय की रक्षा का मकसद क्या होना चाहिए?

– जनसमाचार ब्यूरो