जमीन में सुराख करके भूकंप की जानकारियां की जाएंगी

नई दिल्ली, 02 फरवरी (जनसमा)। भारत एक ऐसे संस्थान की स्थापना करने जारहा है जहां जमीन में बहुत गहराई तक सुराख करके भूकंप से जुड़े सभी प्रकार के शोध कार्य किए जाएंगे और जानकारियां इकट्ठी की जाएंगी।। भूकंप की गतिविधियों को समझने के लिए सतारा जिले के कराड शहर में बोरहोल जियोफिजिक्स रिसर्च लेब्रोट्रेरी की स्थापना की जा रही है। इसके लिए महाराष्ट्र सरकार ने भूमि मुहैया कराई है। कराड कोयना नदी के पास बसा हुआ है।

इस स्थान यानी कराड का चयन इसलिए किया गया है क्योंकि यह देश में अपने प्रकार का ऐसा भौगोलिक इलाका है जहां झील में भूकम्पीय गतिविधियां देखी गई है।

साभार फोटो डिवीजन : 11 दिसंबर, 1967 को कोयना क्षेत्र में आये भूकंप की तस्वीर।

भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत स्थापित किये जारहे इस संस्थान की यह विशेषता होगी कि इसमें बोरहोल तकनीक काम में लाई जाएगी अर्थात जमीन में बहुत गहराई तक सुराख किया जाएगा ताकि पृथ्वी के भीतर होने वाली गतिविधियों का अध्ययन किया जासके।

कोयना क्षेत्र (सतारा जिला) में जलाशय की वजह से लगातार भूकंप आ रहे है। 11 दिसंबर, 1967 को कोयना क्षेत्र में 6.3 तीव्रता का भूकंप आया था जो दुनिया में सबसे ज्यादा तीव्रता का भूकंप था। अब तक 5 या इससे ज्यादा तीव्रता के 22 भूकंप आ चुके हैं। चार और इससे ज्यादा तीव्रता के 200 से ज्यादा भूकंप आ चुके हैं।

इस क्षेत्र में कम तीव्रता के हजारों भूकंप आ चुके हैं। सभी भूकंप 30 गुना 20 किलोमीटर के दायरे में सीमित रहे हैं। लगातार भूकंपीय गतिविधियों और कोयना के वार्षिक लोडिंग और अनलोडिंग चक्र और निकटवर्ती वार्ना जलाशय में मजबूत संबंध है।

हालांकि जलाशयों की ओर से भूकंप पैदा होने की परिघटना को समझने के लिए बनाए गए मॉडल से यह स्पष्ट नहीं हो सका है।

केंद्रीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कराड के हजारमाची में बोरहोल जियोफिजिक्स रिसर्च लेब्रोट्रेरी (बीजीआरएल) के निर्माण के लिए होने वाले भूमि पूजन का नेतृत्व किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि सरकार वैज्ञानिक अनुसंधानों के जरिये प्राकृतिक आपदाओं की वजह से लोगों को होने वाली समस्याओं का हल ढंूढ़ना चाहती है।

भारत सरकार का पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय भूकंपीय समस्याओं की वजह से सामाजिक दिक्कतों की चुनौतियों को खत्म करने के लिए कराड में बोरहोल जियोफिजिक्स रिसर्च लेब्रोट्रेरी (बीजीआरएल) की स्थापना कर रहा है। इसके जरिये ड्रिलिंग इनवेस्टिगेशन को अंजाम दिया जाएगा। महाराष्ट्र के भूकंपीय क्षेत्र कोयना के इंटर-प्लेट भूकंपीय इलाके में गहराई तक वैज्ञानिक ड्रिलिंग की मंत्रालय की अवधारणा के तहत बीजीआरएल की स्थापना का फैसला किया गया है ताकि इलाके में भूकंप से जुड़े अनुसंधानों और मॉडलों की दिशा में काम किया जा सके।

शिवाजी सागर लेक को 1962 को ले लेने के बाद कोयना क्षेत्र में जलाशय की वजह से लगातार भूकंप आ रहे है। 1967 में कोयना क्षेत्र में 6.3 तीव्रता का भूकंप आया था जो दुनिया में सबसे ज्यादा तीव्रता का भूकंप था। अब तक 5 या इससे ज्यादा तीव्रता के 22 भूकंप आ चुके हैं। चार और इससे ज्यादा तीव्रता के 200 से ज्यादा भूकंप आ चुके हैं। क्षेत्र में कम तीव्रता के हजारों भूकंप आ चुके हैं। सभी भूकंप 30 गुना 20 किलोमीटर के दायरे में सीमित रहे हैं। लगातार भूकंपीय गतिविधियों और कोयना के वार्षिक लोडिंग और अनलोडिंग चक्र और निकटवर्ती वार्ना जलाशय में मजबूत संबंध है। हालांकि जलाशयों की ओर से भूकंप पैदा होने की परिघटना को समझने के लिए बनाए गए मॉडल से यह स्पष्ट नहीं हो सका है।

इस कार्यक्रम के तहत कोयना में भूकंप आने की क्रियाविधि को समझने के लिए एक इस कार्यक्रम के तहत एक खास नजरिया अपनाया जा रहा है। इसके लिए भूकंपीय क्षेत्र में गहरे तक खुदाई जाएगी और गहराई में एक बोरहोल वेधशाला स्थापित की जाएगी। इस तरह प्रत्यक्ष अवलोकन से इन भूकंपों की क्रिया विधि का मॉडल तैयार करने के लिए महत्वपूर्ण और नई जानकारी मिल सकेगी।

बोरहोल रिसर्च जियोफिजिक्स रिसर्च लेब्रोट्रेरी (बीजीआरएल) के तहत दफ्तर के लिए भवन, आधुनिक प्रयोगशाला और आधुनिक रिपोजटरी विकसित किए जा रहे हैं । यह भवन कराड में हजारमाची के कैंपस में बनेगा।

बोरहोल रिसर्च जियोफिजिक्स रिसर्च लेब्रोट्रेरी (बीजीआरएल) की स्थापना का उद्देश्य जियो-फिजिकल, जियोलॉजिकल और जियोटेक्निकल सुविधाओं के लिए एक विश्वस्तरीय संस्थान बनाना है। ऐसा संस्थान जहां भूकंप से जुड़े शोध हो सकेंगे।

भूमि पूजन समारोह में सतारा के सांसद छत्रपति उदयनराजे भोसले, दक्षिण कराड के विधायक पृथ्वीराज चह्वाण और भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम राजीवन ने भी हिस्सा लिया।