Cellular Jail

सेलुलर जेल : शहीदों के बलिदान की गवाह हैं कालकोठरियां*

यह आजादी का महीना है। देश की आजादी के लिए अनगिनत लोगों ने कुर्बानियां दी, फांसी के फंदे पर झूल गए, उनमें से अनेक ऐसे भी थे जो अंडमान की सेलुलर जेल में यातनाएं सहते हुए शहीद होगए। वहां की कालकोठरियां आज भी गवाह हैं शहीदों के बलिदान की ।

आज सेलुलर जेल यूनेस्को की विश्‍व धरोहर स्‍थल की संभावित सूची में शामिल हैं तथा एक राष्‍ट्रीय स्‍मारक बन चुकी है किन्तु किसी जमाने में भयावह स्‍थान रही है, जो हमें याद दिलाती है कि हमें आजादी बड़ी मुश्किलों से मिली है।

फ़ाइल फोटो : तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 30 दिसंबर, 1998 को पोर्टब्लेयर में  सेलुलर जेल में स्मारक पर पुष्प चक्र अर्पित करते हुए।

भयानक सेलुलर जेल, बलिदान की ऐसी ही एक वेदी थी। कालकोठरी की सजा के लिए इस विशेष तरह की कोठरियों के इंतजाम वाली (इसलिए इसे सेलुलर जेल का नाम दिया गया) इस जेल का नाम भारत की आजादी के संघर्ष के साथ अमिट रूप से जुड़ा हुआ है।

कैदियों की बस्तियां

ब्रिटिश उपनिवेश भारत और बर्मा में संगीन अपराधों के लिए दोषी ठहराये गये कैदियों के लिए बैंकोलिन (सर्वप्रथम 1787 में), मल्‍लका, सिंगापुर, अराकान और तेनास्‍सेरिम में कैदियों की बस्तियां स्‍थापित की गईं। अंडमान की जेल इस श्रृंखला की आखिरी कड़ी और भारतीय सरजमीं पर स्‍थापित होने वाली अपने किस्‍म की पहली जेल थी।

ब्रिटिश हुक्‍मरानों ने आजादी के प्रथम स्‍वाधीनता संग्राम (1857) के  विद्रोहियों को निर्वासित और कैद करने के लिए अंडमान का चयन किया गया। 10 मार्च, 1858 को 200 ‘गंभीर राजनीतिक अपराधियों’ के पहले जत्थे ने चाथलाम द्वीप के छोर पर कदम रखा। 216 कैदियों का दूसरा जत्‍था पंजाब सूबे से आया। 16 जून, 1858 तक यहां पहुंचने वाले कैदियों की कुल तादाद 773 हो गई, 64 कैदियों ने अस्‍पताल में दम तोड़ दिया था, फरार होने और दोबारा हाथ न आने वाले कैदियों की संख्‍या 140 थी, एक कैदी ने आत्‍महत्‍या की थी, फरार होने के बाद दोबारा पकड़े जाने पर फांसी पर लटकाये गये कैदियों की संख्‍या 87 थी।

28 सितंबर, 1858 तक यहां करीब 1330 कैदी पहुंच चुके थे। 1858 और 1860 के बीच देश के कोने-कोने से लगभग 2,000-4,000 स्‍वाधीनता सेनानियों को अंडमान भेजा जा चुका था। दुखद बात यह है कि उनमें से अधिकांश ने जीने की और कार्य करने की बेहद पीड़ादायक परिस्थितियों के कारण दम तोड़ दिया। एक सदी के बाद, 15 अगस्‍त, 1957 को पोर्ट ब्‍लेयर में ‘शहीद स्‍तम्‍भ’ प्राण न्‍यौछावर करने वाले अचर्चित और गुमनाम शहीदों को समर्पित किया गया।

सेलुलर जेल

ब्रिटिश हुक्‍मरानों दराज के इलाके में कालकोठरियां बनाने का फैसला किया।  1906 में कुख्‍यात सेलुलर जेल पूर्ण हो गई, जिसकी कालकोठरियों की संख्‍या बढ़कर 693 हो गई! जैसे-जैसे स्‍वाधीनता संग्राम जोर पकड़ने लगा, विभिन्‍न तरह के षडयंत्र के मामलों में शामिल राजनीतिक कैदियों को सेलुलर जेल भेजा गया।

