दिलीप कुमार

दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार (legendary actor dilip kumar) से बातचीत

लेखक निर्माता,निर्देशक बृजेन्द्र रेही ने 1995 में अपनी दूरदर्शन टीवी सिरीज ‘समय के साक्षी’ के लिए 1995 में भारतीय सिनेमा के दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार (legendary actor dilip kumar) से बातचीत की थी। उस बातचीत के कुछ अंश पढ़िये:

रेही : आप भारतीय सिनेमा के शिखर पुरुष हैं। 15 अगस्त 1947 का दिन याद करके आपको कैसा लगता है?

दिलीप कुमार : ख्वाब के जैसे लगता है, लाइक ए ड्रीम।

रेही : क्या वो ड्रीम आपका पूरा हुआ, देश के संदर्भ में, देश रेफ्रेंस में और जो ख्वाब उस वक्त आया था, वो कहां तक आगे बढ़ा?

दिलीप कुमार : काश कि वो पूरा होता, बहुत पेन्टअप एस्पेंरेंश थे, एनर्जी थीं और बहुत बड़े रहनुमा थे तारीखी सिग्निीफिकेंस के लोग, Peoples of stretcher, visionaries & great human beings, so the atmosphere was charged with sense of inspirations & determination to make good this great struggle for freedom which was waged by the people of that generations in our generation earlier. I’m sorry to say that the dream is not been fulfilled, merely being free is perhaps political term, I am not a politician so I would talk like a normal citizen that, we freedom perhaps employed not just the freedom to actor, freedom to speak, freedom from poverty, freedom from disappear, sense of enlightenment to come, avenues of growth & development, development of human mind & personality,  हमने इससे बहुत सी उम्मीदें वाबस्ता कर रखी थीं, कि हमारे जे़हन का इब्तिदा होगा, हमारी कौम डेवलप करेगी, हम एक मुल्क डेवलप करेंगे, एक तमद्दुन डेवलप करेंगे क्योंकि गुलामी में भी लोग हमारे मुल्क की और हमारे लीडरशिप की बहुत तारीख करते थे, उसको इज़्ज़त और एहतराम के साथ they looked at our culture, so we thought that we will perhaps, this plug the stars from the skies.

रेही:        ऐसा क्यों हुआ? आपको क्या लगता है?

दिलीप कुमार :      ऐसा क्यों हुआ….(सोचते हुए).. यानी ये तो उम्मीद थी हमारी।

रेही :       आजकल के हालात पर आपका क्या कमेंट है? पाॅलिटीशियन के बार में आपको क्या कहना है?

दिलीप कुमार :      वो तो जितना मैं जानता हूँ, उतना आप जानते हैं, उतना अवाम भी जानती है। लीडरशिप पर ब्लेम करें तो उससे तो कोई बात बनती नहीं है, लेकिन लीडरशिप ने भी एक बहुत ही भद्दी सी मिसाल कायम कर रखी है जो मौजूदा सिचुएशन है,(यह 1995 से पहले की राजनीतिक अवस्था पर टिप्पणी है।) देखिए आपके कि हमारे मुल्क की जो सुनहरी तारीख थी उस पर ये एक बदनुमा धब्बे की तरह है, मौजूदा हालात जो हैं। कौम को जो रहनुमा आगे ले जाने वाले हैं, वो…. बढ़ना है उनको, उनको इस फ़िज़ा के और 20वीं सदी के पार देखना है, मालूम होता है देख रहे हैं हज़ार साल पीछे। वो आदमी तो माफ ही नहीं किये जायेंगे जिन्होंने कि मुल्क की ज़हनियत को हज़ारों साल पीछे धकेल दिया है।

(इस साल नवंबर 2021 में प्रकाशित होने वाली पुस्तक से दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार legendary actor dilip kumar से हुई बातचीत के अंश)