प्रेम मंदिर के वार्षिकोत्सव में खुशी से झूमे श्रद्धालु

वृंदावन (उत्तर प्रदेश), 22 फरवरी | वृंदावन स्थित प्रेम मंदिर का पांचवां वार्षिकोत्सव बुधवार को पूरे हर्षोल्लास के साथ श्रद्धापूर्वक मनाया गया। भोग कार्यक्रम में श्रीकृष्ण और श्रीराधा के चरणामृत प्रसाद स्वरूप पाकर श्रद्धालु खुशी से झूमने लगे। वार्षिकोत्सव के भव्य कार्यक्रम का शुभारंभ प्रात: 10 बजे श्रीकृष्ण और श्रीराधा जी के अभिषेक के साथ हुआ। तत्पश्चात 11 बजे श्रीकृष्ण और श्रीराधारानी के भव्य मूर्तिरूप का दर्शन पाकर श्रद्धालु भावविभोर हो उठे। पूरे कार्यक्रम के दौरान श्रद्धालुजन राधा नाम संकीर्तन करते रहे।

प्रेम मंदिर उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के समीप वृंदावन में स्थित है। इसका निर्माण जगद्गुरु कृपालु महाराज ने भगवान कृष्ण और राधा के मन्दिर के रूप में करवाया है। मंदिर में श्रीकृष्ण और राधारानी की भव्य मूर्तियां हैं।

प्रेम मंदिर के निर्माण में 11 वर्ष का समय और इस पर लगभग 150 करोड़ रुपये की लागत आई है। इसमें इटैलियन करारा संगमरमर का प्रयोग किया गया है और इसे राजस्थान और उत्तर प्रदेश के एक हजार शिल्पकारों ने तैयार किया है। मंदिर का शिलान्यास 14 जनवरी, 2001 को श्रीकृपालुजी महाराज ने किया था।

मंदिर इतना अद्भुत है कि इसे देखकर कोई भी राधे-राधे कहे बिना नहीं रह सकता। इसकी अलौकिक छटा भक्तों का मन मोह लेती है। इसमें भक्त वैसे ही खिंचे चले आते हैं, जैसे कृष्ण अपनी लीलाओं से सबका मन मोह लिया करते थे। यहां की दीवारों पर हर तरफ राधा-कृष्ण की रासलीला वर्णित है। यह मंदिर प्राचीन भारतीय शिल्पकला के पुनर्जागरण का एक नमूना है।

जगदगुरु कृपालु परिषत की अध्यक्षा डॉ. विशाखा त्रिपाठी ने कहा, “वृंदावन में 54 एकड़ में निर्मित यह प्रेम मंदिर 125 फुट ऊंचा, 122 फुट लंबा और 115 फुट चौड़ा है। मंदिर परिसर में एक विशाल हाल बना हुआ है, जिसमें एक साथ 25,000 लोगों के बैठने की व्यवस्था है।”

परिषत के सचिव रामपुरी ने कहा, “इस प्रेम मंदिर के निर्माण की घोषणा जगदगुरु श्रीकृपालुजी महाराज ने वर्ष 2001 में की थी। इसके 11 साल बाद करीब 1000 श्रमिकों ने अपनी कला का बेजोड़ नमूना पेश करते हुए 2012 में इसे तैयार कर दिया था।”

मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर मार्ग के दोनों ओर फूलों के उद्यान हैं। बाईं ओर के बगीचे को पार करके वापस आने का मार्ग है और उससे परे भगवान श्रीकृष्ण की कालिया नाग के फन पर नाचते हुए लीला दिखाई गई है। फव्वारे, श्रीकृष्ण और राधा की मनोहर झांकियां, श्रीगोवर्धन धारणलीला, कालिया नाग दमनलीला, झूलन लीलाएं बेहतर तरीके से दिखाई गई हैं।

डॉ. त्रिपाठी ने बताया, “पूरे मंदिर में 94 कलामंडित स्तंभ हैं। इसमें किंकिरी और मंजरी सखियों के विग्रह दर्शाए गए हैं। गर्भगृह के अंदर और बाहर प्राचीन भारतीय वास्तुशिल्प का नमूना दिखाते हुए नक्काशी की गई है। यहां संगमरमर की चिकनी स्लेटों पर ‘राधा गोविंद गीत’ के सरल दोहे लिखे गए हैं।”       — आईएएनएस