इनमें से कुछ मामलों में अलीपुर बम मामला (माणिकटोला षडयंत्र मामले के नाम से भी चर्चित), नासिक षडयंत्र मामला, लाहौर षडयंत्र मामला (गदर पार्टी के क्रांतिकारी), बनारस षडयंत्र मामला, चटगांव शस्‍त्रशाला मामला, डेका षडयंत्र मामला, अंतर-प्रांतीय षडयंत्र मामला, गया षडयंत्र मामला और बर्मा षडयंत्र मामला आदि शामिल हैं।

इनके अलावा, वहाबी विद्रोहियों, मालाबार तट के मोपला प्रदर्शनकारियों, आंध्र के रम्‍पा क्रांतिकारियों, मणिपुर स्‍वाधीनता सेनानियों, बर्मा के थावरडी किसानों को भी अंडमान भेजा गया।

जेल में जीवन

सेलुलर जेल में जीवन विशेषकर शुरुआती कैदियों के लिए बेहद अमानवीय और बर्बर था। राजनीतिक कैदियों को बहुत कम भोजन और कपड़े दिये जाते थे और उनसे कड़ी मशक्‍कत कराई जाती थी। उन्‍हें कोल्‍हू पर जोता जाता था,  नारियल छिलवाये जाते थे, नारियल के रेशों की पिसाई कराई थी, रस्‍सी बनवाई जाती थी, पहाड़ तोड़ने के लिए भेजा जाता था, दलदली जमीन की भरत कराई जाती थी, जंगल साफ कराये जाते थे, सड़कें बिछवाई जाती थी आदि।

सबसे भयानक काम ‘मोटे सान की कटाई’ बहुत अधिक अम्‍लता वाली रामबन घास, ‘रस्‍सी बनाने की कला’ थी, जिसके बाद लगातार खुजली, खरोंचना और रक्‍तस्राव जैसे तकलीफें होती थीं!

राष्‍ट्रीय स्‍मारक

इस जेल में अनेक करिश्‍माई हस्तियों को बंदी बनाकर रखा गया। उनमें अन्‍य लोगों के अलावा सावरकर बंधु, मोतीलाल वर्मा, बाबू राम हरि, पंडित परमानंद, लढ्डा राम, उलास्कर दत्त, बरिन कुमार घोष, भाई परमानंद, इंदु भूषण रॉय, पृथ्वी सिंह आजाद, पुलिन दास, त्रैलोकीनाथ चक्रवर्ती, गुरुमुख सिंह शामिल हैं। यह फेहरिस्‍त लंबी और विशिष्‍ट है।

सेलुलर जेल में बंद रहे हमारे स्‍वाधीनता संग्राम सेनानियों के अमूल्‍य बलिदान की याद और सम्‍मान में 11 फरवरी, 1979 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री  मोरारजी देसाई द्वारा इसे राष्‍ट्रीय स्‍मारक के रूप में राष्‍ट्र को समर्पित किया गया।

वहां का संग्रहालय और साउंड एंड लाइट शो जेल के कठिन जीवन की झलक प्रस्‍तुत करते हैं, जहां उन लोगों ने सिर्फ इसलिए कुर्बानियां दी, ताकि हम आजादी और शांति के साथ जी सकें। सेलुलर जेल यूनेस्को की विश्‍व धरोहर स्‍थल की संभावित सूची में शामिल हैं, क्‍योंकि राष्‍ट्रीय स्‍तर पर उसकी तुलना में कोई और स्‍थान नहीं है।

किसी जमाने में भयावह स्‍थान रही यह सेलुलर जेल, अब एक राष्‍ट्रीय स्‍मारक बन चुकी है, जो बलिदान का मूर्त रूप है, एक ऐसा स्‍थान है, जो हमें याद दिलाता है कि हमें आजादी बड़ी मुश्किलों से मिली है।

(* चेन्‍नई के स्‍वतंत्र पत्रकार एस. बालाकृष्‍णन के इनपुट पर आधारित)