Chidambaram

सहिष्णुता के बिना समाज समृद्ध नहीं हो सकता : चिदंबरम

कोलकाता, 24 अक्टूबर | पूर्व वित्त मंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने सोमवार को आगाह किया कि असहिष्णुता देश की समृद्धि की राह में एक बड़ी बाधा है। आर्थिक सुधारों पर ऑब्जर्बर रिसर्च फाउंडेशन के सहयोग से आईआईएम कलकत्ता द्वारा आयोजित एक सत्र में चिदंबरम ने कहा, “हमें अधिक मानवीय और सहिष्णु समाज बनाना होगा। हम तब तक समृद्ध समाज का निर्माण नहीं कर सकते, जब तक कि समाज में लोग एक दूसरे के प्रति सहिष्णु न हों, अधिक मानवीय न हों, विविधता को स्वीकार नहीं करते हों और जीओ और जीने दो के दर्शन को स्वीकार नहीं करते हों।”

उन्होंने कहा, “अगर असहिष्णुता अधिक से अधिक संघर्ष की ओर ले जाएगी तो निश्चित रूप से देश को समृद्ध और अमीर बनने से रोक देगी।”

पिछले दो सालों में समाज में असहिष्णुता बहस के केंद्र में बनी हुई है और इसके बीच गौरक्षकों की कार्रवाइयां जैसे मुद्दे सामने आए हैं।

आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति पर चिदंबरम ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक को मौद्रिक नीतियों के माध्यम से महंगाई और आर्थिक रफ्तार के बीच संतुलन साधना होगा।

उन्होंने यह भी कहा कि स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में सार्वजनिक बुनियादी संरचना तैयार करने के लिए देश को करों के माध्यम से अधिक राजस्व इकट्ठा करने की जरूरत है।

चिदंबरम ने कहा, “हमारे पास पर्याप्त कर राजस्व नहीं है, इसलिए शिक्षा और स्वास्थ्य का सार्वजनिक ढांचा चरमरा रहा है।”

उन्होंने कहा कि 70 और 80 के दशक के कई शीर्ष उद्योग घराने आर्थिक सुधार के बाद के युग में ‘प्रतिस्पर्धा में जीवित नहीं रह सके।’

चिदंबरम ने कहा, “नए निजी उद्यमियों के लिए जगह सिकुड़ रही है। देश के नए उद्यमियों के लिए अवसर पैदा करना जारी रखनी चाहिए।”

चिदंबरम ने यह भी कहा कि पिछले 25 सालों में असमानता बढ़ी है और इसे घटाने के लिए न्यूनतम मजदूरी में वृद्धि करने की जरुरत है। उन्होंने कहा, “इससे थोड़ी महंगाई बढ़ेगी, लेकिन असमानता स्वीकार्य नहीं है।”

लचीले राजकोषीय घाटे की अवधारणा पर चिंता व्यक्त करते हुए चिदंबरम ने कहा कि भारत को 2017-18 में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जरूर पूरा करना चाहिए। उन्होंने कहा, “हमें उस स्तर के नीचे रहना चाहिए और इसे लांघना नहीं चाहिए।”               –आईएएनएस

(फाइल फोटो)