धारा 144

गहलोत ने प्रधानमंत्री से जीएसटी के बारे में वायदे को पूरा करने का अनुरोध किया

जयपुर, 8 सितंबर। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर केंद्र सरकार द्वारा जीएसटी लागू करते समय राज्यों से किए गए वायदे को पूरा करने का अनुरोध किया है।
मुख्यमंत्री गहलोत ने केंद्र सरकार से जीएसटी को लागू करते समय राज्य सरकारों से किए गए वायदों को पूरा करने एवं केंद्र द्वारा लागू किए जा रहे कुछ करों का अधिकार राज्य सरकारों के लिए छोड़ने का आग्रह किया है।
उन्होंने केंद्र सरकार एवं राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों में विश्वास कायम रखने के लिए प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है।
सोमवार को लिखे गए पत्र प्रधानमंत्री को पत्र  में गहलोत ने राज्यों को जीएसटी कम्पनसेशन के भुगतान में आ रही कठिनाइयों की ओर ध्यान आकर्षित कराया है।
उन्होंने कहा है कि जीएसटी परिषद की 41वीं बैठक दिनांक 27 अगस्त 2020 में केंद्र सरकार द्वारा यह सुझाव दिया गया था कि राज्य द्वारा जीएसटी कम्पनसेशन में कमी की पूर्ति ऋण के माध्यम से की जाए।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने स्वीकार किया है कि इसकी पूर्ति कम्पनसेशन फंड से की जाए और इस कमी को वित्त पोषित करने की केंद्र सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है। यह उस संविधान संशोधन की मूल भावना के विपरीत है, जिसके तहत राज्यों द्वारा कुछ करों को लागू करने के अपने संवैधानिक अधिकारों को केंद्र सरकार के पक्ष में दे दिया गया था।
गहलोत ने प्रधानमंत्री को पत्र में लिखा है कि संविधान संशोधन के तहत अनेक राज्य करों को जीएसटी में सम्मिलित कर दिया गया था और कहा गया था कि राज्यों को इससे होने वाले राजस्व हानि को देखते हुए कम्पनसेशन उपलब्ध करवाया जाएगा।
उन्होंने कहा कि जीएसटी (कम्पनसेशन टू स्टेट) एक्ट 2017 में राज्यों को जीएसटी को लागू करने के फलस्वरूप होने वाली राजस्व हानि की पूर्ति करने के लिए पांच वर्ष तक कम्पनसेशन देने की गारंटी दी गई है। इसलिए अब यह केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वे सुनिश्चित करें कि राज्यों को कम्पनसेशन की पूरी राशि बिना किसी देनदारी के मिले।
उन्होंने कहा कि अपरिहार्य स्थितियों के कारण कर संग्रहण में कमी होने के बावजूद जीएसटी (कम्पनसेशन टू स्टेट) एक्ट 2017 के तहत कम्पनसेशन को ना ही कमी किया जा सकता है और ना ही बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जीएसटी एक्ट के तहत केंद्र सरकार कम्पनसेशन बढ़ाने या घटाने का निर्णय नहीं ले सकता है।
गहलोत ने जीएसटी काउंसिल की पूर्व में आयोजित बैठकों का हवाला देते हुए बताया कि इन बैठकों में अनेक निर्णय लिए गए थे, जिनमें राजस्व हानि का शत-प्रतिशत कम्पनसेशन देने, इसे पांच वर्ष की अवधि (2017-2022) तक देने, केंद्र सरकार द्वारा सम्पूर्ण राशि का भुगतान करने की जिम्मेदारी और कमी की स्थिति में केंद्र सरकार द्वारा ऋण लिए जाने के निर्णय शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि जीएसटी केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच हुए सामूहिक निर्णयों पर आधारित है, जो कि संविधान संशोधन और कम्पनसेशन एक्ट से बंधा हुआ है।
गहलोत ने पत्र के माध्यम से मोदी का कम्पनसेशन के भुगतान से जुड़े जटिल मुद्दों पर भी ध्यान आकर्षित कराया है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की कम्पनसेशन के अंतिम वर्ष में राज्यों को पूर्व निर्धारित 14 प्रतिशत वृद्धि के स्थान पर शून्य प्रतिशत वृद्धि की सोच अनुचित है एवं न्यायोचित नहीं है।
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उन्होंने पत्र में कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रबंधन करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है, क्योंकि जब कर संग्रहण अधिक होता है तो उसका लाभ केंद्र सरकार को मिलता है। इसलिए अर्थव्यवस्था में जीएसटी संग्रहण में कमी आने पर केंद्र सरकार द्वारा ही इसकी जिम्मेदारी उठाया जाना अपेक्षित है।
गहलोत ने लिखा कि केंद्र सरकार द्वारा जीएसटी में कमी का आकलन गत वित्तीय वर्ष के मुकाबले विकास की दर 10 प्रतिशत मानकर किया जा रहा है तथा बाकी जीएसटी संग्रहण कमी को कोरोना महामारी से जोड़कर प्रस्तुत किया जा रहा है। यह एकपक्षीय निर्णय है, जो केवल केंद्र सरकार के फायदे को ध्यान में रखकर लिया गया है, यह न्यायोचित नहीं है।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से ऋण लेने की जिम्मेदारी का निर्वहन करे और राज्यों को कम्पनसेशन दे।
उन्होंने प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप कर जीएसटी लागू करते समय राज्यों से किए वायदे को निभाने तथा केंद्र व राज्यों के मध्य विश्वास आधारित वित्तीय संबंधों को बहाल करने का अनुरोध किया।