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भारतीय मूल के तीन करोड़ से भी अधिक लोग विदेशों में

नई दिल्ली, 13 अगस्त (जनसमा)। अधिकृत जानकारी के अनुसार भारतीय मूल के तीन करोड़ से भी अधिक लोग आज विदेशों में प्रवास करते हैं, हालांकि जनसंख्‍या की दृष्टि से प्रवासी भारतीयों की तादाद मात्र एक प्रतिशत है। जहां जहां वे रह रहे हैं उन देशों में भारतीयों ने अपनेी प्रतिभा और परिश्रम के बल पर भारत का नाम गौरन्वावित किया है और कर रहे हैं।।

सरकारी आंकडे बताते हैं कि ये प्रवासी भारतीय, भारत के सकल घरेलू उत्‍पाद में 3.4 प्रतिशत का योगदान करते हैं। पिछले साल जारी विश्‍व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत 2015 में प्रवासियों द्वारा सबसे अधिक रकम प्राप्‍त करने वाला देश था क्‍योंकि इस दौरान उसे 69 अरब डालर की अनुमानित आमदनी हुई।

लंदन में भारतीय उच्चायोग में प्रवासी भारतीय दिवस – 2016 के आयोजन में प्रमुख भारतवंशी। (फोटो विदेश मंत्रालय के सौजन्य से)

भारत के करीब 3 करोड़ प्रवासी जिन-जिन देशों में रह रहे हैं वहां की तमाम महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेदारियां और भूमिकाएं निभा रहे हैं। और इस तरह इन देशों में नीति निर्धारण करने में योगदान कर रहे हैं। सिंगापुर के राष्‍ट्रपति, न्‍यूजीलैंड के गवर्नर जनरल और मारीशस तथा ट्रिनिडाड.टोबैगो के प्रधानमंत्री भारतीय मूल के हैं।  पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एंटोनियो कोस्टा के पिता भी गोवा के रहने वाले थे।

इतना ही नहीं दुनिया के 18 देशों में भारतीय मूल के लोग राजनीति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण पदों पर हैं। ये देश हैं  :

1 कनाडा 2 फिजी 3 गुयाना 4 आयरलैंड 5 जमैका 6 केन्या 7 मलेशिया 8 मॉरिशस 9 नीदरलैंड 10 न्यूज़ीलैंड 11 पुर्तगाल 12 सिंगापुर 13 दक्षिण अफ्रीका 14 सूरीनाम 15 तंजानिया 16 त्रिनिदाद और टोबैगो 17 ब्रिटेन और 18 अमेरिका।

ड्यूक  और कैलीफोर्निया विश्‍वविद्यालय द्वारा कराए गये एक अध्‍ययन के अनुसार अमेरिका में 1995 से 2005 तक प्रवासियों द्वारा स्‍थापित इंजीनियरी और आईटी कंपनियों में से एक चौथाई से ज्‍यादा भारतीयों की थीं। इतना ही नहीं देश के होटलों में से करीब 35 प्रतिशत के स्‍वामी प्रवासी भारतीय ही थे।

अमेरिका की सन् 2000 की जनगणना के अनुसार वहां रह रहे प्रवासी भारतीयों की औसत वार्षिक आय 51 हजार डॉलर थी जबकि अमेरिकी नागरिकों की औसत वार्षिक आय 32 हजार डॉलर थी।

करीब 64 प्रतिशत भारतीय-अमेरिकियों के पास स्‍नातक की डिग्री या इससे ऊंची शैक्षिक योग्‍यताएं थीं जबकि डिग्रीधारी अमेरिकियों का समग्र औसत 28 प्रतिशत और डिग्रीधारी एशियाई-अमेरिकियों का औसत 44 प्रतिशत था।

करीब 40 प्रतिशत भारतीय-अमेरिकियों के पास स्‍नातकोत्‍तर, डाक्‍टरेट या अन्‍य पेशेवर डिग्रियां थीं जो अमेरिकी राष्‍ट्रीय औसत से पांच गुना अधिक है।

प्रभावशाली भारतवंशी न सिर्फ उस देश के जनमत पर असर डालते हैं बल्कि वहां की सरकारी नीतियों पर भी उसका प्रभाव पड़ता है जिसका लाभ भारत को मिलता है। 

(पीआईबी द्वारा जारी प्रगित परमेश्‍वरन के इनपुट के साथ जनसमा ब्यूरो)