Annual loss of Rs 20,000 crore due to film piracy

फिल्म पायरेसी से सालाना 20,000 करोड़ रु का नुकसान

फिल्म पायरेसी के कारण फिल्म उद्योग को हर वर्ष 20,000 करोड़ रुपये का नुकसान होने के कारण सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने पायरेसी रोकने के लिए कड़े कदम उठाए हैं।

इस वर्ष मानसून सत्र 2023 के दौरान संसद द्वारा सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) कानून, 1952 को पारित करने के बाद, सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने पायरेसी के खिलाफ शिकायतें प्राप्त करने और बिचौलियों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर पायरेटेड सामग्री को हटाने का निर्देश देने के लिए नोडल अधिकारियों का एक संस्थागत तंत्र स्थापित किया है।

कॉपीराइट कानून और आईपीसी के तहत अभी तक कानूनी कार्रवाई को छोड़कर पायरेटेड फिल्मी सामग्री पर सीधे कार्रवाई करने के लिए कोई संस्थागत तंत्र नहीं है।

इंटरनेट के प्रसार और लगभग प्रत्येक व्यक्ति द्वारा नि:शुल्क में फिल्मी सामग्री देखने में रुचि रखने के साथ, पायरेसी में तेजी देखी गई है। उपरोक्त कार्रवाई से पायरेसी के मामले में सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा तुरंत कार्रवाई की जा सकेगी और उद्योग को राहत मिलेगी।

इस कानून में 40 वर्ष बाद संशोधन किया गया, ताकि 1984 में अंतिम महत्वपूर्ण संशोधन किए जाने के बाद डिजिटल पायरेसी सहित फिल्म पायरेसी के खिलाफ प्रावधानों को इसमें शामिल किया जा सके। संशोधन में न्यूनतम 3 महीने की कैद और 3 लाख तक रुपये के जुर्माने की सख्त सजा शामिल है, सजा को 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है और ऑडिटेड सकल उत्पादन लागत का 5 प्रतिशत तक जुर्माना लगाया जा सकता है।

कौन आवेदन कर सकता है? : मूल कॉपीराइट धारक या इस उद्देश्य के लिए उनके द्वारा अधिकृत कोई भी व्यक्ति पायरेटेड सामग्री को हटाने के लिए नोडल अधिकारी को आवेदन कर सकता है। यदि कोई शिकायत किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है जिसके पास कॉपीराइट नहीं है या कॉपीराइट धारक द्वारा अधिकृत नहीं है, तो नोडल अधिकारी निर्देश जारी करने से पहले शिकायत की वास्तविकता तय करने के लिए मामले दर मामले के आधार पर सुनवाई कर सकता है।

कानून के तहत नोडल अधिकारी से निर्देश प्राप्त करने के बाद, डिजिटल प्लेटफॉर्म 48 घंटे की अवधि के भीतर पायरेटेड सामग्री देने वाले ऐसे इंटरनेट लिंक को हटाने के लिए बाध्य होगा।

संसद द्वारा मानसून सत्र में पारित सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) कानून,2023 (2023 का 12) ने फिल्म प्रमाणन से संबंधित मुद्दों का समाधान किया, जिसमें फिल्मों की अनधिकृत रिकॉर्डिंग और फिल्म प्रदर्शन और इंटरनेट पर अनधिकृत प्रतियों के प्रसारण द्वारा फिल्म पायरेसी का मुद्दा शामिल है। पायरेसी के लिए सख्त दंड लगता है। यह संशोधन मौजूदा कानूनों के अनुरूप हैं जो फिल्म पायरेसी के मुद्दों का समाधान करते हैं यानी कॉपीराइट कानून, 1957 और सूचना प्रौद्योगिकी कानून (आईटी) 2000।

सिनेमैटोग्राफ कानून, 1952 की नई सम्मिलित धारा 6एबी में प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति किसी प्रदर्शनी स्थल पर लाभ के लिए जनता के सामने प्रदर्शित करने के लिए किसी भी फिल्म का उल्लंघन करने वाली प्रति का उपयोग नहीं करेगा या उसके लिए नहीं उकसाएगा, जिसे इस कानून या उसके अंतर्गत बनाए गए नियम के तहत लाइसेंस नहीं मिला है; या इस तरह से जो कॉपीराइट कानून, 1957 या उस समय लागू किसी अन्य कानून के प्रावधानों के तहत कॉपीराइट का उल्लंघन है। इसके अलावा, सिनेमैटोग्राफ कानून में नई सम्मिलित धारा 7(1बी)(ii) में प्रावधान है कि सरकार धारा के उल्लंघन में किसी मध्यस्थ मंच पर प्रदर्शित/होस्ट की गई ऐसी उल्लंघनकारी प्रति तक पहुंच को हटाने/अक्षम करने के लिए उचित कार्रवाई कर सकती है।

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