Climate Change

बढ़ते तापमान की क़ीमत चुका रहे हैं महासागर और बर्फ़ीले इलाक़े

‘इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज’(Intergovernmental Panel on Climate Change)  (IPCC) की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार “महासागर गर्म हो रहे हैं, उनका अम्लीकरण बढ़ रहा है और उनकी उत्पादकता घट रही है. ग्लेशियरों (हिमनदों) (glaciers) और बर्फ़ीले इलाक़ों के पिघलने(Melting )  से समुद्री जलस्तर बढ़ रहा है और तटीय इलाक़ों में चरम मौसम की घटनाएं और ज़्यादा गंभीर हो रही हैं.”

महासागर और क्रायोस्फ़ेयर (cryosphere)  (पृथ्वी का बर्फ़ से ढंका क्षेत्र) पृथ्वी पर जीवन सुनिश्चित करने के लिए बेहद अहम भूमिका निभाते हैं.

ऊंचे पर्वत क्षेत्रों में 67 करोड़ से ज़्यादा लोग रहते हैं और निचले तटीय इलाक़ों में 68 करोड़ लोग अपना जीवन यापन करते हैं.

40 लाख लोग स्थाई रूप से आर्कटिक क्षेत्र (Arctic region)के निवासी हैं और लघु द्वीपीय विकासशील देशों में साढ़े छह करोड़ लोग रहते हैं.

आईपीसीसी प्रमुख होसुंग ली ने बताया, “सागर, आर्कटिक, अंटार्कटिक और उच्च पर्वतों वाले क्षेत्र कई लोगों को बहुत दूर दिखाई देते हैं. लेकिन हम उन पर निर्भर हैं और उनसे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से कई मायनों में प्रभावित होते हैं – मौसम व जलवायु, भोजन व पानी, ऊर्जा, व्यापार, परिवहन, मनबहलाव व पर्यटन, स्वास्थ व कल्याण, और संस्कृति व पहचान के लिए.”

जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण महासागरों और क्रायोस्फ़ेयर में अभूतपूर्व और स्थाई बदलाव आ रहे हैं जिनसे विश्व के सामने नई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं.

आईपीसीसी की रिपोर्ट, Special Report on the Ocean and Cryosphere in a Changing Climate, को 195 सदस्य देशों की सरकारों ने मंज़ूरी दी है.

वैश्विक तापमान में दशकों से हो रही बढ़ोत्तरी और जलवायु परिवर्तन से महासागरों और बर्फ़ से जमे क्षेत्रों पर भारी असर पड़ रहा है. जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के दुष्प्रभावों का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों ने एक नई रिपोर्ट में चेतावनी जारी की है कि अगर मानवीय गतिविधियों में बड़े बदलाव नहीं आए तो समुद्री जलस्तर के बढ़ने, प्राकृतिक आपदाओं के बार-बार आने और खाने-पीने की क़िल्लत से करोड़ों लोग प्रभावित होंगे.

रिपोर्ट दर्शाती है कि 2015 पेरिस समझौते के अनुरूप वैश्विक तापमान (global warming ) में बढ़ोत्तरी को निम्नतम स्तर पर रखने से लाभ होगा. इसके अलावा जलवायु संकट से निपटने के लिए सामयिक, महत्वाकांक्षी और समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया गया है.

“अगर कार्बन उत्सर्जन तेज़ी से कम किए जाते हैं तो भी लोगों और उनकी आजीविका पर असर चुनौतीपूर्ण होगा लेकिन संवेदनशील हालात में रह रहे समुदायों के लिए बेहतर प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सकता है. हम सहनशीलता के निर्माण की अपनी सामर्थ्य बढ़ाएंगे और टिकाऊ विकास के लिए इससे लाभ होंगे.”

Image  UN News/Laura Quiñones : The Jökulsárlón Glacier Lagoon in Iceland is formed naturally from melted glacial water and is perpetually growing while big blocks of ice crumble from a shrinking glacier.

रिपोर्ट बताती है कि टिकाऊ विकास के लिए महत्वाकांक्षी और प्रभावी क़दम उठाने के फ़ायदे होंगे लेकिन अगर कार्रवाई में देर हुई तो फिर उससे जोखिम और ख़र्च दोनों बढ़ जाएंगे.

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (greenhouse gas emissions ) के कारण पृथ्वी का औसत तापमान पहले ही पूर्व औद्योगिक स्तर से एक डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है.

वैज्ञानिक तथ्य दर्शाते हैं कि तापमान में बढ़ोत्तरी के पारिस्थितिकी तंत्रों और लोगों पर गंभीर असर पड़ेगा. महासागर गर्म हो रहे हैं, उनका अम्लीकरण बढ़ रहा है और उनकी उत्पादकता घट रही है.

पर्वतीय इलाक़ों (high mountain regions) में लोग जल (water) की उपलब्धता में आ रहे बदलावों का असर झेल रहे हैं, ग्लेशियर (हिमनद) और बर्फ़ीले इलाक़े पिघल रहे हैं जिससे भूस्खलन, हिमस्खलन, चट्टानों के गिरने और बाढ़ के ख़तरे बढ़ेंगे.

अगर ज़्यादा मात्रा में कार्बन उत्सर्जन जारी रहा तो यूरोप, पूर्वी अफ़्रीका और इंडोनेशिया में छोटे ग्लेशियर 80 फ़ीसदी तक पिघल सकते हैं.

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को तात्कालिक ढंग से घटाने से महासागर के जलस्तर और क्रायोस्फ़ेयर में आ रहे बदलावों को सीमित रखने में मदद मिलेगी,

साथ ही पारिस्थितिकी तंत्रों और उन पर निर्भर जीवन को भी संरक्षित किया जा सकेगा.

रिपोर्ट में जलवायु (Climate Change )से संबंधित ख़तरों और उन चुनौतियों का ज़िक्र है जिनका मौजूदा और भावी पीढ़ी को सामना करना पड़ेगा. साथ ही रिपोर्ट में ऐसे विकल्पों और बदलावों का भी ज़िक्र किया गया है जिन्हें अब और ज़्यादा नहीं टाला जा सकता.

रिपोर्ट के अनुसार जलवायु अनुकूलन और चुनौतियों के लिए तैयारी लोगों, समुदायों और उन्हें उपलब्ध संसाधनों पर निर्भर करेगी.

इस रिपोर्ट को 36 देशों के 100 से ज़्यादा वैज्ञानिकों ने ताज़ा आंकड़ों और सात हज़ार से ज़्यादा वैज्ञानिक प्रकाशनों के आधार पर तैयार किया है.

Text & Photo संयुक्त राष्ट्र समाचार के सौजन्य से