जंगलों में आग : 3000 हेक्टेयर में वनस्पतियां और वन्यजीव तबाह

शिमला, 2 मई | हिमाचल प्रदेश में गर्मी के मौसम में घास के मैदानों और जंगलों में आग की 378 घटनएं हुई हैं। आग मुख्यत: निचली पहाड़ी इलाकों में लगी, जिससे 3000 हेक्टेयर में वनस्पतियां और वन्यजीव तबाह हो गए हैं। प्रधान मुख्य वन संरक्षक एस.पी. वासुदेव ने आईएएनएस से कहा, “जंगल में आग की घटनाओं की मुख्य वजह अचानक तापमान में वृद्धि और सूखे की लंबी पारी है। अधिकांश आग की घटनाएं शिवालिक क्षेत्र में स्थित बिलासपुर, हमीरपुर, कांगड़ा, सोलन और सिरमौर जिलों में हुई हैं, जिनमें अधिकांश जमीनी आग हैं।”

वन विभाग के आलेखों के मुताबिक, राज्य के कुल वन क्षेत्र के 22 प्रतिशत या 8267 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र आग संभावित हैं। गर्मी के मौसम में आग की अधिकांश घटनाएं चीड़ के जंगलों में हुईं। पेड़ से गिरने वाले चीड़ के कांटें अत्याधिक ज्वलनश्ील होते हैं, क्योंकि उसमें तारपीन के तेल की की मात्रा अधिक होती है।

चीड़ के पेड़ 5500 फुट की ऊंचाई पर पाए जाते हैं।

2015-16 में राज्य में जंगल में आग की कुल 671 घटनाएं हुईं, जिससे 5733 हेक्टेयर में फैले जंगल बर्बाद हो गए। सबसे बुरी स्थिति 2012-13 में हुई थी, जब जंगलों में आग की 1798 घटनाएं हुई थीं और 20763 हेक्टेयर में फैले जंगल तबाह हो गए थे।

इन दिनों शिमला, कसौली, चायल, धर्मपुर और नाहन शहर की पहाड़ियों से धुआं उठते देखना आम हो गया है।

स्थानीय निवासी रमेश चंद ने आईएएनएस से कहा, “विगत दो दिनों में तारा देवी की पहाड़ियों में जंगल का बड़ा भाग आग से तबाह हो गया।”

उन्होंने कहा कि वन्यजीवों की भी बड़े पैमाने पर क्षति हुई है।

वन अधिकारियों ने कहा कि अधिकांश घटनाएं जानबूझकर आग लगाने के चलते हुईं थीं। ग्रमीण वर्षा के बाद मुलायम घास उगने की चाहत में घास के मैदानों में आग लगा देते हैं। अधिकांश मामलों में घास के मैदानों से आग पास के जंगलों तक फैल जाती है।

वासुदेव ने कहा कि ग्रामीणों की मदद से आग संभावित जिलों में स्वयं-सहायता समूह बनाए गए हैं। इसके अलावा आग की घटनाओं को रोकने के लिए आग पर नजर रखने वाले तीन हजार पहरेदार भी तैनात किए गए हैं।

इस भीषण गर्मी के मौसम में वन कर्मियों की छुट्टियां 30 जून तक रद्द कर दी गई हैं।

आग की मुख्य वजह चीड़ के कांटों को चुनने के लिए स्थानीय लोगों को भी लगाया गया है।

ग्रामीण चीड़ के कांटों को जमा कर सीमेंट कंपनियों को 1.65 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेच देते हैं।

उन्होंने कहा कि चीड़ के कांटों के संग्रहण से जंगल में आग की घटनाओं को रोकने में काफी मदद मिल रही है।

वासुदेव ने कहा, “हम सीमेंट कंपनियों बातचीत करने की कोशिश कर रहे हैं कि वे चीड़ के कांटों की खरीदी दर बढ़ाकर दो रुपये प्रति किलोग्राम कर दें, ताकि इस आकर्षक दर के कारण इन कांटों को चुनने के लिए लोग आकर्षित हों।”

अधिकारिक रिकार्ड के मुताबिक, हिमाचल का 66 प्रतिशत हिस्सा वन क्षेत्र है। भारतीय पक्षियों की 36 प्रतिशत प्रजातियां यहां के जंगलों में पाई जाती हैं। देश में पक्षियों की कुल 1228 प्रजातियां हैं, जिनमें 447 हिमाचल प्रदेश में पाई जाती हैं।

हिमाचल प्रदेश विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण परिषद के अनुसार, राज्य में स्तनपायी जानवरों की 77 प्रजातियां पाई जाती हैं।

जंगल में आग: फाइल फोटो :आईएएनएस