मध्यप्रदेश के शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल होगी आदि शंकराचार्य की जीवनी

भोपाल, 01 मई (जनसमा)। अद्वैत वेदांत दर्शन के प्रवर्तक, सनातन धर्म के पुनरूद्धारक और सांस्कृतिक एकता के देवदूत आदि शंकराचार्य का प्रकटोत्सव सोमवार को पूरे प्रदेश में मनाया गया। सभी जिलों में आदि शंकराचार्य के जीवन और दर्शन पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रंखला आयोजित की गई। राजधानी भोपाल में विधानसभा के मानसरोवर सभागार में जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती, कांची कामकोटि पीठ की उपस्थिति में आदि शंकराचार्य का पुण्य-स्मरण किया गया। आदि शंकराचार्य के अवदान पर अपने विचार रखते हुए जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती ने कहा कि आदि शंकराचार्य के अनुसार शांत स्वरूप धारण करने से ही कल्याण होगा।

फोटो : शिवराज सिंह चौहान ने सोमवार को सपत्नीक अपने निवास पर जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती, कांची कामकोटि पीठ का स्वागत किया और उनसे आशीर्वाद लिया।

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि आदि शंकराचार्य की जीवनी और सनातन धर्म के उद्धार में उनके योगदान पर आधारित पाठ्यक्रम स्कूल शिक्षा में शामिल किया जायेगा। उन्होंने आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास की स्थापना करने की घोषणा करते हुए कहा कि इसके माध्यम से आदि शंकराचार्य के दर्शन एवं वेदांत शिक्षा के प्रसार की गतिविधियाँ संचालित होंगी। संत समाज मार्गदर्शन करेगा जबकि सरकार सहयोगी की भूमिका में होगी। चौहान ने कहा कि विकास करने के अलावा संतों के मार्गदर्शन में नई पीढ़ी को सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक संस्कारों से शिक्षित और दीक्षित करना भी सरकार का काम है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि ओंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य की पवित्र गुफा का जीर्णोद्धार होगा जहाँ उन्होंने अपने गुरू के मार्गदर्शन में तपस्या की थी। चौहान ने कहा कि आदि शंकराचार्य ने शिक्षा दी है कि सभी जीवों में एक ही चेतना का स्पंदन है। उन्होंने कहा कि वेदांत दर्शन विश्व की सभी प्रकार की वैमनस्यता और द्वंदों को दूर करने में सक्षम है।

शिवराज ने बताया कि ओंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य की भव्य प्रतिमा निर्माण के लिये अष्ट धातु संग्रहण अभियान एक जून से 30 जून तक चलेगा। उन्होंने कहा कि यदि आदि शंकराचार्य नहीं होते तो भारत का सांस्कृतिक अखंडता का वर्तमान स्वरूप भी नहीं होता। उन्होंने कहा कि आदि शंकराचार्य ने भारत की सांस्कृतिक एकता में आने वाली सारी बाधाएँ दूर कर दीं हैं। चार पीठों की स्थापना कर उन्होंने भारत को एक सूत्र में बाँध दिया। उन्होंने सांस्कृतिक अखंडता की नींव मजबूत की। आदि शंकराचार्य के योगदान का स्मरण करते हुए पूरे प्रदेश में प्रकटोत्सव मनाने का निर्णय लिया गया है।