हमारी कोशिश, बस्तर में ढोल और मांदर की थाप गूंजे : रमन

रायपुर, 10 अगस्त (जस)। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने नक्सलियों से हिंसा छोड़ने और शांतिपूर्ण विकास की मुख्यधारा से जुड़ने का आह्वान किया है। डॉ. सिंह ने कहा कि यदि वे ऐसा करते हैं तो छत्तीसगढ़ सरकार उन्हें गले लगाने को तैयार रहेगी। मुख्यमंत्री ने मंगलवार को राजधानी रायपुर में विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर आदिवासियों के विशाल सम्मेलन और अलंकरण समारोह को सम्बोधित करते हुए कहा-हमारी कोशिश है कि बस्तर में एक बार फिर ढोल और मांदर की थाप गूंजे। बस्तर अब तेजी से विकास की राह पर आगे बढ़ रहा है।

विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर इस विशाल सम्मेलन की अध्यक्षता केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने की। कुलस्ते ने लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व मे राज्य सरकार सराहनीय प्रयास कर रही है।

डॉ. रमन सिंह और केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री कुलस्ते ने इस अवसर पर खेल, शिक्षा, चिकित्सा, समाज सेवा तथा कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य से छत्तीसगढ़ का नाम रोशन करने वाले आदिवासी समाज के 200 छात्र-छात्राओं तथा युवक-युवतियों को शॉल एवं स्मृति चिन्ह प्रदान कर उन्हें सम्मानित किया। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ सहित असम, गुजरात, त्रिपुरा, मेघालय, और मणिपुर के कलाकारों द्वारा आदिवासी नृत्य की आकर्षक प्रस्तृति दी गई।

मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद वीर नारायण सिंह, भूमकाल के जननायक गुण्डाधूर, जननायक बिरसा मुण्डा, वीरांगना रानी दुर्गावती तथा भूमिया राजा शहीद गेंद सिंह सहित उन सभी महापुरूषों की शहादत को नमन किया, जिन्होंने देश की आजादी में अपने प्राणों की आहूति दी । डॉ. सिंह ने कहा कि भारत के इन सपूतों के बलिदान की बदौलत ही आज हम आजादी की खुली हवा में सांस ले रहे है। श्री रामदयाल मुण्डा के अथक प्रयास से 9 अगस्त से विश्व आदिवासी दिवस मनाने की शुरूआत हुई है और आज न केवल भारत में बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसे मनाया जा रहा है।

डॉ. रमन सिंह ने कहा कि हजारों सालों से प्रकृति और संस्कृति को संरक्षित रखने का काम जनजातीय समाज के लोग कर रहे है। वन संपदा और खनिज संपदा की रक्षा में आदिवासी भाईयों की हमेशा से महत्वपूर्ण भूमिका रही है। डॉ. सिंह ने कहा कि आज का दिन छत्तीसगढ़ के लिए एक गौरवशाली दिन है जब रायपुर के पुरखौती मुक्तांगन में आदिवासी संस्कृति और कला के संरक्षण, संवर्धन और अनुसंधान के लिए 100 करोड़ की लागत से 120 एकड़ में अनुसंधान और प्रशिक्षण केन्द्र के लिए भूमिपूजन हुआ है।